पशुपालन से टूटता मोह

पशुओं की घटती संख्या का सर्वाधिक प्रतिकूल असर कृषि पर पड़ा है। भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि और पशुपालन का कितना विशेष महत्त्व है, यह इसी से समझा जा सकता है कि सकल घरेलू कृषि उत्पाद में पशुपालन का 28-30 प्रतिशत का सराहनीय योगदान है। इसमें भी दुग्ध एक ऐसा उत्पाद है जिसका योगदान सर्वाधिक है।  यह चिंताजनक है कि कृषि प्रधान देश भारत में पशुपालन के प्रति लोगों की अरुचि बढ़ती जा रही है। मवेशियों की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है। आजादी के बाद से 1992 तक देश

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अपराध की पदचाप

दिल्ली हाइकोर्ट ने उचित ही दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया है कि वह महिलाओं का पीछा किए जाने की घटनाओं को गंभीरता से ले। यों तो इस निर्देश की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह कोई ऐसा मामला नहीं है जिसमें पुलिस को अपने कर्तव्य के बारे में अस्पष्टता या दुविधा हो। महिलाओं का पीछा करना 2013 में भारतीय दंड संहिता के तहत एक गंभीर अपराध मान लिया गया। इसकी पृष्ठभूमि से सब वाकिफ हैं। सोलह दिसंबर 2012 को दक्षिण दिल्ली में एक मेडिकल छात्रा के साथ चलती बस

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आॅस्कर की आस

आॅस्कर अब भी संभावना है। आॅस्कर कल भी एक संभावना थी। हमारे भारतीय, विशेषकर हिंदी फिल्मकारों के लिए वह दिवास्वप्न सरीखा है। एक ललक की तरह है जिसका रसीला आकर्षण कम होने का नाम ही नहीं लेता। अभी राजकुमार राव की फिल्म न्यूटन को आॅस्कर के लिए भेजा गया है, प्रचार इसी बात का किया गया प्रदर्शन के वक्त। क्या परीक्षा में बैठना और चयन हो जाने का सुख बराबर है? शायद नहीं। आइएएस कौन नहीं बनना चाहता? लेकिन उसकी परीक्षा में बैठने वाले सभी चयनित हो जाएं, ऐसा कहां

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दलित की दुनिया

संविधान से मिले समानता के अधिकारों, विशेष अवसर के प्रावधानों और राजनीतिक जागरूकता ने दलितों के अपने हितों के लिए एकजुट होने और लड़ने में अहम भूमिका निभाई है। प्रशासन तथा शैक्षिक संस्थानों से लेकर जीवन के अनेक क्षेत्रों में आज दलितों की उपस्थिति किसी हद तक हर तरफ दिखाई देती है। पर इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि आज भी दलितों की अधिकांश या बहुत बड़ी आबादी उस अपमान और उत्पीड़न को झेल रही है जिसे वह सदियों से झेलती आई है। यह सच्चाई रोज अनगिनत रूपों में

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लाल बहादुर शास्‍त्री जयंती: प्रधानमंत्री रहते हुए किश्‍तों पर खरीदी थी कार

देश की कई ऐसी हस्तियां हैं जिन्होंने एक छोटे से वर्ग से उठकर मेहनत करने के बाद देश का सबसे बड़ा पद हासिल किया था। ऐसे लोगों में दिवगंत पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का नाम भी शामिल है। आज यानि 2 अक्टूबर को शास्त्री  जी का जन्मदिन है। 1966 में जन्में शास्त्री ने जय जवान जय किसान का नारा दिया था। इतना ही नहीं 1965 में जब भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ था तो शास्त्री जी ने ही देश का बहुत ही अच्छे से नेतृत्व किया था। शास्त्री जब प्रधानमंत्री

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Happy Gandhi Jayanti: पढ़िए महात्मा गांधी का जीवन परिचय और उनके महत्वपूर्ण आंदोलनों के बारे में

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म दो अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। वो पुतलीबाई और करमचंद गांधी के तीन बेटों में सबसे छोटे थे। करमचंद गांधी कठियावाड़ रियासत के दीवान थे। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा “सत्ये के साथ मेरे प्रयोग” में बताया है कि बालकाल में उनके जीवन पर परिवार और माँ के धार्मिक वातावरण और विचार का गहरा असर पड़ा था। राजा हरिश्चंद्र नाटक से बालक मोहनदास के मन में सत्यनिष्ठा के बीज पड़े। मोहनदास की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई स्थानीय स्कूलों में हुई। वो पहले पोरबंदर के प्राथमिक

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2014 का ग्रीष्म और अब

हंगामा या विवाद मैंने नहीं खड़ा किया है। दरअसल, मेरी शिकायत बस यह है कि जानकार व्यक्तियों ने (मेरी राय को किनारे रख दें) जो कहा या लिखा है उसका सरकार और अर्थव्यवस्था के उसके प्रबंधन पर कोई असर हुआ दिखता नहीं है। गलती सुधारने की कोई कोशिश नहीं की गई, उसका कोई संकेत तक नहीं दिया गया। इसके विपरीत, सरकार लगातार और हठपूर्वक यही दोहराती रही कि ‘सब कुछ ठीकठाक है’। नितांत अप्रत्याशित रूप से, यशवंत सिन्हा ने 27 सितंबर, 2017 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के मध्य-पेज पर एक लेख

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कहानी- इश्तहार

स-मालिक ने पोस्टकार्ड से खबर भेजी थी कि जो पैसे उसे एडवांस में दिए गए थे, वे लग चुके हैं। कागज बीस-बाइस प्रतिशत बढ़े हुए मूल्य पर मिला है। पत्रिका छप कर तैयार है। पिछले अंक की लागत रकम में बीस प्रतिशत ज्यादा पैसे जोड़ कर दो हफ्तों के भीतर आएं और पत्रिका ले जाएं। उसूल के मुताबिक छपी हुई सामग्री दो हफ्ते से ज्यादा समय तक नहीं रखी जाएगी। उसके बाद प्रतियां रद्दी वाले को बेच दी जाएंगी। प्रेस वाले शहर से महज सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित

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मौन का अभिनय

अभिनय की अनेक श्रेणियां हैं। मूकाभिनय यानी माइम उनमें एक है। बिना कुछ बोले अभिनय के जरिए पूरी बात कह देने की कला ही माइम है। मूकाभिनय पूरी दुनिया में एक स्वतंत्र कला के रूप में विकसित है। चार्ली चैप्लिन इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं। पर हमारे यहां, खासकर पश्चिम बंगाल में, इसके प्रख्यात कलाकार हुए हैं। उन्होंने एक तरह से मूकाभिनय को आंदोलन का रूप भी दिया है। दक्षिण में कथकलि जैसी नृत्य विधाएं एक तरह से मूकाभिनय ही तो हैं। मंच पर अभिनीत होने वाले नाटकों की तुलना में

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औपनिवेशिक दंश झेलती जनजातियां

इन जनजातियों को अपराधी घोषित करके ब्रिटिश सरकार ने स्वाधीनता की खातिर होने वाले इनके विद्रोहों की वैधानिकता खत्म कर दी और मुख्यधारा के समाज को इनसे दूर कर दिया। संबंधित कानून के कारण जनजातियों की छोटी रियासतों की वैधता भी जाती रही। साथ ही ब्रिटिश सरकार को कानून-व्यवस्था की अपनी नाकामियों को इन जनजातियों के सिर मढ़ने का मौका भी मिल गया।  वर्ष 1871 में औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश सरकार ने भारत की कुछ खानाबदोश और अर्द्ध खानाबदोश जनजातियों को आपराधिक जनजाति अधिनियम (क्रिमिनल ट्राइबल एक्ट) पारित करके जन्मजात

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अनाथालय में दुष्कर्म

हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में चुराह घाटी के एक अनाथालय में छह बच्चियों के यौन शोषण का जो मामला सामने आया है, वह भरोसे और मानवीयता को शर्मसार करने वाला है। इस बात की कल्पना भी बेहद तकलीफदेह है कि जिन बच्चियों का कोई न हो और इसी वजह से वे किसी यतीमखाने में रह रही हों, वहां के कर्मचारी ही उनका यौन शोषण करने लगें। मामले का खुलासा होने के बाद वहां के लेखाकार, रसोइए और सफाईकर्मी को गिरफ्तार कर लिया गया है। लेकिन इसमें और लोगों के

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गांव की ओर

गांधीजी ने कहा था कि भारत की आत्मा गांवों में निवास करती है, लेकिन आज बदलाव के दौर में यह परिभाषा बदलती जा रही है। गांव के लोग अब शहर की ओर कदम बढ़ा रहे हैं और शहर की संस्कृति गांवों में अपने पैर पसार रही है। गांव तो जिंदा हैं मगर गांव की संस्कृति मर रही है। शहर की चकाचौंध और आकर्षण भरा वातावरण हर किसी को भाता है। अक्सर लोग रोजगार की तलाश या पढ़ाई के लिए शहर की ओर रुख तो करते हैं पर बहुत कम होते

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हिंदी का बाजार

तीन सौ साठ डिग्री का पूरा एक चक्कर लगाकर घड़ी की सुइयां पूरा करती हैं एक दिन। दिनों के योग से बनता है साल और हर साल हम तीन सौ साठ डिग्री का पूरा एक चक्कर लगाकर सितंबर में एक जाने-पहचाने सवाल से जूझने लगते हैं। यह सवाल होता हिंदी को लेकर। आज बाजार ने भाषाओं को लेकर एक ऐसी मानसिकता का मकड़जाल बुना है कि हम खुद-ब-खुद उसमें फंसते चले जा रहे हैं, जिसके कारण भारत में ही लोगों की अपनी भाषा हिंदी के प्रति कोई खास रुचि नहीं

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प्रधानमंत्री अपनी सरकार की नीतियां और योजनाएं बनाने के लिए जनता के साथ राय-मशविरा करें

संवाद का विस्तार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ रेडियो कार्यक्रम के तीन साल पूरे होने पर 36वें प्रसारण में कहा कि यह उनके मन की बात नहीं है बल्कि भारत की सकारात्मक शक्ति, देश के कोने-कोने से लोगों की भावनाओं, इच्छाओं, शिकायतों को सामने रखने का एक ऐसा मंच है जो प्रेरणा देने के साथ ही सरकार में सुधार का वाहक बन रहा है। वाकई यह ऐसा रेडियो कार्यक्रम है जिसमें प्रधानमंत्री आम जन की रोजमर्रा जिंदगी से जुड़े मुद्दों पर विचार रखते हैं। वे आम लोगों के

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कैसे बचेंगे ग्लेशियर

प्र्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जर्नल ‘नेचर’ का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से एशियाई ग्लेशियरों के सिकुड़ने का खतरा बढ़ गया है और अगर इन्हें बचाने की कोशिश नहीं हुई तो सदी के अंत तक एक तिहाई एशियाई ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्शियस से कम नहीं किया गया तो पर्वतों से 36 प्रतिशत बर्फ भी कम हो जाएगी। और अगर तापमान वृद्धि इससे अधिक हुई तो कई गुना बर्फ पिघल जाएगी। वैज्ञानिकों का कहना

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