उत्तराखंड में अपने उद्गम पर ही मैली हो अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही मोक्षदायिनी गंगा


मोक्ष के लिए गंगा स्नान सबसे उपयुक्त माना जाता था। परंतु कुछ सालों से विकास के नाम पर गंगा नदी को कूड़ादान बना दिया गया और गोमुख से लेकर गंगासागर तक मानव मल-मूत्र, घरों का कचरा और सैकड़ों कारखानों का गंदा पानी सब गंगा में डाला जा रहा है। लिहाजा, गंगा का पानी आचमन तथा स्नान के लायक तक नहीं रहा है। मोक्षदायिनी गंगा आज अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रही है और वह अपने मायके उत्तराखंड में ही मैली हो रही है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने गंगा नदी के जल को उत्तराखंड के द्वार हरिद्वार से लेकर उत्तरप्रदेश के उन्नाव के बीच तक गंगाजल को आचमन के ही नहीं, बल्कि स्नान के लायक भी नहीं माना। जो गंगा की दुर्दशा की कहानी बयां करता है।

एनजीटी ने तो आदेश जारी किया है कि जिस तरह सिगरेट के पैकेट पर चेतावनी लिखी होती है कि ‘इसे पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है’ वैसे ही हरिद्वार से उन्नाव तक गंगा किनारे चेतावनी बोर्ड लगाए जाएं कि ‘गंगा में स्नान करने या गंगा जल पीने से स्वास्थ्य पर बुरा असर पडता है’। एनजीटी ने नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा तथा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह आदेश जारी किया है। साथ ही एनजीटी ने इन दोनों विभागों को अपनी-अपनी वेबसाइटों पर गंगा नदी का नक्शा जारी कर उसमें गंगा जल की शुद्धता और अशुद्धता के बारे में विवरण देने का निर्देश दिया था। परंतु समय सीमा निकल जाने के बाद भी यह विभाग कुंभकरणी नींद में है।

पर्यावरण और ऊर्जा विज्ञानी डॉ सागर धारा का कहना है कि यदि गंगा की स्वच्छता और निर्मलता को लेकर ईमानदारी से प्रयास शुरू नहीं किए गए तो हमारी भावी पीढ़ी इस जीवनदायिनी नदी के दर्शन भी नहीं कर पाएगी। वातावरण में सबसे ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड फसलें सोखती हैं। गांव में सबसे कम 30 फीसद कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होती है जबकि 70 फीसद कार्बन डाइऑक्साइड शहर और उद्योग पैदा करते हैं। इसलिए गंगा जिन शहरों से होकर गुजरती है, वहां वह ज्यादा प्रदूषित हो रही है।

मोक्षदायिनी गंगा देवभूमि उत्तराखंड में ही सबसे ज्यादा प्रदूषित हो रही है। चार साल से केंद्र सरकार गंगा की स्वच्छता के लिए विभिन्न नामों से योजनाएं चला रही है। नमामि गंगे के नाम पर गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए 20 हजार करोड रुपए की योजना शुरू की गई है। उत्तराखंड में गंगा को स्वच्छ बनाने के लिए जर्मर्नी भारत को एक हजार करोड़ रुपए का कर्ज देगा। इससे उत्तराखंड की गंदी नालियों को ठीक करने का काम होगा। इस धन से सूबे की 360 किलोमीटर की सीवरेज व्यवस्था को दुरुस्त किया जाएगा। इसमें 15 लाख लीटर प्रतिदिन के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण भी शामिल है। इसके लिए 13 सीवेज पंपिंग स्टेशनों का निर्माण होगा।

केंद्रीय मंत्री उमा भारती जब 2014 में गंगा स्वच्छता मंत्री बनी थीं, तब उन्होंने दो साल में ही गंगा सफाई करने के दावे किए थे। परंतु चार साल के बाद भी गंगा की स्वच्छता को लेकर धरातल पर काम कम प्रचार ज्यादा हुआ। 1985 की तरह राजीव गांधी की सरकार की तर्ज पर भाजपा की केंद्रीय सरकार ने गंगा सफाई के लिए बड़े-बड़े होर्डिंग हरिद्वार से लेकर गंगोत्री-बद्रीनाथ तक लगा दिए और चंडी घाट के पास गंगा किनारे घाटों का निर्माण कछुआ चाल से हो रहा है। जबकि इस जगह बनी झुग्गी-झोपड़ियों की गंदगी गंगा में जा रही है। हरिद्वार और ऋषिकेश में सीवर व्यवस्थाएं इतनी ज्यादा खराब हैं कि हल्की बरसात में भी सीवर के मैन होल से गंदा पानी बाहर निकल कर सीधे गंगा में मिलता है।

नैनीताल हाईकोर्ट ने अधिवक्ता ललित मिगलानी की जनहित याचिका पर विभिन्न नालों का गंदा पानी बिना साफ किए गंगा में बहाने की रिपोर्ट के आधार पर 180 उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश दिए थे। 106 उद्योगों को बंद करने के आदेश दिए गए थे। गंगा से पांच सौ मीटर क्षेत्र में मल-मूत्र त्यागने पर पांच हजार रुपए जुर्माना करने, हरिद्वार-ऋषिकेश में प्लास्टिक की थैलियां, प्लास्टिक गंगाजल की कैन (डिब्बे) बेचने पर पाबंदी लगाई थी। परंतु हरकी पैड़ी, कनखल और ऋषिकेश के गंगा घाटों पर इनकी बिक्री धड़ल्ले से जारी है। कई आश्रमों व होटलों का गंदा पानी गंगा में जा रहा है। कोई रोकने वाला नहीं है। समाजसेवी राम कुमार शर्मा एडवोकेट का कहना है कि 1985 में शुरू हुए गंगा स्वच्छता अभियान की तरह ही 2014 में नमामि गंगे कार्यक्रम भी लालफीताशाही की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है।

लालफीताशाही की भेंट चढ़ा गंगा स्वच्छता अभियान

कानपुर आइआइटी के सेवानिवृत्त प्रोफेसर और पर्यावरणविद डॉ. जीडी. अग्रवाल ‘स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद’ का कहना है कि 1985 से आज तक चला आ रहा गंगा स्वच्छता अभियान गलत सरकारी निर्णयों और लालफीताशाही की भेंट चढ़ गया है। गंगा के लिए होने वाले कार्य का तो पता नहीं लेकिन पैसा जरूर तेजी से खर्च हो रहा है। गंगा स्वच्छता के नाम पर कई ऐसे काम किए जा रहे हैं, जिससे कोई फायदा नहीं होगा। गंगा के लिए केंद्रीय मंत्री उमा भारती और नितिन गडकरी सरकारी दस्तावेजों को कानून में तब्दील करना चाहते हैं। परंतु हमने केंद्र के पास गंगा की रक्षा के लिए जो दस्तावेज भेजे हैं, यदि वह उसे गंगा कानून बनाती है तभी गंगा की रक्षा की जा सकती है। गंगा को जिससे भी प्रदूषित होती है उसे गंगा से दूर रखा जाए। यदि मान्यताएं और परंपराएं भी गंगा को दूषित करती हैं तो उन्हें भी गंगा से दूर किया जाना चाहिए।

क्या कहता है सर्वे

एक सर्वे के मुताबिक अकेले हरिद्वार में गंगा में 25 से ज्यादा छोटे-बड़े नाले गंगा नदी और गंगा नहर में गिर रहे हैं। हरिद्वार में लोकनाथ नाला, सप्त सरोवर नाला, कांगड़ा मंदिर नाला, कर्णवाल नाला, नाई सोता नाला, नागों की हवेली नाला, कुशा घाट नाला, ललितारौ नाला, मायापुर नाला, भल्ला कॉलेज नाला, लोक निर्माण विभाग के पास का नाला, आवास विकास नाला, खन्नानगर नाला, ज्वालापुर में लाल मंदिर के पास कसाई नाला, पांडे वाला नाला, कनखल में दरिद्र भंजन मंदिर के पास नाला, आनंदमई आश्रम के पास गंदा नाला, मातृसदन आश्रम जगजीतपुर के पास गंदा नाला समेत दजर्नों नाले गंगा में लगातार गिर रहे हैं।

मिलीभगत से गंगा का जीवन खतरे में

गंगा रक्षा के लिए समर्पित संस्था मातृसदन के संस्थापक-संचालक स्वामी शिवानंद सरस्वती कहते हैं कि मंत्रियों, सरकारी अफसरों और खनन माफिया की मिलीभगत से गंगा का जीवन खतरे में पड़ गया है। विकास के नाम पर गंगा का लगातार दोहन हो रहा है। खनन माफिया विशालकाय मशीनें खनन के लिए गंगा में ले जाते हैं। ट्रक और ट्रैक्टर ट्रॉली गंगा में ले जाते हैं। इससे गंगा के जल को स्वच्छ रखने वाली मछलियां, कछुए तथा अन्य जड़ी बूटियां नष्ट हो जाती हैं। वन माफिया गंगा के किनारे स्थित वनों में अवैध कटान करते हैं, जिससे गंगा का अस्तित्व ही मिट रहा है। गंगा से मिलने वाले असंख्य प्राकृतिक स्रोत सूख गए हैं और लगातार गंगा जल की मात्रा भी कम हो रही है। सरकार घाटों का निर्माण कर गंगा साफ करने का अनोखा खेल खेल रही है।

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