अगर बर्फानी तेंदुओं को देखना चाहते हैं तो आइए हिमाचल के शीत मरुस्थल यानी लाहुल स्पीति में

दुनिया भर में लुप्त होने वाली प्रजातियों में शुमार बर्फानी तेंदुओं को बचाने में हिमाचल के कबायली इलाके लाहुल स्पीति के लोगों की धार्मिक आस्थाएं और विश्वास काम आ रहे हैं। बफर् ानी तेंदुओं के शिकार आइबेक्स या टंगरोल जिन्हें स्थानीय बोली में किन कहा जाता है व ब्लू शिप या भरल जिसे स्थानीय बोली में फो या नावों कहा जाता है, को मारना पाप माना जाता है। यह सब यहां के निवासियों पर बौद्ध धर्म के असर का ही परिणाम है। काजा में तैनात एडीएम विक्रम नेगी भी कहते हैं कि यहां बौद्व धर्म के अनुयायी इन दो वन्य जीवों की हत्या को पाप मानते हैं। बर्फानी तेंदुओं को इन दोनों वन्य जीवों का शिकार बहुत पसंद है। जिले के लाहुल स्पीति और किन्नौर में बौद्ध धर्म को मानने वालों की बड़ी तादाद है। यह विचित्र है कि बर्फानी तेंदुआ ही नहीं आइबेक्स व ब्लूशिप भी लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में हैं। लेकिन यहां दोनों जीव बर्फानी तेंदुओं के अस्तित्व की वजह से ही हैं।

यहां पर बर्फानी तेंदुओं के लिए खूब शिकार मिलने व अनूठे लैंडस्कैप के कारण शीत मरुस्थल के नाम से विख्यात स्पीति घाटी में इन तेंदुओं की तादाद काफी ज्यादा है। बर्फानी तेंदुए को यहां की स्थानीय बोलियों में शिन कहा जाता है। इसलिए यहां पर हिमालय स्नो लैपर्ड रिसर्च सेंटर खोलने का फैसला किया गया। यह केंद्र एशिया के सबसे ऊंचे दूसरे गांव किब्बर में स्थित है। इस केंद्र में बर्फानी तेंदुओं व उसके शिकार को लेकर शोध करने और देश में अपनी तरह के पहले रेडियो कॉलरिंग प्रोजेक्ट शुरू किया जाना था। इन पर अभी काम चल रहा है। इस केंद्र को यहां खोलने को लेकर वन मंडलाधिकारी काजा राजीव शर्मा कहते भी है कि यहां पर तेंदुओं व उनके शिकार का घनत्व अच्छा है। ऐसे में शोध करने में ये सहायक है। अभी तक किसी भी बर्फानी तेंदुएं की रेडियो कालरिंग नहीं हो सकी है। जिस गांव किब्बर में यह केंद्र स्थित है वह एशिया में सड़क से जुड़ा सबसे ऊंचा गांव है। दुनिया का सबसे ऊंचा गांव कौमिक भी इसी गांव के साथ है। यहां से लद्दाख के पहले गांव में पांच दिनों में पहुंचा जा सकता है। बर्फानी तेंदुआ मंगोलिया, चीन, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान व किरगीस्तान जैसे 12 देशों में है जबकि भारत में यह हिमाचल ,जम्मू कश्मीर,उतराखंड,सिक्किम और उत्तराखंड में पाया जाता है। बर्फानी तेंदुएं दुनिया भर में आठ हजार के करीब ही बचे हैं।

ओमप्रकाश ठाकुर

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