“मेरी बेटी तो सिर्फ…”,कोलकाता रेप पीड़िता की मां का भावुक कर देने वाला पत्र क्या आपने पढ़ा
मेरी बेटी कहती थी कि मां मुझे पैसे की जरूत नहीं है, मुझे तो बस अपने नाम के आगे ढेर सारी डिग्रियां चाहिए…ये पंक्तियां उस पत्र की हैं जिसे कोलकाता रेप पीड़िता (Kolkata rape Case) की मां ने अपनी बेटी के याद में लिखा है. अपनी बेटी के नाम मां का लिखा ये खत बेहद भावुक कर देने वाला है. उन्होंने अपने इस पत्र में अपनी बेटी को याद करते हुए ऐसी कई और बातों का जिक्र किया जिसे पढ़ने के बाद कोई भी भावुक हो जाएगा. अपने इस पत्र के जरिए मृतिका की मां ने अपनी बेटी को इंसाफ दिलाने की लड़ाई में आम जनता से भी सपोर्ट मांगा है. उन्होंने कहा कि मेरी ये लड़ाई आप सबकी लड़ाई भी है.
मृतिका की मां ने यह खत शिक्षक दिवस के मौके पर लिखा है. उन्होंने इस पत्र में आगे लिखा है कि मैं मृतका की मां हूं… आज शिक्षक दिवस के मौके पर मैं अपनी बेटी की तरफ से उसके सभी शिक्षकों को नमन करती हूं.मेरी बेटी का बचपन से ही सपना था कि वह डॉक्टर बने. उसके उस सपने के पीछे आप ही प्रेरक शक्ति थे.
इस पत्र में उन्होंने आगे लिखा है कि हम उसके अभिभावक के रूप में उसके साथ रहे हैं, उसने खुद भी बहुत मेहनत की. लेकिन मुझे लगता है, क्योंकि उसे आप जैसे अच्छे शिक्षक मिले,इसलिए वह डॉक्टर बनने का अपना ख्वाब पूरा कर पाई.मेरी बेटी कहती थी कि मां मुझे पैसे की जरूरत नहीं है, बस अपने नाम के आगे ढेर सारी डिग्रियां चाहिए और मैं चाहती हूं कि ज्यादा मरीजों को ठीक करूं.
उन्होंने आगे कहा कि जिस दिन मेरी बेटी के साथ वह घटना हुई उस दिन भी जब वह घर से बाहर गई थी तब भी उसने अस्पताल में कई मरीजों की सेवा की थी. ड्यूटी के दौरान ही आरोपियों ने उसकी हत्या कर दी.
पुलिस पर लगाए थे गंभीर आरोप
आपको बता दें कि कुछ दिन पहले ही पीड़ित परिवार ने एक बार फिर पुलिस प्रशासन पर सवाल खड़े किए थे.पीड़िता के माता-पिता ने आरोप लगाया था कि वे शव को संरक्षित करना चाहते थे.लेकिन उन्हें दाह संस्कार के लिए मजबूर किया गया. ट्रेनी डॉक्टर के माता-पिता और रिश्तेदार सरकारी अस्पताल के बाहर विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए. स्थानीय मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, पीड़िता के पिता ने शहर पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि जब उनकी बेटी का शव उनके सामने था तो एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने उन्हें पैसे की पेशकश की.
पीड़िता के माता-पिता ने कहा था कि हम शव को सुरक्षित रखना चाहते थे. लेकिन बहुत दबाव बनाया गया. लगभग 300-400 पुलिसकर्मियों ने हमें घेर लिया. हम घर लौटे और देखा कि लगभग 300 पुलिसकर्मी बाहर खड़े थे. उन्होंने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि हमें उसका अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
उन्होंने यह भी कहा था कि दाह संस्कार जल्दबाजी में किया गया और इसका खर्च परिवार से नहीं लिया गया. कुछ पुलिस अधिकारियों ने एक खाली कागज पर उनके हस्ताक्षर लेने की कोशिश की. मैंने इसे फाड़कर फेंक दिया.