अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली कैसे और क्यों बना विधायक, जानिए मिनी बस से मर्सिडीज वाली कहानी

मुंबई:
महाराष्ट्र का विधान भवन, जहां कानून बनते हैं, वहां ऐसे भी कदम पड़े हैं, जिनका कानून से छत्तीस का आंकड़ा रहा है. Association For Democratic Reforms की मानें तो पिछले साल चुनी गई नई विधानसभा में 118 विधायक, यानी 41% जन प्रतिनिधि, ऐसे हैं जिनकी फाइलों में आपराधिक दाग हैं. इनमें से तीन पर हत्या, चार पर हत्या की कोशिश और दस पर महिला उत्पीड़न जैसे संगीन आरोप दर्ज हैं, लेकिन यह कोई आज की कहानी नहीं है, सियासत और अपराध का यह गठजोड़ चार दशक पहले से चला आ रहा है.
90 के दशक में उल्हासनगर के कालाणी और वसई-विरार के ठाकुर ने चुनाव जीतकर यह साबित कर दिया था कि TADA आरोपी होना सियासत में प्रवेश की राह में रोड़ा नहीं है. इनके नक्शे-कदम पर चलते हुए कई अंडरवर्ल्ड डॉन के मन में भी राजनीति का कीड़ा कुलबुलाने लगा. इन्हीं में से एक था अरुण गवली (Underworld Don Arun Gawli), जो मुंबई में सक्रिय पांच बड़े गिरोहों में से एक का सरगना था.
राजनीति: कानून से बचने की ढाल
(अरुण गवली की तस्वीर)
90 के दशक में जब मुंबई पुलिस ने अंडरवर्ल्ड के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और गैंगस्टर चुन-चुनकर एनकाउंटर में ढेर होने लगे, तो अरुण गवली को एहसास हुआ कि राजनीति उसके लिए बुलेटप्रूफ जैकेट बन सकती है. उसने खुद की अखिल भारतीय सेना नाम की पार्टी बनाई और 2004 में दक्षिण मध्य मुंबई लोकसभा सीट से किस्मत आजमाई. भले ही जीत न मिली, लेकिन 93,000 वोट हासिल कर उसने साबित कर दिया कि उसकी पकड़ अभी भी मजबूत थी. उसी साल विधानसभा चुनाव हुए, और इस बार गवली ने बाजी मार ली. वो अपराध की गलियों से निकलकर सीधे विधायक बन गया.
दगड़ी चाल से सत्ता के गलियारों तक
बतौर टीवी क्राइम रिपोर्टर, मैं अक्सर दगड़ी चाल में गवली से मिलने जाता था. चुनाव जीतने के कुछ दिनों बाद, एक सुबह उसका फोन आया, “मैं पहली बार विधान भवन जा रहा हूं, शपथ लेने.” यह मेरे लिए एक्सक्लूसिव स्टोरी थी, क्योंकि उसने किसी और पत्रकार को खबर नहीं दी थी. मैं अपने कैमरामैन के साथ दगड़ी चाल पहुंचा.
गवली की सवारी आम नेताओं की तरह नहीं थी. वह मिनी बस में चलता था, जिसमें बीस अंगरक्षक हमेशा तैनात रहते थे. ये सभी मिल मजदूर परिवारों के युवा थे, जो उसे “डैडी” और उसकी पत्नी आशा को “मम्मी” कहते थे. गवली ने अपनी काली कमाई से इन परिवारों की रोटी का इंतजाम किया था, और बदले में ये युवा उसकी ढाल बन गए थे.
बुलेटप्रूफ सुरक्षा और पुलिस की नजरें
सुबह दस बजे, गवली की मिनी बस निकली. उसके साथ करीब 20 मोटरसाइकिल सवार युवा भी सुरक्षा घेरे में चल रहे थे. यह काफिला दगड़ी चाल से विधान भवन की ओर बढ़ा. रास्ते में गवली ने मुझे इंटरव्यू दिया. अपने विधायक बनने की वजहें गिनाईं, जनता की भलाई के वादे किए, लेकिन अपनी अपराध की फाइलों पर चुप्पी साधे रखी.
मुझे महसूस हुआ कि मैं खतरों के खिलाड़ी बन चुका था. एक ऐसी बस में सफर कर रहा था, जो कभी भी किसी हमले का निशाना बन सकती थी. गवली खुद भी हर वक्त खिड़की के बाहर नजरें गड़ाए बैठा था, मानो किसी हमले का इंतजार कर रहा हो. अचानक, मेरी नजर मोटरसाइकिल पर सादे कपड़ों में चल रहे कुछ लोगों पर पड़ी. ये क्राइम ब्रांच के अधिकारी थे, जो गवली पर पैनी नजर बनाए हुए थे. भले ही वह विधायक बन गया था, लेकिन पुलिस की निगाह में वह अब भी अपराधी ही था.
मर्सिडीज से सत्ता के गलियारों में एंट्री
विधान भवन से कुछ मीटर पहले, शिव सागर रेस्टोरेंट के पास गवली की मिनी बस अचानक रुक गई. सामने एक काले रंग की मर्सिडीज पहले से खड़ी थी. गवली बस से उतरा और मर्सिडीज में बैठ गया. शायद यह एक प्रतीकात्मक कदम था. वह संदेश देना चाहता था कि अब वह भी सत्ता के खेल का खिलाड़ी बन चुका है. कानून तोड़ने वाला अब कानून बनाने चला था.