अजीबोगरीब कानून: राजस्थान में यहां कुष्ठरोग पीड़ितों के चुनाव लड़ने पर है बैन

राजस्थान में कुष्ठ रोगियों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध है। राजस्थान पंचायती राज एक्ट 1994 की धारा 19(f) के तहत बना कानून यहां कुष्ठ रोगियों को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं देता।
क्या है धारा 19(f)? धारा 19(f) यह बतलाता है कि पंचायत चुनाव में पंच या किसी अन्य सदस्य के तौर पर लड़ने के लिए क्या-क्या योग्यताएं होनी चाहिए। इस धारा में उन बातों का भी उल्लेख किया गया है कि कौन से लोग चुनाव नहीं लड़ सकते। धारा 19(f) के मुताबिक कोई स्त्री या पुरुष अगर कुष्ठ रोग से पीड़ित है या फिर किसी अन्य ऐसी गंभीर शारीरीक या मानसिक रोग से पीड़ित है जिससे की उसके काम करने में परेशानियां हो सकती हैं ऐसी स्थिति में वो चुनाव नहीं लड़ सकते।
चुनाव आयोग का यह है कहना: इस मामले में राज्य चुनाव आयोग के कमिश्नर प्रेम सिंह मेहरा ने ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ से बातचीत करते हुए कहा कि सरकार प्रत्याशी की योग्यताएं तय करती है। इसमें चुनाव आयोग की कोई भूमिका नहीं होती है। उनका कहना है कि वो सिर्फ सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करते हैं। प्रेम सिंह मेहरा का कहना है कि राज्य चुनाव आयोग हर पांच साल बाद पंचायत और दूसरे राज्य इकाईयों से संबंधित चुनाव कराती है। हालांकि आयोग इससे संबंधित प्रस्ताव सरकार को जरूरी दे सकती है।
लोगों के बीच बढ़ता है भेदभाव: People’s Union For Civil Liberties यानी (PUCL) की राजस्थान ईकाई की अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव का कहना है कि राजस्थान सरकार पंचायत राज को लेकर एक नीति का पालन करती है। इसके सदस्यों के लिए जरूरी योग्यताओं में दो बच्चे, शैक्षणिक योग्यता, घर में शौचालय होना, और कुष्ठ रोग से पीड़ित ना होना इत्यादि शामिल हैं। उनका कहना है कि आज विज्ञान काफी तरक्की कर चुका है। इलाज के जरिए कुष्ठ रोग को खत्म करना संभव है। उनका मानना है कि कुष्ठ रोगियों को चुनाव लड़ने को लेकर जो व्यवस्था अभी लागू है उससे समाज में लोगों के बीच भेदभाव पनपता है। सरकार को इन चुनावों में निचले तबके के लोगों को आगे आने की दिशा में काम करना चाहिए।
इधर पंचायत राज के एक वरिष्ठ अधिकारी ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा है कि धारा 19(f) में संशोधन से संबंधित एक प्रस्ताव तैयार कर लिया गया है। उनका कहना है कि विधानसभा के अगले सत्र में इसे पेश किया जा सकता है।
क्या कहा है SC ने? आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने कुष्ठ पीड़ित रोगियों से भेदभाव किये जाने से संबंधित एक याचिका की सुनवाई करते हुए पहले ही कहा था कि जो लोग कुष्ठ रोग से पीड़ित हैं उन्हें भी समाज में समानता के साथ रहने का अधिकार है। अदालत ने कहा था कि यह केंद्र और राज्य सरकार का कर्त्व्य है कि वो कुष्ठ रोगियों के पुनर्वास और उन्हें मुख्य धारा में जोड़ने की दिशा में काम करें।