अनर्गल विरोध, दिल्ली का दर्जा

अनर्गल विरोध

गांधी और उनकी विचारधारा से संघ का विरोध समझा जा सकता है। संघ आजादी के पूर्व से ही इस बारे में स्पष्ट था कि हिंदुओं के लिए अलग और मुसलमानों के लिए एक अलग देश बनाया जाए। मगर गांधीजी नहीं चाहते थे कि देश को सिर्फ मजहब के आधार पर बांट दिया जाए। वे चाहते थे कि दोनों साथ रहें। हिंदू महासभा के एक जुनूनी कार्यकर्ता द्वारा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल चाहते थे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए। इस संबंध में उन्होंने प्रधानमंत्री नेहरू से लंबा पत्राचार किया था जो बतौर सबूत आज भी मौजूद है।

पिछले दिनों गांधी जयंती पर सोशल मीडिया में अचानक से गांधी-विरोध और गोडसे-वंदना की दर्जनों टिप्पणियां नजर आने लगीं। राष्ट्रपिता के बारे में अनर्गल टिप्पणियां धड़ल्ले से ‘लाइक’ और ‘शेयर’ भी की जा रही थीं। किसी को भी इसमें देशद्रोह की बू नहीं आई। पुलिस ने भी ऐसा कोई मामला दर्ज नहीं किया। भारतीय मुद्रा को विश्वसनीय बनाने वाले बापू अपमानित होते रहे। सत्ता शिखर से इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर किसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं थी। और उन्होंने देश को निराश भी नहीं किया।
एक तथ्य स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि गांधी और उनकी विचारधारा के विरोधी वैचारिक रूप से कंगाल हैं। ये लोग अपने कुएं में चाहे जितनी छलांग भर लें, लेकिन इनकी बात भारत के बाहर तब तक वजनदार नहीं मानी जाती जब तक ये उस बूढ़े फकीर का संदर्भ नहीं दे देते। देश के बाहर देश की पहचान गौतम-गांधी के देश के रूप में ही रही है।

दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों में गांधी किसी न किसी रूप में मौजूद हैं। कम्युनिस्ट और मध्यपूर्व के देशों को छोड़ कर गांधी प्रतिमा के रूप में विश्व के दो तिहाई देशों में पहचाने जाते हैं। जहां तक साहित्य का सवाल है, गांधी पर इतना लिखा गया है कि उस सबको जोड़ा जाए तो धरती से चांद के दो फेरे लगाए जा सकते हैं। ऐसी वैश्विक स्वीकार्य हस्ती का अपमान इन लोगों को बौना ही बनाएगा, मशहूर नहीं।वैचारिक शून्य मस्तिष्कों से समझदारी की उम्मीद नहीं की जा सकती। इनका अस्तित्व ही गांधी विरोध में है। इन लोगों पर दया आनी चाहिए!

’रजनीश जैन, शुजालपुर शहर, मध्यप्रदेश

 

दिल्ली का दर्जा

दिल्ली के मुख्यमंत्री इन दिनों उपराज्यपाल और केंद्र सरकार से काफी नाराज हैं। उनकी नाराजगी बतौर मुख्यमंत्री अपने सीमित अधिकारों को लेकर है। यहां गौरतलब है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के दूसरे और पहले चुनाव से पूर्व हर उम्मीदवार को पता था कि यह पूर्ण राज्य नहीं है।

‘जैसा है जहां है’ के आधार पर ही आम आदमी पार्टी के सभी उम्मीदवारों ने चुनाव के लिए नामांकन फॉर्म भरा था। अब विधायक बनने के बाद, मंत्री बनने के बाद दिल्ली के संविधान को, व्यवस्था को कोसना अनुचित है। हर उम्मीदवार को चुनाव से पहले ही पता था कि उसे ब्रांच मैनेजर बनना है। ब्रांच मैनेजर बनने के बाद जनरल मैनेजर के रैंक की बातें करना अनुचित है। डायरेक्टर चाहे तो ब्रांच को ‘अपग्रेड’ कर सकता है।
’जीवन मित्तल, मोती नगर, नई दिल्ली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *