अब आई याद

देर से ही सही, भारत सरकार को घरेलू नौकरों की याद आई है तो इसे एक सकारात्क पहल मानना चाहिए। हालांकि अभी एक ठीकठाक कानून बनने में ढेरों अगर-मगर हैं। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने घरेलू कामगारों के लिए राष्ट्रीय नीति का मसविदा तैयार कर लिया है। उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही इसे कानूनी दर्जा मिलेगा। फिलहाल जो प्रारूप तैयार हुआ है अगर उसे अमली जामा पहनाया जाता है तो घरेलू सहायकों को हर वे अधिकार हासिल होंगे, जो दूसरे श्रमिकों को मिले हुए हैं। मसलन उनका न्यूनतम वेतन तय किया जाएगा, वे संगठन बना सकेंगे या किसी दूसरे संगठन से संबद्ध हो सकेंगे। उनके कौशल विकास और सामाजिक सुरक्षा की गारंटी दी जाएगी। घरेलू मजदूरों के अवकाश और काम के घंटे को भी परिभाषित किया जाएगा और उनके लिए शिकायत निवारण और विवादों के समाधान की भी व्यवस्था होगी।

वे राज्य व्यवस्था के तहत या जिले के श्रम विभाग में संस्थागत नौकर के रूप में खुद को पंजीकृत करा सकेंगे। इसमें नियुक्त एजेंसियों के नियमन का भी प्रावधान किया गया है। फिलहाल सरकार ने एक परिपत्र जारी कर इस पर सुझाव आमंत्रित किए हैं, जिसे 16 नवंबर के बाद किसी ठोस रूप में परिवर्तित किया जाएगा। कुछ राज्यों ने जरूर इस मामले में कानून बनाए हैं, लेकिन उन्हें भी लागू कराना टेढ़ी खीर है।  भट्ठा मजदूरों की ही तरह घरेलू नौकरों की मुश्किलें बहुत ज्यादा हैं। वे ठेकेदारों और बिचौलियों से लेकर अपने नियोक्ताओं-मालिकों की चक्की में पिसते रहते हैं। सरकारें न उन्हें कोई न्याय दिला पाती हैं और न कभी उनके बारे में ज्यादा सोचती हैं। देश भर में घरेलू कामगारों, जिनमें महिलाओं की भी बड़ी तादाद है, का कोई व्यवस्थित आंकड़ा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के एक पुराने आंकड़े के मुताबिक इनकी कुल संख्या बयालीस लाख है। साफ लगता है कि यह संख्या वास्तविकता से काफी कम है। यह भी एक विडंबना है कि सरकार के पास इस बारे में सिर्फ इसलिए कोई निश्चित जानकारी नहीं है कि यह तबका समाज के उपेक्षित हिस्से से आता है। इनकी कोई आवाज नहीं है और न ही इनके पास कोई संगठन है। उनके काम के घंटे और मेहनताना भी उनके मालिक ही तय करते हैं। कुल मिलाकर उनकी जिंदगी अंतहीन शोषण की दास्तान ही होती है।

मीडिया में रोजाना घरेलू नौकरों, खासकर महिलाओं और लड़कियों के साथ हिंसा, बलात्कार और तरह-तरह के अत्याचार की खबरें हम देखते हैं। ऐसी-ऐसी घटनाएं सामने आती हैं कि देख-सुनकर किसी का भी दिल दहल जाए। पिछले दिनों खबर आई कि एक घरेलू परिचारिका को उसकी मालकिन ने साल भर से बंधक बना रखा था, आखिरकार उसने फ्लैट की खिड़की से छलांग लगा दी, तब जाकर इसका राज सामने आया। घरेलू नौकरों की कठिनाइयों को अब तक क्यों नजरअंदाज किया जाता रहा है, यह एक अहम सवाल है। अब भी बहुत ढीलेढाले ढंग से काम हो रहा है। यही कह सकते हैं कि जहां कुछ नहीं था, वहां बस एक शुरुआत हुई है। जितना जल्दी इस दिशा में कुछ सार्थक हो जाए, उतना ही अच्छा।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *