अररिया उपचुनाव: टिकट नहीं मिलने से बीजेपी के शाहनवाज हुसैन को मिला चैन, पर मंडरा रहा सुकून छिनने का खतरा
बिहार उप चुनाव में अररिया संसदीय सीट से भाजपा ने प्रदीप सिंह को उम्मीदवार बनाया है। इस फैसले से पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने थोड़ी राहत की सांस ली है। अब 2019 लोकसभा चुनाव में भागलपुर सीट से उनकी दावेदारी प्रबल हो गई है। शाहनवाज हुसैन ने जनसत्ता.कॉम से कहा कि 2014 का चुनाव हारने के के बाद भी दिलोजान से भागलपुर की जनता की सेवा कर रहा हूं लेकिन कई दावेदार यहां नजर गड़ाए हुए हैं। बता दें कि शाहनवाज हुसैन का नाम अररिया उप चुनाव के लिए तेजी से उभरा था। इनके नाम की कई होर्डिंग्स भी अररिया में लगाई गई थी। इससे हुसैन भी पेशोपेश में थे लेकिन भागलपुर संसदीय इलाके का ताबड़तोड़ दौरा कर, दीपावली मिलन, शादी-ब्याह जैसे सामाजिक समारोहों में इनकी हाजिरी बताने लगी कि इन्होंने भागलपुर छोड़ने का मन नहीं बनाया है।
अररिया सीट पूर्व केंद्रीय मंत्री और राजद सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन से खाली हुई है। 11 मार्च को यहां वोटिंग है। अररिया के बगल की संसदीय सीट किशनगंज से 1999 में चुनाव जीतकर शाहनवाज हुसैन केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके हैं। शायद इसी वजह से उनके नाम की चर्चा ने जोर पकड़ा था। 2004 का चुनाव हारने के बाद साल 2006 में भागलपुर संसदीय सीट पर उप चुनाव में फिर से जीते और 2014 तक भागलपुर के सांसद रहे। यह सीट सुशील कुमार मोदी के इस्तीफे से खाली हुई थी। तब सुशील मोदी बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी एनडीए की पहली सरकार में उप मुख्यमंत्री बनाए गए थे।
2014 में नरेंद्र मोदी की देशव्यापी लहर के बावजूद शाहनवाज हुसैन को भागलपुर से पराजय का मुंह देखना पड़ा। तब से ये असहज हैं। भले ही केंद्रीय नेतृत्व इन्हें राष्ट्रीय प्रवक्ता और केंद्रीय चुनाव समिति का सदस्य बनाए हुए है मगर 2014 की हार से शाहनवाज चिंतित हैं। अररिया से प्रदीप सिंह को दोबारा उम्मीदवार बनाने से शाहनवाज ने चैन की सांस ली है क्योंकि वो अररिया से नहीं लड़ना चाह रहे थे। बता दें कि 2014 के आम चुनाव में प्रदीप सिंह को राजद के तस्लीमुद्दीन ने हरा दिया था। इस बार इनका मुकाबला तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम से है जिन्होंने हाल ही में जदयू की विधायकी छोड़ी है और राजद का दामन थामा है। इधर, भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ताओं के मुताबिक भाजपा को मुस्लिम बहुल इलाके में मुस्लिम उम्मीदवार के खिलाफ हिंदू प्रत्याशी उतारने को मजबूर होना पड़ा है। पार्टी ने बाजी भी हारे हुए घोड़े यानी प्रदीप सिंह पर ही लगाया है। वैसे राजेन्द्र गुप्ता भी इस रेस में थे।
भागलपुर संसदीय सीट पर भाजपा के दो दिग्गज शाहनवाज हुसैन और अश्विनी चौबे के बीच 36 का आंकड़ा जगजाहिर है। 2014 का चुनाव इसी आंकड़े की वजह से भाजपा को हारना पड़ा था। पार्टी ने टकराव की सूरत में अश्विनी चौबे को बक्सर और शाहनवाज हुसैन को भागलपुर से टिकट दिया था मगर चौबे तो जीत गए, शाहनवाज हार गए। 2019 में भी इस संसदीय सीट पर घमासान के आसार हैं। चर्चा का बाजार गर्म है कि केंद्र में मंत्री अश्विनी चौबे फिर से भागलपुर से ही अपनी दावेदारी ठोकेंगे क्योंकि वो यहीं के निवासी हैं। दूसरे दावेदार के रूप में झारखंड के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे को भी माना जा रहा है। ये भी भागलपुर के वाशिंदें है। ऐसे में चर्चा यह भी है कि पार्टी किसी ऐसे चौथे व्यक्ति को भागलपुर से उतार सकती है जो यहां के एसपी रह चुके हैं। ये आईपीएस अधिकारी 2018 में ही रिटायर होनेवाले हैं। 2019 में भी रिटायर होने वाले एक आईपीएस अधिकारी सिल्क नगरी की ओर सियासी टकटकी लगाए बताए जाते हैं। फिलहाल कयासों का बाजार गर्म है।