अरुण जेटली की दो टूक- तेल पर एक्साइज ड्यूटी नहीं घटाएंगे, लोग ईमानदारी से टैक्स दें
तेल की कीमतों में ताबड़तोड़ वृद्धि के बाद पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाले कर में कटौती की मांग तेज हुई थी। पेट्रोल और डीजल को जीएसटी में भी डालने की बात उठी थी। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने फौरी राहत देने की वकालत करते हुए खुद इस पर विचार करने की बात कही थी। लेकिन, अरुण जेटली ने पेट्रोलियम पदार्थों पर लगने वाले टैक्स को लेकर केंद्र सरकार का रुख स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने तेल पर लगने वाले एक्साइज ड्यूटी में कटौती न करने के संकेत दिए हैं। साथ ही नागरिकों से पूरी ईमानदारी से टैक्स देने को कहा है। जेटली ने कहा कि पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले एक्साइज ड्यूटी में कटौती का प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। लंबे समय बाद हॉस्पिटल से लौटे जेटली ने कहा कि वेतनभोगी कर अदायगी में अपने हिस्से का भुगतान कर रहे हैं, ऐसे में समाज के अन्य तबकों को भी टैक्स देने का रिकॉर्ड को सुधारना होगा। भारतीय समाज अभी भी टैक्स देने वाली सोसाइटी बनने से काफी दूर है। उन्होंने राजनेताओं से भी इस बाबत अपील की है। जेटली ने फेसबुक पोस्ट में कहा, ‘यदि गैर-तेल श्रेणी में होने वाली कर चोरी रुक जाए और लोग ईमानदारी से टैक्स दें तो कर राजस्व के लिए पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता खुद-ब-खुद ही कम हो जाएगी।’
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल का असर घरेलू बाजार पर भी पड़ा था। इसके कारण पेट्रोलियम उत्पादों में लगातार वृद्धि दर्ज की गई थी। पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले शुल्क में कटौती की मांग तेज हो गई थी। जेटली ने इस पर सरकार का रुख साफ किया है। उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर लगने वाले एक्साइज ड्यूटी में कटौती करने से वित्तीय स्थिति पर मध्यम से लेकर दीर्घकालीन अवधि में प्रतिकूल असर पड़ेगा। उन्होंने बताया कि पिछले चार वर्षों में टैक्स-जीडीपी अनुपात में सुधार (10 से 11.5 फीसद) हुआ है। बता दें कि पेट्रोलियम उत्पादों का कर राजस्व में उल्लेखनीय योगदान होता है। केंद्र के साथ राज्यों के लिए भी यह राजस्व का सबसे बड़ा माध्यम है। हालांकि, कीमतें ज्यादा बढ़ने की स्थिति में विभिन्न राज्य सरकारें टैक्स में कुछ हद तक कटौती कर आम लोगों को राहत देने की कोशिश करती हैं। पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी में डालने की भी वकालत की जा रही है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अधिकांश राज्य इसके लिए तैयार नहीं है, क्योंकि इससे उनके राजस्व वसूली पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। राज्य सरकारें पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर ही डाल देती हैं।