अर्थशास्त्री का दावा- मोदी राज में हुआ 77 हजार करोड़ का लोन घोटाला, नरम पड़ी है सरकार
जानेमाने अर्थशास्त्री प्रसेनजीत बोस ने देश की चरमराती बैंकिंग व्यवस्था को लेकर चौंकाने वाला खुलासा किया है। उन्होंने सूचना का अधिकार कानून के तहत मिली जानकारी के आधार पर दावा किया है कि केंद्र में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से अब तक 77,000 करोड़ रुपये का लोन घोटाला हो चुका है। हजारों करोड़ के लोन फ्रॉड के बावजूद सरकार सुस्त पड़ी है। ‘रेडिफ’ को दिए इंटरव्यू में बोस ने कहा कि वर्ष 2008-09 में 1,542 करोड़ मूल्य के बैंकिंग धोखाधड़ी के मामले सामने आए थे। वर्ष 2017-18 में यह आंकड़ा बढ़कर 22,469 करोड़ रुपये से ज्यादा तक पहुंच गया। उन्होंने बताया कि वर्ष 2016 में आरबीआई के नए दिशा-निर्देश के बाद से अब तक 20,000 करोड़ रुपये का लोन फर्जवाड़ा हो चुका है। प्रसेनजीत बोस के अनुसार, अप्रैल 2014 से मार्च 2018 के बीच मोदी सरकार के कार्यकाल में 77,000 करोड़ रुपये का बैंक लोन घोटाला हो चुका है।
मोदी सरकार में हालात और बिगड़े: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में लोन घोटाले की स्थिति और बिगड़ी है। प्रसेनजीत बोस की मानें तो मोदी के शासनकाल में हजारों करोड़ रुपये का लोन घोटला हो चुका है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि आरबीआई द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों में इस बात का उल्लेख नहीं है कि ये लोन कब दिए गए थे? बोस ने बताया कि लोन घोटाला को अंजाम देने वालों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर उन्हें आरबीआई के जवाब का इंतजार है। बकौल बोस, लोन फर्जीवाड़े के मामले में कितने लोगों की गिरफ्तारी हुई या कितने आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाया गया, इस बात की अभी तक जानकारी नहीं मिल सकी है।
पुलिस या जांच एजेंसियां पुलिस के अंदर नहीं: प्रसेनजीत बोस ने आरबीआई की स्वायत्तता को लेकर भी सवाल उठाया है। उन्होंने बताया कि भ्रष्टाचार अपराध है। आरबीआई विनियामक प्रावधानों के तहत किसी को जवाबदेह ठहरा सकता है। लेकिन, इस स्तर के भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए आरबीआई के नियंत्रण में न तो प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) या पुलिस या सतर्कता विभाग है। सीबीआई और ईडी को ऐसे मामलों में जरूर शामिल करना चाहिए। बोस ने आरोप लगाया कि लोन घोटाला के आरोपियों का नाम जारी करने के मामले में मोदी सरकार का रवैया बिल्कुल भी पारदर्शी नहीं है।
लोकतंत्र को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा: आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ ने लोन रिकवरी के मामले में बैंकों के दोहरे रवैये की भी आलोचना की है। बोस ने बताया कि किसान यदि लोन चुकाने में विफल रहते हैं तो उन्हें आत्महत्या करनी पड़ती है। मध्यम वर्गीय लोग यदि घर या गाड़ी की ईएमआई नहीं चुका पाते हैं तो उनके घर और वाहन को जब्त कर लिया जाता है। लेकिन, जब कोई कंपनी बैंकों का कर्ज नहीं चुका पाती है तो उसके लोन को एनपीए में डाल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है, क्योंकि जनतंत्र में सभी नागरिकों को समान माना जाता है।