अविश्वास प्रस्ताव: विपक्ष को मात देने के लिए खुद अमित शाह ने संभाली कमान
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का इरादा ना सिर्फ विश्वास मत को जीतने का है, बल्कि वे इसे दो तिहाई बहुमत से जीतना चाहते हैं। बीजेपी के ‘चाणक्य’ इसके लिए ना सिर्फ एनडीए कुनबे के दलों से संपर्क साध रहे हैं, बल्कि उन्होंने कई दूसरे दलों के नेताओं से भी संपर्क किया है। अमित शाह अविश्वास प्रस्ताव को जीतकर विपक्ष के उत्साह को खत्म कर देना चाहते हैं, और उसका नैतिक मनोबल तोड़ देना चाहते हैं। पार्टी ने विपक्ष पर हमले के लिए प्रखर वक्ताओं का चुना है और इसकी समाप्ति करेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। जिनके भाषण पर देश ही नहीं दुनिया की निगाहें होंगी।
संसद में 273 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से बीजेपी को इस मुद्दे पर बोलने के लिए सबसे ज्यादा वक्त मिला है। लोकसभा से मिली जानकारी के मुताबिक चर्चा के आवंटित कुल 7 घंटों में से बीजेपी को 3 घंटे 33 मिनट और इस वक्त 48 सांसदों वाली कांग्रेस को मात्र 38 मिनट मिले हैं। सूत्र बताते हैं कि अमित शाह ने AIADMK, TRS और BJD से संपर्क किया है और इन पार्टियों से अपील की है कि वे वोटिंग के दौरान गैरहाजिर रहने के बजाय सरकार के पक्ष में मतदान करें। इस वक्त संसद में एआईएडीएमके के 37 टीआरएस के 11 और बीजेडी के 19 एमपी लोकसभा में हैं। सूत्रों के मुताबिक AIADMK सरकार को सपोर्ट कर सकती है। जबकि बीजेडी और टीआरएस वोटिंग के दौरान गैरहाजिर रह सकते हैं। अमित शाह ने गुरुवार को पार्टी के फ्लोर मैनेजरों से लंबी मीटिंग की। उन्होंने निर्देश दिया कि जो सांसद 19 जुलाई को गायब थे वे 20 जुलाई को निश्चित रूप से संसद पहुंचे।
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चिंता शिवसेना को लेकर है। बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगियों में शुमार में रहे शिवसेना से इस वक्त पार्टी के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं। गुरुवार को अमित शाह ने शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को खुद फोन किया था। लेकिन शिवसेना के रूख पर रहस्य बरकार है। शिवसेना ने पहले अपने सांसदों को व्हिप जारी करते हुए कहा था कि वे 20 जुलाई को संसद में मौजूद रहें और सरकार का समर्थन करें। लेकिन इस मामले में ट्विस्ट तब आ गया जब शिवसेना के एक सांसद ने कहा कि ये आखिरी फैसला नहीं है। इस सांसद ने बताया कि आखिरी फैसला कल आएगा। इधर शिवसेना ने आज (20 जुलाई) अपने मुखपत्र सामना के जरिये नरेंद्र मोदी सरकार पर फिर से निशाना साधा है। सामना में लिखा गया है कि इस वक्त देश में तानाशाही शासन चल रहा है। मुखपत्र कहता है कि वे इसका समर्थन करने की बजाय जनता के साथ जाना चाहेंगे।