अशांति के बीच
दार्जीलिंग अब भी जिस उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है, उसमें सुरक्षा और प्रशासन के स्तर पर जरा भी कोताही बरती गई तो हालात ज्यादा बिगड़ सकते हैं। ऐसी स्थिति में वहां तैनात केंद्रीय सुरक्षा बलों की तादाद में कमी करने का केंद्र सरकार का फैसला उचित नहीं था। अब कोलकाता उच्च न्यायालय ने केंद्र के उस फैसले पर रोक लगा कर यह साफ कर दिया है कि दार्जीलिंग में हालात को देखते हुए ऐसा करना फिलहाल ठीक नहीं होगा। पिछले हफ्ते केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने एक आदेश के तहत दार्जीलिंग से सीआरपीएफ की पंद्रह कंपनियों को हटा कर दस करने को कहा था, जिस पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आपत्ति जताई थी।
सुरक्षा बलों को वहां तैनात रखने या उसमें से कुछ कंपनियों को हटाने के मसले पर केंद्र और राज्य के पास अपने-अपने तर्क हैं। मसलन, वहां स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए राज्य सरकार अभी सुरक्षा बलों की मौजूदा तैनाती में कोई फेरबदल नहीं चाहती है, लेकिन केंद्र का कहना है कि त्योहारों के मौसम में अन्य राज्यों से केंद्रीय बलों की मांग की अनदेखी नहीं की जा सकती। फिर, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव होने वाले हैं और ऐसे में अकेले दार्जीलिंग में सुरक्षा बलों को टिकाए रखने का औचित्य नहीं है।
इसके बावजूद इस बात से शायद ही किसी की असहमति हो कि दार्जीलिंग फिलहाल जिस उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा है, उसमें हालात को काबू में रखने के लिए अगर सुरक्षा बलों की मौजूदगी जरूरी है तो अभी उसे बनाए रखना चाहिए। दार्जीलिंग में हालात में अपेक्षया सुधार जरूर है, लेकिन हिंसा की आशंका अभी बनी हुई है। ऐसे में केंद्र ने सीआरपीएफ की कंपनियों की संख्या में कटौती की अर्जी देकर एक तरह से ममता बनर्जी को यह आरोप लगाने का मौका दे दिया कि बंगाल को अस्थिर करने के लिए साजिश की जा रही है। गोरखालैंड आंदोलन के फिर से जोर पकड़ लेने के बाद हालात जटिल हो चुके हैं। जीटीए यानी गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन के गठन के बावजूद राज्य सरकार को उसके साथ तालमेल स्थापित करना जरूरी नहीं लगा। कई सवाल अब भी अनसुलझे हैं और ऐसी स्थिति में तनाव पैदा करने वाली कोई नई बात करने से बचने की जरूरत थी, जिसकी अनदेखी की गई।
मौजूदा तनाव और हिंसा की वजह राज्य के सभी स्कूलों में बांग्ला भाषा की पढ़ाई का मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का फैसला था। दार्जीलिंग जिस तरह मुख्य रूप से नेपाली भाषा जानने-समझने वालों का क्षेत्र है, उसमें इस आदेश पर तीखी प्रतिक्रिया हुई। हालांकि राज्य सरकार ने अपने कदम पीछे खींचते हुए कहा कि बांग्ला की अनिवार्य पढ़ाई के आदेश से दार्जीलिंग अलग रहेगा। मगर इस सफाई के बावजूद विरोध प्रदर्शनों का दौर नहीं थमा और उन्होंने हिंसक शक्ल ले ली। आज उस तनाव की वजह से हालत यह है कि दार्जीलिंग जिस पर्यटन के लिए जाना जाता है, उसमें हाल के दिनों में भारी गिरावट आई है। लोग अब दार्जीलिंग के बजाय सिक्किम का रुख कर रहे हैं। लंबे समय तक यही स्थिति बनी रही तो क्षेत्रीय अशांति से उपजी राजनीति क्या शक्ल लेगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। जरूरत इस बात की है कि राज्य और केंद्र मिल कर ठोस हल के लिए पहलकदमी करें। अकेले सुरक्षा बलों के सहारे लंबे समय तक किसी भी इलाके में शांति कायम नहीं रखी जा सकती।