असमां जहांगीर सुपुर्द-ए-खाक: इनके चलते दुनिया में ऊंचा हुआ पाकिस्तान का सिर, फिर भी किया था नजरबंद
पाकिस्तान की जानीमानी मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील असमां जहांगीर को मंगलवार (13 फरवरी) को सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया। नमाज-ए-जनाजा लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में आयोजित किया गया। असमां जहांगीर की इच्छा के मुताबिक उन्हें उनके बेदियां रोड स्थित फार्महाउस में दफनाया गया। उनकी अंतिम यात्रा में बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे। मानवाधिकार और गरीब तबकों के लिए संघर्ष करने वाली असमां जहांगीर ने दुनिया भर में पाकिस्तान का सिर का ऊंचा किया था। इसके बावजूद वर्ष 2007 में सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ ने उन्हें नजरबंद कर दिया था। स्ट्रीट फाइटर के तौर पर विख्यात असमां जहांगीर का कार्डियक अरेस्ट के कारण रविवार (11 फरवरी) को निधन हो गया था। उनके शव को मंगलवार (13 फरवरी) को अस्पताल से उनके गुलबर्ग स्थित घर लाया गया था। मानवाधिकार के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए सिंध के मुख्यमंत्री सैय्यद मुराद अली शाह ने प्रधानमंत्री शाहिद खाकन अब्बासी को पत्र लिखकर राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार कराने का आग्रह किया था। सीनेट के अध्यक्ष राजा रब्बानी और पाकिस्तान की सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) के नेता और सांसद परवेज राशिद ने भी पीएम अब्बासी से ऐसी ही मांग की थी। इससे पहले राष्ट्रपति ममनून हुसैन और पीएम अब्बासी ने असमां जहांगीर के निधन पर शोक व्यक्त किया था।
असमां जहांगीर आजीवन गरीब, पीड़ित और पिछड़े समुदाय के लिए संघर्ष करती रहीं। वह पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की सह-संस्थापकों में एक थीं। असमां ने तानाशाह जिया-उल-हक के समक्ष भी घुटने नहीं टेके थे। सैन्य शासन के दौरान भी वह मानवाधिकार के लिए लगातार संघर्ष किया था। असमां जहांगीर का जन्म 27 जनवरी, 1952 में लाहौर में हुआ था। उन्होंने लाहौर से ही कानून की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने स्विट्जरलैंड, कनाडा और अमेरिका से भी उच्च शिक्षा हासिल की थी। असमां न्यायपालिका द्वारा अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम करने के खिलाफ भी मुखर रही थीं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के साथ विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक के साथ भी जुड़ी रही थीं। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने वीमंस एक्शन फोरम की स्थापना की थी। उन्हें उल्लेखनीय काम के लिए रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड समेत कई सम्मान से नवाजा जा चुका था। असमां हमेशा से कट्टरपंथियों के निशाने पर रही थीं।