असली महफिल तो थी विनोद खन्ना ने लूटी
विनोद खन्ना- (6 अक्तूबर, 1946-27 अप्रैल, 2017)
लोगों के लिए विनोद खन्ना को समझना हमेशा मुश्किल रहा है। उन्होंने करियर के शिखर पर शोहरत और दौलत को त्यागा और शांति की तलाश में ओशो रजनीश से जुड़ गए। वहां से शांति पा कर लौटे तो सबसे अशांत माने जाने वाले क्षेत्र राजनीति में सक्रिय होकर सांसद बन गए। उन्होंने अपने बेटे अक्षय खन्ना के लिए ‘हिमालयपुत्र’ बनाई। इसमें जब्बर सिंह के बेटे (अक्षय खन्ना) और गब्बर सिंह के बेटे (शादाब) खान को साथ लाने की कोशिश भी की।
मेरा गांव मेरा देश’ (1971) में जब्बर सिंह की भूमिका विनोद खन्ना ने निभाई थी, जिनका आज जन्मदिन है। सफेद धोती-काला कुरता, नीला साफा, ऐंठी हुई मूंछ, माथे पर काला तिलक, कान में बालियां, गले में ताबीज, हाथ में बंदूक थामे जब्बर सिंह बात-बात पर गोलियां चलाकर लोगों की जान ले लेता था। ‘शोले’ के लेखकों में से एक सलीम को उनके पुलिस अधिकारी पिता ने डाकू गब्बर की कहानी सुनाई थी, जो पुलिस वालों की नाक काट लिया करता था। सलीम ने उसी गब्बर का नाम ‘शोले’ के खलनायक को दिया। गब्बर की ड्रेस ‘मेरा गांव मेरा देश’ के हीरो की फौजी ड्रेस से मिलती थी। ‘मेरा गांव मेरा देश’ में रिटायर फौजी (जयंत, अमजद खान के पिता) एक कैदी को डाकुओं का मुकाबला करने के लिए गांव लेकर आता है। ‘शोले’ में यही काम अवकाशप्राप्त पुलिस अधिकारी करता है।
गब्बर अपनी रिवॉल्वर में तीन गोलियां भरता है, तो जब्बर सिंह एक। ‘मेरा गांव मेरा देश’ में धर्मेंद्र आशा पारेख को निशाना लगाना सिखाते हैं, तो ‘शोले’ में धर्मेंद्र हेमा मालिनी को। ‘शोले’ का गब्बर भी गाना सुनने का शौक रखता है और ‘मेरा गांव मेरा देश’ का जब्बर भी। दोनों फिल्मों में काफी कुछ समान था। ‘शोले’ की कहानी सलीम-जावेद ने जीपी सिप्पी को 15 मिनट में सुना दी थी और ‘मेरा गांव मेरा देश’ की कहानी के नाम पर राज खोसला के पास थी अखबार में छपी एक खबर की कतरन।
तब खोसला का डंका बज रहा था क्योंकि वह ‘सीआइडी’, ‘कालापानी’, ‘वो कौन थी’, ‘मेरा साया’, ‘दो रास्ते’ जैसी हिट फिल्में दे चुके थे। राज खोसला ने मेरा गांव मेरा देश के लिए धर्मेंद्र, आशा पारेख, विनोद खन्ना को साइन तो कर लिया, मगर कहानी तैयार नहीं थी। जिस कतरन पर उन्होंने अपने लेखक जीआर कामत से कहानी तैयार करवाई, वह उन्हें पसंद नहीं आई। उधर विनोद खन्ना और धर्मेंद्र उनसे कहानी सुनाने की फरमाइश कर रहे थे। आखिर खोसला ने पहले धर्मेंद्र को बताया कि उनके पास कोई कहानी नहीं है। फिर विनोद खन्ना को बुला कर कहा कि वह खुद को एक ऐसे डाकू के रूप में तैयार करें, जो निर्दयी, क्रूर, हिंसक और बात-बात पर गोली चलाता हो। विनोद खन्ना अपनी भूमिका समझ गए और कहानी की जिद छोड़ दी। मगर धर्मेंद्र दो कदम आगे निकले।
एक दिन उन्होंने राज खोसला को अपने घर बुलाकर उनके सामने कुछ सीन रख दिए। राज खोसला ने उन्हें पढ़ा और उछल पड़े। उन दृश्यों के आधार पर फिल्म की शूटिंग शुरू की जा सकती थी। राज खोसला के पूछने पर धर्मेंद्र ने बताया कि पहली बार किसी फिल्म के लिए उन्होंने ये दृश्य खुद लिखे हैं। ‘मेरा गांव मेरा देश’ रिलीज हुई और सुपर हिट रही। विनोद खन्ना का निभाया हैंडसम मगर क्रूर जब्बर सिंह दर्शकों को खूब पसंद आया। विनोद खन्ना को भी अपने करियर में इस फिल्म की सफलता का काफी फायदा हुआ। लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के संगीत और आनंद बख्शी के लिखे गीत – ‘कुछ कहता है ये सावन…’, ‘आया आया अटरिया पे कोई चोर…’, ‘मार दिया जाए या छोड़ दिया जाए..’जुबान पर चढ़ गए। फिल्म के लिए फिल्मफेयर पुरस्कारों में धर्मेंद्र को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए नामांकित किया गया, मगर असली महफिल तो लूटी थी विनोद खन्ना ने।