अस्ताचलगामी सूर्य को दिया गया अर्घ्य
शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही चार दिन के इस महापर्व का समापन हो जाएगा। बिना पुरोहित और बिना मंत्र के बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाए जाने वाला पर्व अब दिल्ली और एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) का भी मुख्य पर्व बन गया है। दिल्ली और आस-पास के इलाकों में रहने वाले पूर्वांचल के प्रवासियों का पहला प्रयास तो इस पर्व में अपने गांव जाने का होता है लेकिन एक तो संख्या ज्यादा होने और ज्यादातर परिवारों की तीसरी पीढ़ी इस इलाके में बड़ी होने के चलते अपने मूल स्थान के बजाए लोग यहीं छठ मनाने लगे हैं।
दिल्ली और आस-पास के शहरों-गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुरुग्राम, बल्लभगढ़, पलवल आदि का कोई इलाका ऐसा नहीं है जहां छठ का आयोजन नहीं हुआ हो। वजीराबाद से लेकर ओखला तक यमुना नदी के किनारे का कोई इलाका ऐसा नहीं था जहां लोगों ने पूजा नहीं की। यही हाल हिंडन नदी, नहर, नजफगढ़ नहर से लेकर भलस्वा और संजय झील आदि में भी दिखा। जहां नदी-नाले नहीं हैं वही लोगों ने खुद श्रमदान करके तालाब बनाया और भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया।
र्वांचल के लोगों की दिल्ली में बढ़ती आबादी से हर दल के नेता इस पर्व पर सक्रिय हो जाते हैं। बुधवार को खरना की शाम को प्रसाद खाने के लिए विभिन्न पूर्वांचल बहुल इलाकों में हर दल के नेता आते-जाते रहे। आम आदमी पार्टी ने इस साल छठ घाटों की संख्या बढ़ाकर 565 कर दी है। विकास मंत्री गोपाल राय पिछले कई दिनों से घाटों का दौरा करते रहे हैं। बिहार मूल के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ निगमों को भी घाटों की सफाई के लिए सक्रिय किया। कांग्रेस की ओर से कमान पूर्व सांसद और बिहार मूल के नेता महाबल मिश्र ने संभाल रखी थी। कांग्रेस नेता जयकिशन का आरोप है कि दिल्ली सरकार और नगर निगम छठ की तैयारी में विफल रहे हैं। मजदूर नेता बलिराम सिंह का कहना है कि सरकार से ज्यादा खुद लोगों ने छठ की तैयारी की है।