आईटी कंपनियों पर टैक्स अथॉरिटी की नजर, नोटिस पिरीयड पूरा न करने वाले कर्मचारियों से लिए पैसे तो देना होगा 18% टैक्स

अप्रत्यक्ष कर विभाग वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का दायरा बढ़ाने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। नई योजना के अमल में आने पर आईटी कंपनियों को ज्यादा टैक्स का भुगतान करना पड़ सकता है। अप्रत्यक्ष कर विभाग ने अर्ली एग्जिट पे को लेकर आईटी कंपनियों को चिट्ठी लिखी है। अर्ली एग्जिट पे के तहत नौकरी छोड़ते वक्त नोटिस पिरीयड पूरा न करने वाले कर्मचारियों को नियोक्ता कंपनियों को भुगतान करना पड़ता है। कर विभाग इससे कंपनियों को होने वाली आय को जीएसटी के दायरे में लाने की तैयारी कर रहा है। विभाग अर्ली एग्जिट पे ट्रांजेक्शन की जांच-पड़ताल कर रहा है। कर विभाग इसे टैक्सेबल मानता है, लिहाजा इसे जीएसटी के दायरे में लाना चाहता है। ‘इकोनोमिक टाइम्स’ के अनुसार, टैक्स डिपार्टमेंट फिलहाल 30 लाख रुपये या उससे ज्यादा के लेनदेन पर ध्यान केंद्रित किए हुए है।

दिग्गज आईटी कंपनियों को लिखी चिट्ठी: अप्रत्यक्ष कर विभाग ने अर्ली एग्जिट पे को लेकर कार्रवाई शुरू भी कर दी है। विभाग ने इसको लेकर गूगल, एप्पल, ओरेकल, टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, एचपी, एचसीएल और माइक्रोसॉफ्ट को चिट्ठी लिखी है। इसमें स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि अर्ली एग्जिट पे के तहत मिलने वाली राशि पर 18 फीसद जीएसटी लगनी चाहिए। विभाग ने आईटी कंपनियों से इस मद में होने वाले भुगतान को टैक्सेबल मानने को कहा है। कर विभाग ने कैंटीन सेवा मुहैया कराने के एवज में कर्मचारियों से लिए जाने वाले पैसे को जीएसटी के दायरे में लाने का उल्लेख किया है। अथॉरिटी ऑफ एडवांस रूलिंग (एएआर) ने हाल में ही इस बाबत फैसला लिया था। अप्रत्यक्ष कर विभाग की दलील है कि नियोक्ता कंपनियों को कर्मचारियों की ओर से होने वाले हर भुगतान को जीएसटी के दायरे में होना चाहिए। सूत्रों का कहना है कि कर विभाग ने फिलहाल इस मसले पर अभी अपना रुख स्पष्ट किया है। कंपनियों द्वारा इसका अनुसरण न करने की स्थिति में औपचारिक तौर पर कर का भुगतान करने को कहा जाएगा।

कुछ कंपनियां भुगतान को तैयार तो कुछ करेंगी इंतजार: बताया जाता है कि कुछ आईटी कंपनियां अर्ली एग्जिट पे के तहत होने वाले भुगतान पर टैक्स देने को तैयार हैं। दूसरी तरफ, कुछ कंपनियां औपचारिक तौर पर टैक्स देने की मांग करने तक इंतजार करने के मूड में हैं। हालांकि, अप्रत्यक्ष कर विभाग के कदम से विशेषज्ञों में आम राय नहीं है। कुछ का कहना है कि अर्ली एग्जिट पे नियोक्ता कंपनियों और कर्मचारियों के बीच महज आपसी सहमति मात्र है, किसी तरह की सेवा नहीं जो उसे टैक्स के दायरे में लाया जाए। टैक्स लॉ के जानकार भी कर विभाग के रुख से सहमत नहीं हैं।

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