आओ बच्चों तुम्हें सिखाएं झांकी हिंदुस्तान की…
श्रीशचंद्र मिश्र
कोई ऐसा अवसर, कोई ऐसा भाव और कोई ऐसी संवेदना नहीं बची है, जिस पर हिंदी फिल्मों में बहुतायत से गीत न लिखे गए हों। महानगरों व शहरों का जिक्र करके कई गीत लिखे गए। कई छोटे कस्बों को फिल्मी गीतों ने देशव्यापी लोकप्रियता दिलाई। राज खोसला की फिल्म ‘मेरा साया’ में साधना पर फिल्माए गए गीत- ‘झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में’ ने बरेली को राष्ट्रीय पटल पर ला दिया। 1966 में आई ‘मेरा साया’ का वह गीत राजा मेंहदी अली खां ने लिखा था और आशा भोंसले ने उसे गाया था। यह दिलचस्प संयोग है कि जिन गीतों में राज्यों, शहरों या कस्बों के नाम का जिक्र हुआ, वे सभी गीत लोकप्रिय हो गए। राम गोपाल वर्मा की ‘शूल’ का नाम बहुत कम लोगों को याद होगा। लेकिन उसमें शिल्पा शेट्टी पर फिल्माया गया आइटम गीत ‘दिल वालों के दिल का करार लूटने, मैं आई हूं यूपी-बिहार लूटने’आज भी जिंदा है। दिल्ली और बंबई (अब मुंबई) जैसे महानगर तो फिल्मकारों के शुरू से प्रिय रहे हैं। 1956 में बनी ‘सीआईडी’ में जॉनी वाकर पर फिल्माया गया गीत- ‘ऐ दिल मुश्किल है जीना यहां, जरा हट के जरा बच के ये हैं मुंबई मेरी जान’ बेहद लोकप्रिय हुआ। इसके करीब दस साल बाद फिल्म ‘आप की खातिर’ में संगीतकार बप्पी लाहिड़ी ने एक गीत गाया- ‘बंबई से आया मेरा दोस्त, दोस्त को सलाम करो।’
दिल्ली का जिक्र तो कई फिल्मी-गैर फिल्मी गीतों में हुआ। इला अरुण का गाया गैर फिल्मी गीत- ‘दिल्ली शहर में म्हारो घाघरों जो घूम्यो’ खासा चर्चित हुआ था। 1942 में बांबे टाकीज की फिल्म ‘झूला’ में एक युगल हास्य गीत था जिसमें पुरुष कलाकार गाता है- ‘मैं तो दिल्ली से दुल्हन लाया रे हे बाबूजी’ और महिला कलाकार जवाब देती है- ‘मेरा बंबई से बालम आया रे हे बाबू जी।’ इस गीत की खास बात यह है कि इसे भारत की पहली महिला संगीतकार सरस्वती देवी ने संगीतबद्ध किया था। 1954 की फिल्म ‘चांदनी चौक’ में मोहम्मद रफी का गाया गीत- ‘जमीन भी वही है वही आसमान, मगर अब वो दिल्ली की गलियां कहां’ रोशन की बनाई धुन की वजह से काफी पसंद किया गया। राजेंद्र कृष्ण ने 1960 में ‘पतंग’ के लिए एक गीत लिखा- ‘दिल्ली है दिल हिंदुस्तान का, ये तो तीरथ है सारे जहां का।’
2013 की फिल्म ‘ये जवानी है दीवानी’ में माधुरी दीक्षित के आइटम नंबर में आगरा का जिक्र हुआ। 1960 की फिल्म ‘चौदहवीं का चांद’ में लखनऊ की तारीफ में साहिर लुधियानवी ने गीत लिख मारा- ‘ये लखनऊ की सरजमीं।’ 1978 में बनी ‘डॉन’ की सफलता का सबसे बड़ा कारण उसका गीत- ‘खइके पान बनारस वाला, खुल जाए बंद अकल का ताला’ रहा। ‘डॉन’ से पहले ‘बनारसी बाबू’ में देव आनंद ने ‘भले भी हम बुरे भी हम, समझियो न किसी से कम, हमारा नाम बनारसी बाबू’ गीत गाकर बनारस का ठस्का दिखा दिया था। शहरों या राज्यों के नाम का फिल्मी गीतों में इस्तेमाल कर वहां के दर्शकों को रोमांचित करने का चलन हमेशा रहा है। लेकिन इस परंपरा में सबसे नायाब रहा 1954 में बनी फिल्म ‘जागृति’ का एक गीत। इसे प्रदीप ने लिखा था। एक अध्यापक (अमि भट्टाचार्य) बच्चों को देश भ्रमण पर ले जाता है और एक गीत के जरिए विभिन्न राज्यों के गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है। गीत था ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की, इस मिट्टी से तिलक करो, ये धरती है बलिदान की।’