आदि परंपरा के आभूषण
आज फैशन की दुनिया में आभूषणों की अपनी अलग दुनिया बन गई है। तरह-तरह के परंपरागत और आधुनिक आभूषणों का चलन जोरों पर है। ये न केवल फैंसी और पार्टी वियर के रूप में पहने जा रहे हैं, बल्कि युवा पीढ़ी ऐसे आभूषणों को रोजमर्रा में भी पहनने की शौकीन होती जा रही है। आज सस्ते और पारपंरिक आभूषणों का बाजार तेजी से फैल रहा है। तरह-तरह के डिजाइनर आभूषण रोजाना बाजार में आ रहे हैं। हंसली, कंठी, लटकनियां चूड़ा, कंगना जैसे कई परंपरागत आभूषण आज फैशन में नंबर एक पर हैं। इन आभूषणों के बारे में बता रही हैं अनुजा भट्ट।
आभूषणों के प्रति सम्मोहन समाज के हर वर्ग में देखा जाता है। महिलाएं इस सम्मोहन से ज्यादा प्रभावित होती हैं। रानी-महारानियों से लेकर आदिवासी महिलाएं तक- सब अपने-अपने तरीके से सजती-संवरती हैं। इन दिनों बात फैशन की हो या खानपान की, हमारी नजर सुदूर पहाड़ियों पर रहने वाले आदिवासियों पर टिकी है। यह सिर्फ भारत में हो रहा हो, ऐसा नहीं है। भारत, पाकिस्तान, चीन, अफ्रीका, नेपाल जैसे कई देशों में फैशन की नई शब्दावली यहीं गढ़ी जा रही है। समाजशास्त्री मानते हैं कि सभ्यताओं की गति चक्रीय होती है। आधुनिकता के संदर्भ में यह बात इसलिए भी सही बैठती है कि इन दिनों शहरों में रहने वाली पढ़ी-लिखी महिलाओं का परंपरागत और प्राचीन सभ्यता वाले आभूषणों, पहनावों की तरफ आकर्षण बढ़ रहा है, जबकि इसके उलट आदिवासी इलाकों की लड़कियों में शहरी फैशन के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। यहां तक कि कई सिने अभिनेत्रियों में भी आदिवासी आभूषणों के प्रति आकर्षण बढ़ा है। इतिहास में जब हम सभ्यताओं के बारे में पढ़ते हैं, तो वहां भी हमें आभूषण नजर आते हैं। प्राचीन समय में लोग प्राकृतिक सामग्री जैसे बीज, पंख, पत्तियां, फल, फूल, पशुओं की हड्डियों, पंजे और पशुओं के दांतों से गहने बनाते थे। इस परंपरा की झलक आज भी आदिवासी समाज में देखी जा सकती है। हंसली, कंठी, लटकनियां, छूटा, हयकल, बंधनहार, तागली, साकलू मुरकी, बाली, झुमके, कर्णफूल, चूड़ा, कंगना, बाकुड़ी, हाड़का, काकन, तोड़ा, पैनजा, पायल, कानी, कड़े, तेड़ा, पैरीस, गजरिया, गेंदे जैसे कई परंपरागत नाम हैं इन आभूषणों के। ये सभी डिजाइन आज फैशन में नंबर एक पर हैं। आज जिस तरह के गहने पसंद किए जा रहे हैं उनमें मिट्टी, धातु, शीशे और पंख का इस्तेमाल सबसे ज्यादा है।
भारत के आदिवासी समाज के अलावा चीन, अफ्रीका, अफगानिस्तान के आदिवासी समाज में गहने शरीर के हर हिस्से के लिए बनाए जाते हैं। विशेष अवसरों पर ही नहीं, बल्कि आम दिनों में भी लोग आभूषण पहनते हैं। मनुष्य ही नहीं, देवताओं को भी आभूषणों से सुसज्जित किया जाता है। आदिवासी समाज में जानवरों को भी आभूषण पहनाए जाते हैं। हाथी, घोड़े और बैल जैसे जानवरों को सजाने के लिए आभूषण पहनाए जाते हैं। आभूषण बनाने के लिए आदिवासी आज भी फूल, पत्थर, क्रिस्टल, धागा, मोती, नीले पंख और पशुओं के बाल का इस्तेमाल करते हैं। यह सारे संदर्भ आजकल फैशन में आ गए हैं। हां, अलबत्ता अब हाथी, घोड़े, बैल के अलावा कुत्ते और बिल्ली के लिए भी आभूषण बनाए जा रहे हैं। आजकल फैशन शो सिर्फ महिलाओं और पुरुषों के आभूषण, परिधान या फैशन से जुड़ी इतर चीजों के लिए नहीं होते, बल्कि घरेलू जानवरों के पहनने के कपड़े और सजावटी चीजों के लिए भी होते हैं। पीएनजी नामक आभूषण बनाने वाली कंपनी ने इसी पृष्ठभूमि को आधार बना कर अपना संग्रह पेश किया था। यह आभूषण पूर्वोत्तर भारत की आदिवासी कला पर केंद्रित है जो समाज में आपकी सुंदर और सशक्त छवि गढ़ने में कामयाब है। भारतीय आभूषण डिजाइनर सुमित साहनी कहते हैं कि इस तरह के आभूषण मुझे विस्मय से भर देते हैं ठीक वैसे ही जैसे वन्य जीवन। यह मेरे लिए बादलों से घिरी पहाड़िय़ों वाले मेघालय की तरह गूढ़ है। इसे देख कर मुझे वैसा ही आश्चर्य होता है जैसा अरुणाचल प्रदेश की पहाड़िय़ों को देख कर। मेरे लिए यह नगालैंड की तरह खूबसूरत वादियों की तरह भी है। मणिपुर के रास नृत्य की झलक भी मुझे इसमें मिलती है। त्रिपुरा के आदिवासी नृत्य और सिक्किम के महायान पंथ की तरह यह मुझे सम्मोहित करती है। हमारी कोशिश है कि यह सारी विविधता एक नए स्टाइल के साथ लोगों की नजर में अपना जादू दिखाएं।
यह खुशी की बात है कि भारत अपनी कला और डिजाइन के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। हमारे यहां आभूषण बनाने का इतिहास बहुत पुराना है। एक तरह से कहें तो आभूषण हमारी सभ्यता की कहानी कहते हैं। हर आभूषण के बनने के पीछे एक कहानी छिपी है। कहीं यह कहानी आस्था को छूती है, तो कहीं इसका निर्माण सुरक्षा को लेकर किया गया। पूर्वोत्तर राज्यों में लोगों के बीच परंपरा का ज्यादा प्रभाव है। इन क्षेत्रों में भारत के सबसे ज्यादा आदिवासी रहते हैं। इस लिहाज से यह क्षेत्र कलाबाहुल्य क्षेत्र भी कहे जा सकते हैं। इनकी इसी कला को आभूषण डिजाइनरों ने आधुनिकता के मेल के साथ पेश किया है। आभूषणों का यह संग्रह आदिवासी संस्कृति का निचोड़ कहा जा सकता है। इसमें कुल आठ राज्यों की अलग-अलग कला का एक साथ दर्शन होता है। कला के यह रंग आभूषण के रूप में सबके सामने हैं। वाइल्ड गोल्ड की यह विशिष्ट शृंखला आदिवासी कला को उच्च वर्ग तक लेकर जा रही है। पांच ग्राम से लेकर चालीस ग्राम में तक में इसे बनाया गया है। सोने के अलावा यह अन्य धातुओं में भी उपलब्ध है। यह युवा लोगों में ज्यादा पसंद की जा रही है। इस तरह की ज्वेलरी में सोने का कम प्रयोग है। धागे और बीड्स पर ज्यादा जोर दिया गया है। इसके मोटिफ्स भी परंपरागत हैं। पर यह पश्चिमी परिधानों पर ज्यादा जंचती है। इस तरह के प्रयोग से कला का विकास होता है। लोग कला का मूल्य समझते हैं।
युवाओं में आभूषण का आकर्षण
पंखों वाली ज्वेलरी युवाओं से लेकर किशोरों तक में पसंद की जा रही है। पहनने में एकदम हल्की और देखने में यह आकर्षक है। इसकी कीमत भी बहुत कम है। रंग-बिरंगे पंखों वाले ये गहने आकर्षित करते हैं। इसके अलावा मोती, शंख से बने झिलमिलाते आभूषण पर भी युवाओं की नजर है। सोने और चांदी को बेअसर करने वाले ये मिट्टी के गहने कभी टेरोकोटा, तो कभी डोकरा शैली में सबको विस्मित कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ और झारखंड में इस तरह के आभूषण खासतौर पर बनाए जाते हैं। फैशन देश परदेश नहीं मानता यहां तो उसी की धूम होती है जो जंचता है। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि अफगानी आभूषण शीशे की चमक के साथ सदाबहार हो गए हैं और कुछ हद तक उन्होंने हीरे की चमक को फीका किया है। शीशे के साथ अलग-अलग तरह के रंग और छोटे-छोटे घुंघरू और डिजाइन पर नजर डालने की बारी अब आपकी!