आपसी गुटबाजी से टला सपा का पूरे प्रदेश में होने वाला प्रदर्शन
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का संगठनात्मक ढांचा किस मुकाम पर पहुंच चुका है, इस बात का अंदाजा लगाने का साहस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव बटोर नहीं पा रहे हैं। यही वजह है कि समाजवादी पार्टी ने जिला व ब्लाक स्तर पर 17 जनवरी को आयोजित प्रदर्शनी मौनी अमावस्या के स्नान का सहारा लेकर स्थगित कर दिया। दरअसल, अखिलेश अब तक सपा में गांव स्तर तक पहुंच चुकी आपसी गुटबाजी से पार पाने का सटीक रास्ता नहीं खोज पाए हैं। समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद खुद को संगठित करने और योगी आदित्यनाथ की सरकार को घेरने के लिए गांव, गरीब और किसान के मसले पर प्रदेश भर में 17 जनवरी को प्रदर्शन करने का ऐलान किया था। लेकिन इस एलान के ठीक अगले ही दिन अखिलेश यादव को यह स्मरण हुआ कि 17 जनवरी को मौनी अमावस्या का स्नान होने की वजह से प्रदेश भर में उनका आंदोलन खास प्रभाव नहीं छोड़ पाएगा। जबकि इस प्रदर्शन के स्थगित होने के पीछे की कहानी कुछ अलग तसवीर बयां करती है। समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ सूत्रों का कहना है कि आठ जनवरी को अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के मौजूदा 47 समेत प्रदेश भर में अपने पूर्व विधायकों को मिलाकर 224 लोगों को बैठक के लिए बुलाया था। इस बैठक का उद्देश्य वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की रणनीति तैयार करनी थी।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ सूत्रों का कहना है कि इस बैठक में सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष को इस बात का बखूबी अंदाजा हो गया कि मौजूदा समय में उनकी पार्टी गांव स्तर तक गुटबाजी का शिकार है। पार्टी में प्रभाव रखने वाले शिवपाल सिंह यादव और पूर्व अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के समर्थक अभी तक अखिलेश यादव को बतौर राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इस बात का अहसास होने के बाद समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने मौनी अमावस्या के बहाने योगी सरकार को घेरने के लिए 17 जनवरी को आयोजित किया गया प्रदेश व्यापी प्रदर्शन स्थगित कर दिया। सपा के वरिष्ठ नेता राजेंद्र चौधरी ने इस बात की ताकीद की कि मौनी अमावस्या की वजह से प्रदर्शन स्थगित किया गया है। पार्टी में छाए अंतर्विरोध की बाबत उन्होंने कहा, राजनीतिक दलों में ऐसी बातें होती रहती हैं। इसमें अप्रत्याशित कुछ नहीं है।
आपसी गुटबाजी का शिकार समाजवादी पार्टी में शिवपाल सिंह यादव का खेमा अभी तक अखिलेश यादव के साथ सामंजस्य बनाकर चल पाने का मन नहीं बना पाया है। उसकी एक बड़ी वजह है। शिवपाल के बेहद करीबी एक नेता कहते हैं, शिवपाल को इस बात का इल्म है कि नई समाजवादी पार्टी में अब उनका कोई स्थान नहीं है। ऐसे में उनके पास अपने समर्थकों के साथ के अलावा कुछ नहीं है। समर्थक शिवपाल पर लगातार कुछ अलग करने का दबाव डाल रहे हैं। जल्द ही इस बारे में कुछ होने के प्रबल आसार हैं। समाजवादी पार्टी के 17 जनवरी को प्रस्तावित प्रदर्शन के स्थगित होने पर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता विजय बहादुर पाठक चुटकी लेते हैं। वे कहते हैं, कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी को साथ लेकर खुद को ताकतवर बताने की अखिलेश यादव की रणनीति पर पानी फिर गया। अब छोटे दल भी उनसे खुलकर हाथ मिलाने से परहेज कर रहे हैं। पार्टी डेढ़ साल से अधिक समय से आपसी रस्साकशी का शिकार है। गुटबाजी चरम पर है।