‘आप’ को अशांत करने वाले प्रशांत पटेल
अजय पांडेय
आम आदमी पार्टी (आप) के 20 विधायकों की कुर्सी हिलाने वाले युवा वकील प्रशांत पटेल ने वकालत ही 2015 में शुरू की थी। यह उनकी खुशकिस्मती रही कि एक वकील के तौर पर काला कोट पहनते ही उन्हें विधायकों की सदस्यता पर सवाल उठाने वाला यह जोरदार मुकदमा हाथ लग गया। उन्होंने सितंबर, 2015 में राष्ट्रपति के समक्ष आप के इन विधायकों के लाभ के पद पर होने और इन्हें अयोग्य घोषित करने की गुहार लगाई और रातोंरात सुर्खियों में आ गए। उनका मानना है कि आयोग के ताजा निर्णय के बाद इन विधायकों की सदस्यता समाप्त होना तय है।
प्रशांत बताते हैं कि लोकसभा व दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा की एक किताब प्रकाशित हुई थी-दिल्ली सरकार की शक्तियां व सीमाएं। इस किताब को पढ़ने के बाद ही उन्हें समझ में आया कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने 21 विधायकों को जिस प्रकार अपने मंत्रियों का संसदीय सचिव बनाया है, वह पूरी तरह असंवैधानिक है और इसके खिलाफ राष्ट्रपति से गुहार लगाई जा सकती है। बकौल प्रशांत, वे किताब के लेखक शर्मा से जाकर उनके घर पर मिले और इस मामले की बारीकियों को समझा। कानून की अपनी पढ़ाई का फायदा भी मिला और उन्होंने फैसला लिया कि वे संसदीय सचिव बनाए गए सभी 21 विधायकों के खिलाफ राष्ट्रपति का दरवाजा खटखटाएंगे और इन्हें अयोग्य घोषित करने की मांग भी करेंगे।
प्रशांत जब इन विधायकों के खिलाफ राष्ट्रपति भवन जाने की तैयारी में थे, तब तक उन्हें यह पता चला कि लाभ के पद का एक बड़ा मामला पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से जुड़ा था। इस मामले में सोनिया गांधी के खिलाफ शिकायत की गई थी और उन्होंने किसी फैसले का इंतजार किए बगैर खुद ही लोकसभा के सदस्य के तौर पर इस्तीफा दे दिया और दोबारा रायबरेली से चुनकर लोकसभा पहुंच गर्इं। दूसरा मामला सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन का था। उन्होंने भी लाभ के पद का मामला उठाए जाने के बाद संसद की सदस्यता छोड़ दी थी। जाहिर तौर पर प्रशांत के समक्ष यह स्पष्ट था कि यदि इन विधायकों के मामले में यह बात साफ हो गई कि वे लाभ के पद पर तैनात हैं तो इनके लिए भी कुर्सी पर बने रहना आसान नहीं होगा।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएससी की पढ़ाई करने के बाद नोएडा के एक कॉलेज से एलएलबी करने वाले प्रशांत ने इन विधायकों के खिलाफ राष्टÑपति के समक्ष याचिका जरूर दाखिल कर दी लेकिन उसके बाद का रास्ता उनके लिए आसान नहीं था। चुनाव आयोग में चली लंबी सुनवाई और दांव-पेंच उन्हें झेलने पड़े। उनकी मानें तो इन विधायकों की ओर से इस मामले को लंबा खींचने का पूरा प्रयास किया गया लेकिन आखिरकार आयोग ने अपनी सिफारिश कर दी। उन्होंने भरोसा जताया कि अब राष्ट्रपति भी आयोग के निर्णय के अनुरूप ही इन विधायकों की सदस्यता समाप्त करेंगे। उनका कहना है कि ये विधायक भले अदालत का दरवाजा खटखटाएं लेकिन कानून बिल्कुल स्पष्ट है। इनकी सदस्यता समाप्त होना तय है।