आम आदमी पार्टी के नेताओं का लौट आया खोया आत्मविश्वास

बदलाव की बयार
बवाना विधानसभा उपचुनाव जीतने के बाद तो आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं का खोया आत्मविश्वास लौट आया और वे पहले की तरह केंद्र सरकार पर हमला बोलने लगे। भले ही वे डर-डर कर बोल रहे हों, लेकिन एक विधानसभा चुनाव ने आप का माहौल बदल कर रख दिया है। लेकिन इसके बावजूद पार्टी के नेता अपनी कार्यशैली बदलने को तैयार नहीं हैं। न तो पत्रकारों के बारे में उनका दृष्टिकोण बदला और न ही आम जनता से उनका सरोकार बढ़ा। अब भी दिल्ली सचिवालय में पत्रकारों का प्रवेश आसानी से नहीं हो पाता है और न ही आम लोग आप नेताओं से आसानी से मिल पाते हैं। मुमकिन है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनके लोगों को यह लगता होगा कि कहीं ज्यादा बदलाव के चक्कर में वे अपनी पहचान न खो बैठें।

नोटा का झटका
डीयू छात्र संघ चुनाव में इस बार ह्यनेताह्ण से ज्यादा ह्यनोटाह्ण सुर्खियों में रहा। दरअसल डूसू चुनाव में इस बार सबसे ज्यादा 29,765 बार नोटा बटन का इस्तेमाल जो हुआ। मतगणना के बाद कैंपस में जब चर्चा शुरू हुई तो दूर तलक गई। कला संकाय के बाहर चाय पर जमी चौकड़ी के एक सदस्य को जैसे ही आइसा का नेता आता दिखा, नोटा के जरिए लोगों ने उसे बीच-बहस के लपेटे में ले लिया। जोड़-घटाव शुरू हुआ तो पता चला कि नोटा पर दबा बटन आइसा को चारों सीटों पर मिले मतों से भी ज्यादा है। आइसा को चारों सीटों पर 29,354 वोट मिले हैं। किसी से चुटकी ली और कहा, तो क्या तीसरा विकल्प नोटा है! अब तक तो आइसा था!

नेताजी की घर वापसी
कां ग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले एक कद्दावर नेता का मन नई पार्टी में नहीं लग रहा है। कांग्रेस में खास जगह रखने वाले इस नेता को पांव जमाने देने को भाजपाई सूरमा कतई तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि यह बात ठीक है कि वे कांग्रेस के ताकतवर नेता हैं, लेकिन भाजपा में तो उनकी एंट्री एक कार्यकर्ता की तरह हुई है और हम उनको नेता नहीं, कार्यकर्ता ही समझेंगे। शायद यही वजह है कि नेताजी की घर वापसी की कवायद तेज हो गई है। उन्हें वापस कांग्रेस में लाने का जिम्मा पत्रकारिता से सियासत में गए एक अन्य कांग्रेसी नेता जी ने उठा रखा है। वहीं इस खबर की जानकारी मिलते ही भाजपा में गए कांग्रेसी नेताजी के विरोधी भी सक्रिय हो गए हैं। उनका कहना है कि पहले उनको यह शिकायत थी कि बार-बार समय मांगने पर भी कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी नहीं मिलते हैं तो अब नेता जी जरा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से टाइम लेकर दिखा दें।

ग्रह शांति की पूजा
भोजपुरी के लोकप्रिय कलाकार मनोज तिवारी सही समय में दिल्ली भाजपा अध्यक्ष नहीं बने। अध्यक्ष बनते ही दिल्ली नगर निगम चुनाव में मिली जीत ने उनका राजनीतिक कद इस कदर बढ़ा दिया कि मनोज तिवारी को भाजपा का मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जाने लगा। इस चक्कर में उनके बहुत सारे राजनीतिक दुश्मन भी पैदा हो गए। हालांकि तिवारी की प्रसिद्धि का दौर कुछ ही दिन का रहा क्योंकि इसके बाद भाजपा बवाना उपचुनाव हारी और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में उसके सहयोगी दल अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को आधी-अधूरी जीत मिली। दोनों की हार के अनेक कारण माने जा रहे हैं। साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि इसका सीधा कारण दिल्ली भाजपा अध्यक्ष नहीं हैं, लेकिन जीत का सेहरा प्रदेश अध्यक्ष के सिर बंधे और हार का ठीकरा किसी दूसरे पर फोड़ा जाए, यह तो कहीं से भी मुनासिब नहीं है। इसलिए अब तो यही लग रहा है कि मनोज तिवारी को ग्रह शांति की पूजा करवानी चाहिए, तभी शायद उनके खिलाफ जाने वाले ग्रह शांत हो पाएंगे।

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