आम बजट में होगा सबको साधने का जतन, इन करों पर टिकी होंगी निगाहें
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली गुरुवार को बजट पेश करेंगे। वस्तु और सेवाकर (जीएसटी) लागू होने के बाद देश का यह पहला आम बजट है। आबकारी और सेवाकर जैसे तमाम अप्रत्यक्ष कर जीएसटी में समाहित हैं, इसलिए इनको लेकर बजट में माथापच्ची नहीं होनी है। इस कारण फौरी तौर पर यह रोमांच ढंका-छुपा रहेगा कि किस चीज की कीमत बढ़ेगी और किसकी घटेगी। इस बजट में जीएसटी की कुछ धाराओं और नीतिगत मामलों से जुड़े एलान संभावित हैं। चिंता की बड़ी वजह जीएसटी ढांचे की अस्थिरता है। आयकर छूट की सीमा बढ़ाने की वकालत तमाम वित्तीय सलाहकार एजंसियों ने की है। रेलवे की पूरी सिग्नल प्रणाली को हाइटेक करने के लिए 78,000 करोड़ रुपए की मंजूरी मिल सकती है।
केंद्र की मौजूदा राजग सरकार का पांचवां और संभवतया सबसे कठिन बजट होगा। प्रधानमंत्री ने समय-समय पर इस बात के संकेत दिए हैं कि सरकार का इरादा पॉपुलिस्ट (लोक-लुभावन) बजट लाने का नहीं है। इस बजट में जेटली को राजकोषीय लक्ष्य साधने के साथ कृषि क्षेत्र के संकट, रोजगार सृजन व आर्थिक वृद्धि को गति देने की चुनौतियों का हल ढूंढ़ना होगा। सरकार अपनी आमदनी के लिए बजट में टैक्स से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण बदलाव करती है। जीएसटी वसूली में कमी से सरकार को चिंता है। इसलिए सरकार अपनी आय बढ़ाने के लिए कुछ नए कर लगा सकती है या कुछ कर दरों में बढ़ोतरी कर सकती है।
यह बजट ऐसे समय में पेश किया जा रहा है जबकि आने वाले महीनों में आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें से तीन प्रमुख राज्यों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकारें हैं। अगले साल आम चुनाव भी होने हैं। इस कारण बजट में नई ग्रामीण योजनाएं आ सकती हैं तो मनरेगा, ग्रामीण आवास, सिंचाई परियोजनाओं व फसल बीमा जैसे मौजूदा कार्यक्रमों के लिए आबंटन में बढ़ोतरी भी देखने को मिल सकती है। लघु उद्योगों के लिए भी रियायतें आ सकती हैं।
इन करों पर टिकी होंगी निगाहें
सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स (एसटीटी) : सरकार शेयर बाजार में कारोबार करने वालों पर सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन टैक्स लगाती है। बजट में इसकी दर को बढ़ाया जा सकता है। यह कर बीएसई और एनएसई ट्रेडिंग करने वालों के अकाउंट से कटता है। अभी एसटीटी की दर 0.1 फीसद है।
इनहेरिटेंस टैक्स (एस्टेट ड्यूटी) : सरकार इनहेरिटेंस टैक्स की वापसी कर सकती है। इसको पहले एस्टेट ड्यूटी कहा जाता था। संपत्ति हस्तांतरित करने में यह कर लगता है। भाजपा सरकार इस कर के पक्ष में है। इससे आम लोगों पर ज्यादा असर नहीं होगा, क्योंकि पांच करोड़ से ऊपर की संपत्ति पर यह कर लगाने का प्रस्ताव है।
लांग टर्म कैपिटल गेंस : अभी लिस्टेड कंपनियों को इस टैक्स में छूट है। जो कंपनियां सूचीबद्ध नहीं है उनको यह कर देना पड़ता है। एक साल से कम समय में शेयर बेचने पर 15 फीसद का शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस टैक्स देना होता है। अगर यह टैक्स लगा तो एक साल बाद शेयर बेचने पर भी यह कर देना होगा। इसका असर विदेशी संस्थागत निवेशकों पर पड़ेगा, जो भारत में निवेश करते हैं। आम निवेशकों को भी यह कर देना होगा।
सीमा शुल्क : जीएसटी में कई अप्रत्यक्ष करों का विलय होने के बाद सिर्फ सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) पर ही सरकार का पूरा नियंत्रण रह गया है। इसलिए सरकार अपनी आय बढ़ाने के लिए कस्टम ड्यूटी का उपयोग कर सकती है। सरकार मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए भी कस्टम ड्यूटी बढ़ा सकती है। ये टैक्स कंपनियां भरती हैं पर अप्रत्यक्ष तौर पर उपभोक्ताओं को यह कर देना होगा।