आरबीआइ की मुहर

आर्थिक नीति के मोर्चे पर चौतरफा आलोचना झेल रही केंद्र सरकार को एक और झटका भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) की मौद्रिक नीति समिति ने दिया है। बुधवार को मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में माना गया कि केंद्र सरकार के कुछ आर्थिक फैसले ठीक नहीं रहे हैं। इनमें जीएसटी (वस्तु एवं सेवाकर) का क्रियान्वयन भी है। समिति ने अगली छमाही यानी अक्तूबर से मार्च के बीच महंगाई बढ़ने की आशंका जताई है। जीएसटी के नकारात्मक असर की व्याख्या करने के दौरान समिति ने साफ कहा है कि भविष्य में वह राहत पैकेज देने में सावधानी बरते। समिति का इशारा किसानों की कर्जमाफी को लेकर था। कहा गया कि इससे राजकोषीय घाटा बढ़ेगा, जो कि अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं होगा। रिजर्व बैंक ने स्पष्ट तौर पर कहा कि वह जीएसटी लागू करने के तौर-तरीके से खुश नहीं है, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था बेपटरी हो गई है, उत्पादन क्षेत्र की परेशानियां बढ़ी हैं। ऐसे में निवेश कम हो सकता है। पूंजी निवेशक पहले से ही दबाव में हैं। दिवाली के मौके पर कुछ विशेषज्ञों का मानना था कि बैंकों की कर्ज दर कम हो सकती है। लेकिन अब साफ हो गया है कि रिजर्व बैंक ने ऐसा करने से इनकार कर दिया है।

केंद्रीय बैंक की छह सदस्यीय समिति ने नीतिगत दरों को उनके मौजूदा स्तर पर बनाए रखने का निर्णय लिया है। इसका मतलब यह हुआ कि वर्तमान में रेपो रेट छह फीसद तथा रिवर्स रेपो रेट 5.7 फीसद के स्तर पर ही बना रहेगा। रेपो रेट वह नीतिगत दर है जो रिजर्व बैंक कम अवधि के लिए राशि उधार लेने पर दूसरे बैंकों से लेता है। और रिवर्स रेपो रेट बैंकों को मिलने वाली वह दर है, जो बैंक अपनी राशि को अल्पकाल के लिए जमा करने पर आरबीआइ से प्राप्त करते हैं। केंद्रीय बैंक ने कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) में भी कोई बदलाव नहीं किया है। इसे चार फीसद ही रखा गया है। हालांकि समिति ने चार फीसद स्टैच्युटरी लिक्विडिटी रेट ( एसएलआर, सर्वाधिक नकदी अनुपात) में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है। इसे 20 से 19.5 कर दिया है। बता दें कि एसएलआर वह दर होती है, जिसके आधार पर बैंकों को एक निश्चित फीसद राशि रिजर्व बैंक के पास जमा करनी होती है। रेट में बदलाव से अब बैंकों को रिजर्व बैंक के पास कम धन रखना होगा। ऐसे में बैंकों को रिजर्व बैंक से मिलने वाले ब्याज में कटौती होगी। उन्हें अपनी आयस्रोतों से कमाई करनी होगी।

रिजर्व बैंक ने महंगाई, जीएसटी और खरीफ उत्पादन में कमी के आधार पर अपने आर्थिक विकास की अनुमान दर भी घटा दी है। समिति ने चालू वित्त वर्ष में विकास दर का आकलन 7.3 प्रतिशत से घटा कर 6.7 कर दिया, जबकि महंगाई दर के अनुमान में वृद्धि कर दी। महंगाई को लेकर रिजर्व बैंक की चिंता वाजिब है। कई अर्थशास्त्री नोटबंदी और जीएसटी को लेकर सरकार की सख्त आलोचना कर चुके हैं। स्थिति यहां तक आ पहुंची कि आखिरकार प्रधानमंत्री को खुद मैदान में उतर कर इसके लिए सफाई देनी पड़ी। प्रधानमंत्री ने सारी आलोचनाओं को ताक पर रखते हुए कहा कि उन्होंने एक कठिन रास्ता चुना है, इसलिए ऐसी मुश्किलें सामने आ रही हैं। उन्होंने आश्वस्त किया है कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा। लेकिन वास्तव में देखा जाए तो प्रधानमंत्री की सफाई से भी यही सिद्ध हो रहा है कि अर्थव्यवस्था की गाड़ी डगमगाई है। इस स्थिति से जितना जल्दी उबरा जा सके, उतना ही अच्छा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *