इजरायल से हथियार खरीदने में सबसे आगे रहा भारत

बीते साल में इजरायली हथियारों की सबसे बड़ी मंडी भारत साबित हुआ है। ये आंकड़ा पूरे एशिया पैसिफिक क्षेत्र में हथियारों की खरीद बढ़ने की खबरों के बीच आया है। ये बातें कई मीडिया रिपोर्ट में सामने आई हैं। इजरायल के सैन्य निर्यात में साल 2017 में 41 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। रक्षा निर्यात में ये लगातार तीसरे साल हुई बढ़ोत्तरी है। इस बार ये ठेके करीब 9.2 बिलियन डॉलर तक जा पहुंचे है।

अगर इजरायल के हथियारों की बिक्री की बात करें तो करीब 58 प्रतिशत हथियार खरीदने वाले तीन बड़े ग्राहक इसी इलाके से आते हैं। जिसमें भारत सबसे आगे है। भारत ने करीब 715 मिलियन डॉलर के हथियार खरीदे हैं। जबकि वियतनाम ने करीब 142 मिलियन डॉलर के तो अजरबैजान ने करीब 137 मिलियन डॉलर के हथियार इजरायल से खरीदे हैं।

इजरायल अभी अपने हथियारों का करीब 21 प्रतिशत यूरोप को भेजता है। नार्थ अमेरिका को 14 प्रतिशत जबकि अफ्रीका और लैटिन अमेरिका को सात प्रतिशत ​हथियार इजरायल बेचता है। इजरायल के द्वारा निर्यात किए जाने वाले ज्यादातर हथियार हवाई हमलों से सुरक्षा, रडार सिस्टम और संचार साधनों से जुड़े होते हैं। इनमें से ज्यादातर हथियार वह होते हैं जो इजरायली सेना फिलिस्तीन के कब्जे वाले इलाकों में हमले के लिए इस्तेमाल कर चुकी होती है।

पिछले महीने, भारत ने दो बड़ी इजरायली हथियार कंपनियों एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज और राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम लिमिटेड से प्र​तिबंध हटा लिया है। ये कंपनियां पहले 2006 में दलाली के आरोप लगने के बाद ब्लैकलिस्टेड कर दी गई थीं। अब जबकि, सीबीआई ने मुकदमा दायर करके दोनों कंपनियों के खिलाफ जारी आपराधिक जांच को खत्म करने की मांग की है। इसके बाद एयरोस्पेस कंपनी के लिए भारत को 2​ बिलियन डॉलर मूल्य की जमीन से हवा में मार करने वाली बराक-8 मिसाइलों की आपूर्ति का रास्ता खुल गया है। ये डील भारत और इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज के बीच हुई है।

तेल अवीव के ​हथियारों की एशिया में बिक्री को अगर नए नजरिए से देखें तो इजरायल म्यांमार को भी अपने हथियार बेच रहा है। म्यांमार इस वक्त रोहिंग्या संकट के कारण विश्व समुदाय की आलोचनाओं का सामना कर रहा है। ऐसे वक्त में भी इजरायल ने म्यांमार को करीब 100 टैंक, हथियार और देश की सीमाओं पर पानी में तेज गति से चलने वाली पेट्रोलिंग बोट्स दी हैं। फिलहाल इजरायल का रुख म्यांमार को हथियार न बेचने के विश्व रवैये के साथ जाता नहीं दिखता है।

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