इन हमलों से बार-बार हिली भारत की राजनीति

राजनीति में हिंसा कोई नई बात नहीं है। अक्सर राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं की आपसी भिडंत की खबरें आपने पढ़ी ही होंगी। लेकिन कई बार ये हिंसा इतनी बड़े स्तर पर होती है कि बड़े-बड़े राजनेता तक इसकी चपेट में आ जाते हैं। ऐसे कई किस्से हैं जिनमें विधायक, सांसद से लेकर देश के प्रधानमंत्री पर जानलवेा हमले हुए हैं। इनमें कुछ खुशकिस्मत थे जिनकी जान बच गई और कुछ इन हमलों में शहीद हो गए। आगे के स्लाइड्स में देखिए ऐसे ही कुछ राजीनितक हमले…

4 मार्च 1984 को तब के उत्तर प्रदेश विधान परिषद में विपक्ष के नेता मुलायम सिंह यादव पर जानलेवा हमला हुआ था। दो बाइक सवारों ने मैनपुरी में मुलायम की कार पर करीब नौ गोलियां चलाई थी। लेकिन मुलायम सिंह यादव की किस्मत अच्छी थी वो इस हमले में बच निकले। इसके बाद ही मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक करियर ने नई उड़ान भरी।

भारतीय राजनीति का लखनऊ गेस्ट हाउस कांड बेहद चर्चित किस्सा है। बाबरी विध्वंस के बाद बीजेपी को रोकने के लिए एसपी-बीएसपी ने 1993 में गठबंधन किया था। ये गठबंधन दो साल बाद साल 1995 में टूट गया। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार 2 जून 1995 को लखनऊ के गेस्टहाउस में बसपा सुप्रीमो मायावती पर जानलेवा हमला हुआ था और इस हमले के लिए समाजवादी पार्टी को जिम्मेदार माना जाता है। करीब दो दशक बाद भी इस गेस्टहाउस कांड के कारण ही दोनों पार्टियों में रिश्ते असामान्य है।

साल 2008 में योगी आदित्यनाथ ने आजमगढ़ का दौरा किया था। एक जनसभा को संबोधित करके जब वो वापिस लौट रहे थे तभी कोतवाली क्षेत्र में उनपर जानलेवा हमला हुआ था। इस हमले में एक 18 वर्षीय युवक की मौत भी हो गई थी।

फूलन देवी डकैत से सांसद तक बनी । साल 1996 में फूलन मिर्जापुर से सांसद चुनी गई। 25 जुलाई 2001 को फूलन को दिल्ली के उनके आवास पर गोली मारकर हत्या कर दी गई।

साल 1989 में जब कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था। तब कश्मीर के बड़े राजनेता मुफ्ती मोहम्मद सईद जो उस समय के गृह मंत्री भी थे उनकी बेटी रूबिया सईद को आतंकियों ने अगवा कर लिया था। आतंकियों ने उन्हें छोड़ने के बदले में अपने पांच साथियों की रिहाई की मांग की थी। तबके जम्मू और कश्मीर के मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला हालांकि आतंकियों के छोड़ने के पक्ष में नहीं थे लेकिन केंद्र सरकार की दखल के बाद आतंकियों को छोड़ दिया गया। रूबिया करीब पांच दिन तक आतंकियों के यहां बंधक रही थी।

साल 1989 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के तमिलनाडु में चुनाव प्रचार के दौरान एक आतंकी हमले में हत्या कर दी गई। उनके मौत के लिए तमिल उग्रवादियों को जिम्मेदार माना जाता है।

जनसंघ के बड़े नेता दीन दयाल उपाध्याय का मृत शरीर साल 1967 में मुगलसराय रेलवे स्टेशन में एक ट्रेन में पाया गया उनकी मौत की गुत्थी आज तक नहीं सुलझ पाई है।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी की साल 1984 में खालिस्तानी उग्रवाद के चलते उनके ही बॉडीगार्ड ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी।

  • जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के कश्मीर की जेल में साल 1953 में संदिग्ध स्थिति में मौत हुई थी। उनकी मौत को लेकर आजतक तरह तरह के अनुमान लगाए जाते हैं।

 

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