इलाहाबाद हाईकोर्ट में 40 वर्षों से लटके पड़े हैं मामले, रिपोर्ट में खुलासा
देश की सर्वोच्च अदालत में एक रिपोर्ट पेश की गई है जिसमें कहा गया है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट में पिछले 40 वर्षों से कई मामले पेंडिंग (लटके) हुए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 13600 से ज्यादा मामले सुनवाई की राह देख रहे हैं। यह तब है जब सुप्रीम कोर्ट कई बार कह चुका है कि हर आरोपी जल्दी ट्रायल खत्म होने का मूल अधिकार रखता है। रिपोर्ट में अभियुक्तों के परेशान होने की वजह का जिक्र किया गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक इलाहाबाद हाई कोर्ट देश का सबसे बड़ा उच्च न्यायालय है, जहां 160 जजों की जगह हैं। वर्तमान में कई जजों की जगह खाली पड़ी हैं, केवल 84 जज ही काम कर रहे हैं। उच्च न्यायालय मामलों के लटके होने पीछे जजों की नियुक्ति को वजह बता चुका है।
रिपोर्ट के मुताबिक 60 और 70 के दशक में हुए मामले लटके हुए हैं, जबकि वे उसी दौरान हाई कोर्ट के सामने आए थे। रिपोर्ट में बताया गया है कि 70 के दशक में दाखिल हुई 14 अपील (1976 में 2, 1977 में 4 और 1978 में 8) अब तक पेंडिंग हैं।
शुक्रवार (5 जनवरी को ) जस्टिस जे चेलामेस्वर और संजय किशन कौल की बेंच के सामने हाई कोर्ट ने मामलों के लटके होने की पीछे सबसे बड़ा कारण जजों की नियुक्ति को बताया। पेंडिंग मामलों की बात हत्या के एक आरोपी के वकील ने उठाई थी। आरोपी के वकील दुष्यंत पाराशर ने सर्वोच्च अदालत को बताया था कि 2007 में फाइल की गई अपील पर अब तक कोई सुनवाई नहीं हो सकी। 10 वर्षों में इसका नंबर नहीं आया, अगर यही हाल रहा तो अगले सुनवाई होने में अगले 10 साल और लग जाएंगे।
इलाहाबाद हाई कोर्ट जजों की कम संख्या के होते हुए लंबित मामलों को निपटाने के लिए अपनी पीठ थपथपाता रहा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट अलग ही कहानी बयां कर रही है। हाई कोर्ट के मुताबिक अपील निपटाने के लिए औसत समय 11.39 साल है, जबकि कोर्ट में 20 वर्षों से सुनवाई की राह देख रहे मामलों की संख्या बड़ी है। हाई कोर्ट के मुताबिक बड़ी संख्या में स्किल्ड कर्मियों और बुनियादी ढांचे कमी की वजह से ई कोर्ट (पेपरलेस कोर्ट) का लाभ नहीं मिल पा रहा है। सु्प्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ वकील एमएम राव को एमीकस क्यूरी के बनाकर मामलों को जल्दी निपटाने के लिए व्यवहारिक विकल्प तलाशने की जिम्मेदारी दी है।