इस समय करें जवारे का विसर्जन, जानिए इसका विधि-विधान
25 मार्च को चैत्र नवरात्र खत्म हो रहे हैं। नवमी के बाद दशमी तिथि के दिन जवारे और देवी प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाएगा। हिंदू धर्म में विसर्जन का बहुत महत्व है। विसर्जन का अर्थ पूर्णता होता है। चाहे वह जीवन की हो या साधक की। शास्त्रों के मुताबिक विसर्जन का अर्थ समाप्ति नहीं बल्कि पूर्णता होता है। इसलिए नवरात्र के बाद जवारे और प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।
26 मार्च को नवरात्रे के पहले दिन स्थापित किए गए जवारे विधि पूर्व विसर्जन किया जाएगा। विसर्जन से पहले मां दुर्गा और जवारे का विधि-विधान से पूजन किया जाता है। आइए जानते हैं पूजन विधि –
विसर्जन करने से पहले मां दुर्गा की प्रतिमा को धूप, अक्षत, फूल आदि अर्पित करें। इसके बाद इस मंत्र का जाप करें –
रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे।
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।।
महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी।
आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते।।
इस मंत्र का जाप करने के बाद हाथ में अक्षत व फूल लेकर जवारे का इस मंत्र के विसर्जन करें, मंत्र है-
गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि।
पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।
इसके बाद जवारे का विसर्जन करें। जवारे का फेंकना नहीं चाहिए। इसको परिवार में बांटकर सेवन करना चाहिए। जिस पात्र में जवारे बोए हों उसे और पूजन सामग्री का श्रृद्धापूर्वक विसर्जन कर दें।
जवारे विसर्जन का शुभ मुहूर्त – सुबह 09:40 से 10:55 तक, दोपहर 02:10 से 03:25