ईद-ए-मिलाद 2017: जानिए मुस्लिम समुदाय में इस दिन का क्या है महत्व, क्यों सुन्नी मनाते हैं शोक

इस्लाम पर्वों की बात करते समय हम मुहर्रम, ईद-उल-फितर और ईद-उल-अदा से ही अधिकतर वाकिफ होते हैं। पैगंबर हजरत मोहम्मद और उनकी शिक्षा को ये दिन समर्पित किया जाता है। कई स्थानों ईद-ए-मिलाद को पैगंबर के जन्मदिन के रुप में और कई स्थानों पर इसे शोक दिवस के रुप में मनाया जाता है, माना जाता है कि इस दिन ही पैगंबर की मृत्यु हुई थी। मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद का जन्म इस्लाम कैलेंडर के अनुसार रबि-उल-अव्वल माह के 12वें दिन 570 ई. को मक्का में हुई थी।

कुरान के अनुसार ईद-ए-मिलाद को मौलिद मावलिद के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है पैगंबर के जन्म का दिन। इस दिन रात भर तक सभाएं की जाती हैं और उनकी शिक्षा को समझा जाता है। माना जाता है कि पैगंबर की शिक्षा को सुना जाए तो वो जन्नत के द्वार खोलती है। इस दिन के लिए शिया और सुन्नी दोनों के अलग मत हैं। शिया समुदाय पैगंबर हजरत मुहम्मद के जन्म की खुशी में इसे मनाता है और वहीं सुन्नी समुदाय का मानना है कि ये दिन उनकी मौत का दिन है, इस कारण वो पूरे माह शोक मनाते हैं।

ईद-ए-मिलाद के दिन सभी लोग अपने घरों को सजाते हैं और मस्जिदों में नमाज अदा की जाती है और लाईटों आदि से सजाया जाता है। जरुरतमंदों को इस दिन भोजन करवाया जाता है। मस्जिदों और सामूहिक सम्मेलनों में मुहम्मद की शायरी और कविताएं पढ़ी जाती हैं। भारत के मुस्लिमों के लिए भी ये महत्वपूर्ण दिन होता है। सभी लोग नमाज पढ़ने जाते हैं और उसके बाद अन्य कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। ये दिन जम्मू-कश्मीर में डल झील के पास विशेष उत्सव के रुप में मनाया जाता है।

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