ईरान के साथ क्या अमेरिका अपनी शर्तों पर कर पाएगा समझौता? समझिए दोनों पक्ष चाहते क्या हैं

Iran US Talks: अमेरिका और ईरान में काफी लंबे समय से तनाव चल रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मानें तो दोनों देश किसी समझौते के करीब हैं, मगर क्या सच में ऐसा है? फिलहाल ये तय हो गया है कि ईरान और अमेरिका के बीच अब 5वीं बार वार्ता 23 मई को रोम में होगी. ये जानकारी खुद ओमान के विदेश मंत्री बद्र अलबुसैदी ने सोशल मीडिया X के माध्यम से दी.
ओमान अब तक ईरान और अमेरिका के बीच 4 बार वार्ता करवा चुका है, जिसमें से 3 मस्कट में और एक रोम में हुई है. ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता एस्माईल बाकई ने भी 5वीं वार्ता 23 मई शुक्रवार को रोम में होने की पुष्टि कर दी. हालांकि, ईरान की संसद में सभी सांसदों ने एक सुर में कहा कि हम परमाणु प्रौद्योगिकी पर अपना अधिकार नहीं छोड़ेंगे. साथ ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम की शांतिपूर्ण प्रकृति की पुष्टि करते हुए कहा कि इस्लामी गणराज्य ने कभी भी परमाणु बम बनाने की कोशिश नहीं की है, और न ही वह ऐसा करने की कोशिश करेगा.
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराक़ची ने कहा कि समझौते के साथ या उसके बिना संवर्धन जारी रहेगा. हालांकि, अगर पक्ष ईरान के शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम के बारे में पारदर्शिता चाहते हैं, तो हम इसके लिए तैयार हैं. हालांकि, बदले में, हमारे परमाणु कार्यक्रम के बारे में आरोपों के कारण लगाए गए क्रूर प्रतिबंधों को हटाने के बारे में चर्चा होनी चाहिए, और इन प्रतिबंधों को हटाया जाना चाहिए.
ईरान-अमेरिका परमाणु वार्ता: सफलता या विफलता?
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क़तर में एक बयान देते हुए दावा किया कि ईरान और अमेरिका के बीच परमाणु डील को लेकर “बड़ी प्रगति” हुई है. ट्रंप के अनुसार, ईरान ने “कुछ हद तक” अमेरिका की शर्तों को मान लिया है और दोनों देशों के बीच बातचीत “बहुत गंभीर” और “लंबे समय तक शांति कायम करने” की दिशा में थी. यह बातचीत रविवार को समाप्त हुई और इसे ट्रंप ने “न्यूक्लियर डील के करीब एक बड़ा कदम” करार दिया. ट्रंप ने यह भी कहा, “हम अब ईरान में कोई न्यूक्लियर डस्ट नहीं बनने देंगे.”
हालांकि, ट्रंप के इस बयान को ईरानी नेतृत्व ने तुरंत खारिज कर दिया. ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली ख़ामेनेई ने साफ कहा कि अब वार्ता किसी दबाव या धमकी के तहत नहीं, बल्कि सम्मानजनक आधार पर ही होगी. उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका की साम्राज्यवादी सोच अब इतिहास बन चुकी है और ईरान आत्मसम्मान और संप्रभुता के रास्ते पर अडिग है.
अयातुल्ला अली ख़ामेनेई ने पूर्व राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की कूटनीति को पश्चिमी देशों की मानवाधिकार की खोखली बयानबाज़ी से बेहतर बताया और ग़ाज़ा में हज़ारों बच्चों की हत्या पर पश्चिम की चुप्पी को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति आज भी समर्पित युवाओं को तैयार कर रही है और यही उसकी सबसे बड़ी जीत है.
ईरान ने वार्ता की शुरुआत से ही अपनी मंशा साफ कर दी थी, वह परमाणु बम नहीं बनाना चाहता. दूसरी ओर, अमेरिका ने हमेशा की तरह वार्ता के मंच को एक राजनैतिक खेल का मैदान बना दिया. उसने न तो पाबंदियों को हटाने में गंभीरता दिखाई, न ही गारंटी देने को तैयार हुआ कि भविष्य में वह समझौते से फिर बाहर नहीं निकलेगा. याद रहे, ट्रंप प्रशासन ने 2018 में JCPOA से एकतरफा रूप से बाहर निकलकर समझौते को ख़त्म कर दिया था.
ख़ामेनेई ने अमेरिकी बयान को सिरे से ख़ारिज किया
अयातुल्ला ख़ामेनई की यह चेतावनी अमेरिका के लिए एक गंभीर संकेत है कि अब बातचीत किसी दबाव में नहीं, बल्कि सम्मानजनक आधार पर ही संभव होगी. उनका यह बयान अमेरिकी नीति-निर्माताओं के लिए एक स्पष्ट संदेश है: अब साम्राज्यवादी ताक़तों का दौर लद चुका है. ईरानी सुप्रीम लीडर के इस बयान में पूर्व ईरानी राष्ट्रपति शहीद इब्राहिम रईसी का ज़िक्र भी महत्वपूर्ण है, जिसे उन्होंने एक विनम्र, मज़बूत और निडर नेता के रूप में पेश किया, जिनकी कूटनीति पश्चिमी नेताओं की कथित मानवाधिकार की बयानबाज़ी से कहीं ऊपर थी.
उन्होंने यह भी कहा कि रईसी की ईमानदार कूटनीति को पश्चिमी नेताओं की झूठी शांति और मानवाधिकार की बयानबाज़ी से तुलना करनी चाहिए, जो ग़ाज़ा में हज़ारों बच्चों की हत्या पर चुप हैं और अपराधियों की मदद करते हैं. अंत में उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति की ताक़त यह है कि वह आज भी ऐसे समर्पित और प्रेरित युवाओं को तैयार कर रही है, जो 40 साल पहले के शहीदों की राह पर चल रहे हैं, और यही क्रांति की सबसे बड़ी जीत है.
ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराक़ची ने ट्रंप के दावे को सिरे से खारिज करते हुए दो टूक कहा कि, “ईरान किसी भी हाल में यूरेनियम संवर्धन नहीं छोड़ेगा.” उन्होंने स्पष्ट किया कि यह ईरान का वैज्ञानिक और वैध अधिकार है, जिसे किसी भी शर्त पर छोड़ा नहीं जा सकता. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माईल बक़ाई ने भी कहा कि, “संवर्धन कोई कल्पना नहीं है, और इसे रोकने के लिए हमें किसी से इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है.”
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विश्लेषक जवाद लारीजानी ने अमेरिकी नीति की आलोचना करते हुए व्यंग्यात्मक अंदाज़ में कहा, “अगर आज अमेरिका कहता है यूरेनियम संवर्धन मत करो, तो कल शायद कहे कि फिज़िक्स और गणित भी मत पढ़ो!”
इस चौथे दौर की वार्ता में, जो हाल ही में ओमान में संपन्न हुई, दोनों पक्षों के बीच गहरे अविश्वास और कठोर रुख स्पष्ट रूप से दिखे. अमेरिका लगातार इज़रायल के दबाव में रहकर वार्ता को धीमा करता रहा, जबकि ईरान संयम और आत्मसम्मान के साथ अपने अधिकारों पर अडिग रहा. ईरानी पक्ष का मानना है कि अमेरिका की रणनीति है: वार्ता को लंबा खींचो, ईरान को आर्थिक रूप से थकाओ, और अंततः उसे झुकने पर मजबूर करो — लेकिन यह मुमकिन नहीं.
ईरान अब न केवल क्षेत्रीय ताक़त के रूप में उभर रहा है, बल्कि वह चीन, रूस और BRICS जैसे अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों में भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है. सऊदी अरब के साथ संबंधों में सुधार ने भी अमेरिका की मध्यस्थता को कमजोर कर दिया है.
अंततः, ईरान ने इस दौर की वार्ता में यह दिखा दिया कि वह न तो किसी दबाव में झुकेगा, न ही अपने संप्रभु अधिकारों से पीछे हटेगा. वार्ता का भविष्य अभी अनिश्चित है, लेकिन जब तक अमेरिका अपने रुख़ में लचीलापन नहीं लाता, किसी निर्णायक समझौते की उम्मीद कम ही है.