उत्तराखंड के मदरसों में संस्कृत पढ़ाने की मांग, सूबे की बीजेपी सरकार ने बताई यह ‘तकनीकी समस्या’

कविता उपाध्याय

उत्तराखंड में मदरसा वेलफेयर सोसायटी के लोगों ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पत्र लिखकर सिफारिश की है कि सूबे के मदरसों में संस्कृत भाषा पढ़ाई जाए। वहीं इस पत्र के मिलने के बाद राज्य के मदरसा शिक्षा बॉर्ड के अधिकारियों ने वेलफेयर सोसायटी की इस सिफारिश को नामंजूर कर दिया है और साथ ही इसे अव्यावहारिक करार दिया है। 8 दिसंबर को गदरपुर स्थित मदरसा वेलफेयर सोसायटी द्वारा सूबे के 207 मदरसों का प्रतिनिधित्व करते हुए सीएम रावत को पत्र लिखा गया था। इस पत्र में मदरसों ने लिखा था कि “मदरसों में संस्कृत शिक्षकों को नियुक्त किया जाए ताकि मदरसों के पाठ्यक्रम में संस्कृत को जोड़ा जा सके।”

इस पर बात करते हुए द इंडियन एक्सप्रेस से सोसायटी के चेयरपर्सन सिब्ते नाबी ने कहा “सूबे के 207 मदरसों में संस्कृत भाषा को पाठ्यक्रम में जोड़ने का सुझाव पसंद आया है हम इसका स्वागत करेंगे। हम चाहते हैं कि मदरसे के छात्रों को अच्छी शिक्षा मिले ताकि वे आयुर्वेद की पढ़ाई का कोर्स कर सकें। अभी यह हमारे छात्रों के लिए नामुमकिन है कि वे आयुर्वेद की पढ़ाई कर सकें क्योंकि उसमें संस्कृत भाषा का इस्तेमाल होता है जिस छात्र नहीं समझते हैं। केंद्र सरकार द्वारा अच्छी शिक्षा के लिए दिए जाने वाले फंड का इस्तेमाल छात्रों को संस्कृत की शिक्षा देने के लिए करना चाहिए।”

वहीं इस मामले पर बात करते हुए उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड के डिप्टी रजिस्ट्रार अखलाक अहमद अंसारी ने कहा  “मदरसों में संस्कृत पढ़ाने को लेकर फिलहाल हमें किसी भी मदरसा से कोई पत्र नहीं मिला है। मदरसों के पाठ्यक्रम में अगर संस्कृत को जोड़ा जाता है तो यह तकनीकी समस्या का परिणाम होगा। अंग्रेजी और हिंदी भाषा हमारी प्राथमिकता है जो कि मदरसों में पढ़ाई जानी आवश्यक है। इसके अलावा हमारे पास एक ही अन्य भाषा बचती है जो कि फारसी या फिर अरबी हो सकती है। संस्कृत को पाठ्यक्रम में शामिल करना अव्यावहारिक होगा। हम संस्कृत के लिए अरबी और फारसी भाषा को नहीं छोड़ सकते हैं।”

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