उत्तराखंड में खुली आपदा प्रबंधन की पोल
उत्तराखंड में इस बार मानसून लोगों के लिए कहर बनकर बरपा है। वैसे तो सूबे में मानसून आने से एक महीना पहले मई में ही पर्वतीय क्षेत्रों में भारी बारिश के चलते बादल फटने की कई घटनाएं हो चुकी थीं। 15 जून के बाद उत्तराखंड में मानसून की बारिश शुरू हो जाती है। तब से लेकर अब तक बादल फटने और खस्ताहाल सड़कों के कारण 50 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। बारिश के कारण सड़कों पर बने गड्ढों की वजह से दो बस दुर्घटनाएं भी हो चुकी हैं जिनमें 64 लोग अपनी जान गंवा बैठे। राज्य सरकार का आपदा प्रबंधन विभाग हर साल मानसून से पहले सूबे के स्कूल, कॉलेजों और ग्रामीणों को आपदा से बचने के गुर सिखाता है और आपदा प्रबंधन विभाग की टीमें इसका अभ्यास (मॉक ड्रील) भी करती हैं। परंतु आपदा के समय आपदा प्रबंधन विभाग की सब तैयारियां धरी की धरी रह जाती हैं। इस बार पहाड़ों के साथ-साथ मैदानी जिलों देहरादून और उधमसिंह नगर में भी बारिश ने जमकर कहर बरपाया। हल्द्वानी और उधमसिंह नगर में आधा दर्जन मकान और कारें पानी में कागज की नाव की तरह बह गए। हल्द्वानी में जहां गोला नदी ने कहर बरपाया। वहीं, देहरादून में सौंग नदी ने एक दर्जन से ज्यादा गांवों में तबाही मचाई और धान व गन्ने की फसल चौपट कर दी।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी जुलाई के दूसरे हफ्ते में भारी बारिश की वजह से सात लोगों की मौत हो गई। इसने राज्य सरकार के आपदा प्रबंधन की पोल खोलकर रख दी। इस मानसून में अब तक बादल फटने की छह घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें एक हफ्ते के भीतर ही बादल फटने की दो घटनाएं चमोली जिले में हुर्इं। इसके अलावा टिहरी, उत्तरकाशी, अल्मोडा तथा पिथौरागढ़ में बादल फटने की एक-एक घटनाएं हुई हैं। इस साल भारी बारिश के चलते उत्तराखंड में मरने वालों के आंकड़ा चौंकाने वाला है। पहाड़ों में भारी बारिश और बादल फटने के कारण पहाड़ खिसकने और मलबा आ जाने से पिथौरागढ़ में पांच, अल्मोड़ा में दो, चमोली में दो, नैनीताल में तीन, उधमसिंह नगर में पांच, हरिद्वार में चार, देहरादून में सात, टिहरी में चार, उत्तरकाशी में नौ और बागेश्वर में एक की मौत हुई है। जबकि 30 से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। मौसम के बदले मिजाज को देखते हुए प्रशासन ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटकों की आवाजाही पर रोक लगा दी है। उत्तराखंड में मौसम का मिजाज कई सालों से बदल रहा है। खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में मौसम अपने अलग-अलग रंग-ढंग दिखा रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों में कई-कई दिनों तक भारी बारिश हो रही है, जो इन क्षेत्रों के लिए मुसीबत बनकर आ रही है। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार पहाड़ी क्षेत्रों पर एक ही क्षेत्र में लंबे समय तक भारी बारिश नहीं होती थी। मानसून के दौरान बारिश तीन चरणों में होती थी। पहले चरण में हल्की बारिश, दूसरे चरण में मध्यम तथा तीसरे चरण में कुछ अंतराल के बाद भारी बारिश होती थी।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर दिनेश चंद्र भट्ट का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश के चक्र में तेजी से बदलाव हुआ है, जिस कारण बारिश होने की अवधि घट गई है और अतिवृष्टि की घटनाएं लगातार बढ़ रही है। बीते पांच सालों के दौरान यह देखने में आया है कि कुछ क्षेत्रों में लगातार बहुत तेज बारिश होती है तो कुछ क्षेत्रों में बारिश न के बराबर होती है। हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डाक्टर आरसी शर्मा का कहना है कि पहाड़ों में बारिश का जो मिजाज बदला है, उसके लिए प्राकृतिक और मानव जनित दोनों ही कारण है। राज्य मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक विक्रम सिंह का कहना है कि पिछले कुछ सालों में पहाड़ के जिन क्षेत्रों में अतिवृष्टि और भूस्खलन की घटनाएं हुई हैं, वहां के बदलते मौसम के मिजाज के आंकडे यह बताते हैं कि बारिश के क्रम में बदलाव देखने को मिल रहा है। कुछ क्षेत्रों में कम समय में ज्यादा बारिश हो रही है और कुछ क्षेत्रों में कम।
2013 में केदारनाथ आपदा में साढ़े चार हजार लोगों की हुई थी मौत
सबसे भीषण आपदा 2013 में केदारनाथ में आई थी, जिसमें करीब 4500 लोग मारे गए थे। इसी साल कुमाऊं में भी आपदा में 19 लोग मारे गए थे। यह साल उत्तराखंड के लिए मनहूस साल साबित हुआ था। इस हादसे के बाद तीन सालों तक गर्मियों में तीर्थयात्रियों और पर्यटकों ने उत्तराखंड से मुंह मोड़ लिया था। 2014 में उत्तराखंड में बारिश के कारण 66 लोग मौत के मुंह में समा गए और करीब 70 लोग घायल हुए। 2015 में बारिश के कहर के कारण 54 लोगों की जान चली गई और 66 लोग घायल हुए। इस साल सबसे ज्यादा लोग पिथौरागढ़ जिले में 11 लोग दैवीय आपदा के शिकार हुए। 2016 में प्राकृतिक आपदा के कारण मानसून में 106 लोगों की मौत हुई। इसी साल पिथौरागढ़ में सबसे ज्यादा 38 लोगों की बारिश के कारण मौत हुई। 2017 में उत्तराखंड में भारी बारिश और मलबे की चपेट में आने से 84 लोगों की मौतें हुई। इनमें सबसे ज्यादा 28 लोगों की मौत पिथौरागढ़ जिले में हुई।