उत्तराखंड में सालों से लटकी पड़ी तीन परियोजनाओं को मिलेगी गति
उत्तराखंड में काफी समय से लंबित पड़ी तीन परियोजनाओं पंचेश्वर बांध, जमरानी बांध तथा भागीरथी के क्षेत्र में विकास को लेकर राज्य सरकार केंद्र से मिलकर खास पहल करने जा रही है, जिसके लटकी पड़ी इन परियोजनाओं को गति मिलेगी। पंचेश्वर बांध कुमाऊं मंडल के बीच निकलने वाली महाकाली नदी पर बनेगा। जिसमें भारत का 120 वर्ग किलोमीटर और नेपाल का 14 वर्ग किलोमीटर डूब क्षेत्र में आएगा। 311 मीटर ऊंचा यह बांध 4800 मेगावाट बिजली पैदा करेगा। इस बांध से उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के तीन पर्वतीय जिलों अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और चंपावत के 134 गांव प्रभावित होगें। केंद्र सरकार पंचेश्वर बांध परियोजना के लिए पूरा आर्थिक सहयोग देगी। इस बांध की निर्माता एजंसी ने वन क्षेत्र की जमीन हस्तांतरण करने के लिए सूबे के वन विभाग को एक प्रस्ताव भेजा था। वन विभाग ने कुछ आपत्तियां जता कर भूमि हस्तांतरण का प्रस्ताव वापस एजंसी को भेज दिया है। भूमि हस्तांतरण के लिए अब मुख्यमंत्री के स्तर पर एक कार्य योजना तैयार की गई है।
सूबे के अपर मुख्य वन संरक्षक विनोद कुमार सिंघल का कहना है कि एजंसी ने वन भूमि हस्तांतरण के लिए जो प्रस्ताव भेजा था, वह अधूरा था। उस प्रस्ताव में एंजसी ने बांध क्षेत्र का नक्शा, डीपीआर, भू वैज्ञानिकों की रिपोर्ट, नेपाल और भारत सरकार के अधिकारियों की संयुक्त निरीक्षण रिपोर्ट, भारत सरकार के प्रपत्र, वित्तीय, प्रशासनिक मंजूरी समेत कई जानकारियां दिए बिना ही वन भूमि हस्तांतरण की मांग की थी। सूबे के वन विभाग ने एजंसी के दस्तावेजों का परीक्षण कराने के बाद प्रस्ताव पर आपत्तियां दर्ज कर एजंसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) को वापस भेज दिया। वन विभाग ने एजंसी के प्रस्ताव पर 17 आपत्तियां की है।
दूसरी ओर जमरानी बांध परियोजना को केंद्र से राष्ट्रीय परियोजना घोषित करवाने के प्रयासों में सूबे की सरकार उत्तर प्रदेश का भी सहयोग मिला है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी इसे राष्ट्रीय परियोजना बनाने पर सहमति दे दी है। यह परियोजना भी सूबे के कुमाऊं मंडल से जुड़ी है। यह परियोजना नैनीताल जिले के काठगोदाम से दस किलोमीटर ऊपर गोला बैराज के पास बननी है। इसकी ऊंचाई 130.60 मीटर होगी। इस परियोजना के निर्माण से सूबे के दो जिलो नैनीताल और उधमसिंहनगर के अलावा उत्तर प्रदेश के कई जिलों को सिंचाई और पीने के लिए पानी मिल सकेगा। जमरानी जल बिजली परियोजना 27 मेगावाट बिजली पैदा करेगी।
उत्तराखंड के सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव आनंद वर्धन के मुताबिक इस बांध परियोजना के समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी स्वीकृति दे दी है। और केंद्रीय जल आयोग को भी इस बारे में बता दिया गया है। अब राज्य सरकार ने केंद्रीय जल संसाधान मंत्रालय से इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने का अनुरोध किया है। यदि केंद्र सरकार ने अपनी मंजूरी दे दी तो यह परियोजना जल्द ही सिरे चढ़ जाएगी। जमरानी बांध परियोजना 1976 से लटकी हुुई है। 26 फरवरी 1976 को केन्द्रीय सिचांई मंत्री केसी पंत और तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी ने इस परियोजना का शिलान्यास किया था। सूबे की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने इस परियोजना के निर्माण के लिए ठोस पहल की है। रावत की पहल पर ही उत्तर प्रदेश सरकार इस परियोजना को लेकर आगे बढ़ी है।
सालों से लटके पड़े उत्तरकाशी जिले की भागीरथी घाटी में लागू पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र (इको सेंसेटिव जोन) में भी राज्य सरकार बदलाव करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मंजूरी लेने के काम में जुटी है। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार भागीरथी इको सेंसेटिव जोन में कुछ संसोधन कर सकती है। ताकि इस क्षेत्र में विकास का रास्ता खुल सके। उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के सीमांत जिले उत्तरकाशी का 98 फीसद क्षेत्र आरक्षित और संरक्षित वन क्षेत्र में आता है। 2012 में भारत सरकार ने उत्तरकाशी जिले के गोमुख से लेकर उत्तरकाशी क्षेत्र तक के क्षेत्र को पर्यावरण से लिहाज से संवेदनशील घोषित किया था। इसमें उत्तरकाशी के 89 गांव भी शामिल है। जिस कारण इस क्षेत्र में किसी भी जल बिजली परियोजना और अवैध निर्माण पर पाबंदी है। यहां होटल तथा अन्य आवासीय निर्माणों पर भी रोक है।
राज्य के अपर मुख्य सचिव डा. रणबीर सिंह का कहना है कि भागीरथी इको सेंसेटिक जोन के कारण इस क्षेत्र में आवश्यक विकास कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने उम्मीद जताई की केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय राज्य की जरुरतों को समझकर इस क्षेत्र में लागू इको सेंसेटिव जोन में कुछ बदलाव करने पर सहमत हो जाएगा। राज्य सरकार इस क्षेत्र का मास्टर प्लान केंद्र सरकार को भेजेगी। जिसमें इस क्षेत्र में सड़क, अस्पताल, स्कूल, आवास निर्माण, छोटी दस जल बिजली परियोजनाओं, इस क्षेत्र में स्थित नदियों में एक निश्चित गहराई तक नदियों में खनन करने की अनुमति शामिल है। सूबे के अधिकारियों को उम्मीद है कि जल्द ही केंद्रीय सरकार इस सभी परियोजनाओं पर अपना उदार रवैया अपनाते हुए मंजूरी दे देगी।