उत्तराखंड: वक्त रहते बच्चे को ब्लू व्हेल के जाल से निकाला
उत्तराखंड में भी ब्लू व्हेल ने अपनी दस्तक देने की कोशिश की थी जिसे पुलिस महकमे की समझबूझ और चौकसी से सूबे में पैर पसारने का मौका नहीं मिल पाया। राज्य सरकार ने ब्लू व्हेल को लेकर पूरे राज्य में अर्लट जारी किया है और हर जिले में साइबर क्राइम सेल खोले गए हैं। राजधानी देहरादून में 11अगस्त को जानलेवा ब्लू व्हेल ने अपने जाल में एक स्कूल के पांचवीं कक्षा के छात्र को फंसा लिया था। स्कूल के शिक्षकों और पुलिस के चौकन्ना के कारण इस बच्चे की जान बचाई जा सकी। पुलिस सूत्रों के मुताबिक एक स्कूली बच्चे के व्यवहार को लेकर उसके शिक्षकों को उस पर कुछ शक हुआ। यह बच्चा अपने अन्य छात्र साथियों से अलग रहता था और एकांत में बड़बड़ाया करता था। उसके शिक्षकों ने इसकी सूचना तुरंत पुलिस को दी और उसने इस मामले की गहन जांच में पाया कि यह बच्चा ब्लू व्हेल खेल के जाल में बुरी तरह फंसा हुआ है। मानसिक चिकित्सकों की मदद से समय पर पुलिस और इस बच्चे के शिक्षकों ने उसे जानलेवा खेल के जंजाल से बाहर निकाला।
देहरादून में एक साइबर क्राइम थाना बनाया गया है और कुमांऊ मंडल में भी साइबर क्राइम थाना खोले जाने का प्रस्ताव उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अनिल रतूड़ी ने राज्य सरकार को भेजा है। ब्लू व्हेल के आतंक को देखते हुए जल्द ही राज्य सरकार कुमांऊ मंडल में भी साइबर क्राइम थाना खोलने का फैसला कर चुकी है। विश्वप्रसिद्ध दून स्कूल में ब्लू व्हेल के खेल से छात्रों को बचाने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है। दून स्कूल के जनसंपर्क निदेशक पीयूष मालवीय ने बताया कि स्कूल में कम्प्यूटर कक्षाओं में फायरवॉल बनाई गई है। इसके तहत कई साइट प्रतिबंधित की गई हैं। पिछले दिनों जाने-माने साइबर विशेषज्ञ रक्षित टंडन को बुलाकर छात्रों और शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण दिया गया। दून स्कूल में छात्रों को मोबाइल के प्रयोग की इजाजत नहीं है और कम्प्यूटर कक्ष में भी छात्रों को केवल सीमित समय के लिए ही जाने दिया जाता है। देहरादून के सेंट जोसफ एकेडमी में तो छात्र-छात्राओं के स्कूल परिसर में मोबाइल फोन लाने की पूरी तरह से पाबंदी है। इंटरनेट का प्रयोग करने पर भी कई तरह की पाबंदियां हैं।
फेसबुक, व्हाटसएप छात्र चला नहीं कर सकते और इंटरनेट भी उन्हें अपने शिक्षक या अभिभावक की देख-रेख में ही इस्तेमाल करना होता है। एकेडमी के प्रिंसिपल ब्रदर बाबू वर्गीज ने बताया कि केंद्र सरकार के नियमों के मुताबिक स्कूली छात्रों का फेसबुक, व्हाटसएप और इंटरनेट का प्रयोग करना कानूनी जुर्म है। हम अपनी एकेडमी में साइबर अपराध के बारे में छात्रों, शिक्षकों, अभिभावकों के लिए विशेष ओरिएन्टेशन कोर्स चलाते रहते हैं। गीता चमोली का कहना है कि अभिभावक ही अपने बच्चों के साइबर अपराध के जाल में फंसाने के लिए जिम्मेदार हैं। बच्चों के प्रति कुछ अभिभावकों की लापरवाही की वजह से कई बच्चे साइबर जाल में फंस जाते हैं। देहरादून की कामनी चौधरी बताती हैं कि अभिभावकों में ब्लू व्हेल का डर बहुत भीतर तक घर कर गया है। स्कूल के शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों की जिम्मेदारी भी है कि वे अपने बच्चों को साइबर जाल से बचाने के लिए सजग रहें।