उद्धव, राज और शिंदे क्या साथ आएंगे? क्या ये संभव है? पुराने जख्मों के बीच जानिए नये बयान

- राज ठाकरे का अपना बेटा भी लोकसभा चुनाव हार चुका है. पार्टी लगातार सिमटती जा रही है. अगर जल्द कुछ न किया तो महाराष्ट्र की राजनीति में दखल बहुत कम रह जाएगा. इसीलिए हिंदू कार्ड से अब मराठी कार्ड पर लौट रहे हैं.
- उद्धव ठाकरे से हिंदू वोटर छिटक गए हैं. कांग्रेस से हाथ मिलाने के बाद हिंदू उद्धव ठाकरे पर अब कम से कम आंख मूंदकर भरोसा तो नहीं कर रहे. रही-सही कसर एकनाथ शिंदे ने पार्टी तोड़कर कर दी. शिवसैनिक भी उद्धव का साथ छोड़ गए. अब अगर जल्दी कुछ नहीं किया तो पार्टी कांग्रेस की पिछलग्गू बनकर रह जाएगी.
- एकनाथ शिंदे की स्थिति इन दोनों से फिर भी ठीक है. वो अभी महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री हैं. शिवसेना के भी सर्वेसर्वा हैं. हालांकि, उनकी टीस ये है कि उन्हें बीजेपी ने दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाया. महाराष्ट्र में बीजेपी की बढ़ती ताकत से वो भी थोड़ा असहज हैं और चाहते हैं उनके पास विकल्प खुले रहें.
क्या भूल पांएगे तीनों अपने-अपने जख्म
- 90 के दशक में राज ठाकरे को बाला साहेब ठाकरे का हर कोई उत्तराधिकारी मानता था. पार्टी में बाला साहेब के बाद उन्हीं की चलती थी, मगर फिर बाला साहेब ने उद्धव को धीरे-धीरे बढ़ाना शुरू किया और अंतत: राज ठाकरे शिवसेना में किनारे कर दिए गए. आखिरकार उन्होंने एमएनएस बन ली.
- उद्धव ठाकरे हमेशा से राज ठाकरे से राजनीति में दूरी बनाकर रखते आए हैं. उन्हें राज ठाकरे की लोकप्रियता का भी अंदाजा है. अगर राज ठाकरे वापस लौट गए तो फिर पार्टी उन्हीं के कंट्रोल में रहेगी, इसको लेकर वो सशंकित रहते हैं.
- एकनाथ शिंदे को लेकर भी राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के मन में गहरे जख्म हैं. राज ठाकरे ने जब पार्टी छोड़ी तो एकनाथ शिंदे ने उद्धव का साथ दिया. वहीं जब उद्धव मुख्यमंत्री बने तो विधायकों को लेकर अलग पार्टी बना ली.
- एकनाथ शिंदे भी उद्धव ठाकरे से जख्म खाए हुए हैं. एकनाथ शिंदे खुद आरोप लगा चुके हैं कि उद्धव ठाकरे उन्हें नीचा दिखाते थे. उनकी सरकार और पार्टी में पूछ नहीं थी. राज ठाकरे से उनके संबंध ठीक हैं, मगर बात ये है कि कौन किसके नीचे काम करेगा.
तीनों का एक होना क्यों मुश्किल
- राज ठाकरे कभी उद्धव ठाकरे के नीचे काम नहीं करना चाहेंगे.
- उद्धव ठाकरे भी राज ठाकरे के नीचे काम करना नहीं चाहेंगे.
- एकनाथ शिंदे भी अब दोनों के नीचे काम करना नहीं चाहेंगे.
- तीनों दलों का गठबंधन भी मुश्किल है.
- कारण है तीनों दलों की सबसे ज्यादा ताकत मुंबई में ही है.
- मुंबई में भी तीनों दलों के गढ़ भी लगभग एक ही हैं.
- ऐसे में सीटों के बंटवारे को लेकर भी मुश्किल होगी.
हां, ये जरूर है कि तीनों की सोच और जरूरत जरूर है कि बीजेपी को टक्कर देने के लिए साथ आना जरूरी है, मगर कैसे? इसका जवाब तीनों में से किसी के पास नहीं है. राज ठाकरे ने महेश मांजरेकर के पॉडकास्ट में ही पहली बार साथ आने की बात नहीं कही है. उन्होंने कई बारे ये बातें कहीं हैं. एक पॉडकास्ट में तो उन्होंने बताया था कि एक बार खुद उद्धव ठाकरे ने उन्हें फोन कर कहा कि साथ आते हैं. मगर फिर बात आगे नहीं बढ़ सकी. हालांकि, राजनीति में कुछ भी संभव है. और ये खिड़की इसलिए खोली गई है ताकी भविष्य में अगर मजबूरी आ जाए तो मिला जा सके. हालांकि, इसके बावजूद दिल्ली इसे लेकर सतर्क तो जरूर हो गई होगी.