एक कब्र में दफनाई गईं 10-10 लाशें, म्यांमार में रोहिंग्या पर अत्याचार की नई रिपोर्ट में खुलासा
उस दिन दस रोहिंग्या मुसलमान एक साथ बंधे हुए दिखे, फिर उनकी हत्या होती है और बाद में एक ही कब्र में दफना दिया जाता है। यह घटना पिछले साल दो सितंबर को म्यांमार के गांव में हुई। रोंगटे खडे़ कर देने वाली इस वारदात को जब अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी रायटर्स ने कवर किया तो म्यांमार की फौज ने इसके दो पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया। अब जाकर इस समाचार एजेंसी ने उस दिन की घटना से लेकर म्यांमार में रोहिंग्या के खिलाफ हुए अत्याचार पर खोजी रिपोर्ट पेश की है। यह रिपोर्ट आठ फरवरी को एजेंसी ने जारी की है। एजेंसी के मुताबिक अब तक रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर जितनी भी खबरें हुईं, वे सिर्फ पीड़ितों की बातचीत के आधार पर रहीं, मगर पहली बाहर इस रिपोर्ट में हत्या में शामिल बौद्धों और फौज के जवानों से बातचीत की गई है। सभी ने रोहिंग्या के खिलाफ हत्या में शामिल होने के साथ खुद गड्ढे खोदकर दफनाने तक की प्रक्रिया में हाथ होने की बात स्वीकार की है।
रायटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक उस दिन रखाइन स्टेट के गांव में जिन दस रोहिंग्या को फौज ने पकड़ा था, उनमें से कम से कम दो को काट दिया गया था, और बाकियों को फोर्स ने गोली मार कर मौत के नींद सुला दिया। बौद्ध समुदाय के एक 55 वर्षीय रिटायर्ड सैनिक सोई चय ने रायटर्स से कहा, ‘एक कब्र में 10 रोहिंग्या को दफनाया गया। उन्होंने हत्याएं होती देखीं और गड्ढे खोदने में मदद की। सैनिकों ने प्रत्येक व्यक्ति को दो से तीन बार गोली मारी। यहां तक कि कई ऐसे रोहिंग्या को भी दफनाया जा रहा था जो कि आवाज कर रहे थे। जबकि बाकी मर चुके थे।’ इस रिटायर्ड सैनिक के बयान से समझा जा सकता है कि म्यांमार में रोहिंग्या पर किस कदर जुल्मोसितम हुआ। म्यामांर के रखाइऩ स्टेट के तटीय गांवों में हुई हत्याओं ने बड़े पैमाने पर हुई सांप्रदायिक हिंसा की ओर इशारा किया।
करीब छह लाख 90 हजार रोहिंग्या मुसलमान गांव छोड़कर बांग्लादेश चले गए। रोहिंग्या मुसलमानों ने फौज पर आगजनी, बलात्कार और हत्याओं का आरोप लगाया। संयुक्त राष्ट्र ने भी नरसंहार की आशंका जताई। बता दें कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने इसे जातीय सफाई करार दिया, वहीं म्यांमार ने इसे क्लीयरेंस ऑपरेशन बताते हुए रोहिंग्या विद्रोहिया के हमलों की वैध प्रतिक्रिया करार दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक रखाइन स्टेट में सदियों से रोहिंग्या की मौजूदगी रही है। मगर ज्यादातर म्यांमर के लोग उन्हें बांग्लादेश से आए अवांक्षित अप्रवासी मानते हैं। रोहिंग्या को म्यांमर की फौज बंगाली संबोधित करती है। हाल के दिनों में सांप्रदायिक तनाव बढ़े हैं और सरकार ने एक लाख से अधिक रोहिंग्या को कैंपों तक सीमित कर दिया है। जहां उनके पास भोजन,चिकित्सा और शिक्षा तक सीमित पहुंच है।
अभी तक पीड़ितों के हवाले से ही रोहिंग्या पर अत्याचार की खबरें सामने आईं, मगर रायटर्स ने पहली बार हत्या में शामिल बौद्धों का इंटरव्यू लेकर उऩके अत्याचार में शामिल होने की स्वीकारोक्तिक का खुलासा किया है। पहली बार इस नरसंहार में मीडिया के लेवल से फौज की भूमिका की भी जांच हुई। खुलासा हुआ कि पूरा कैंपेन फौज के इशारे पर ही चला। मारे गए पुरुषों के परिवार, अब बांग्लादेश शरणार्थी शिविरों में रहते हैं, रायटर्स की तस्वीरों की उन्होंने पहचान की। जिन युवकों की हत्या हुई, वे मछुआरे, दुकानदार, एक इस्लामिक शिक्षक और दो किशोर छात्र रहे। बता दें कि म्यांमार बौद्ध बाहुल्य है। दस लाख से ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान यहां रहते हैं। म्यांमार के रखाइन राज्य में 2012 से बौद्धों और रोहिंग्या विद्रोहियों के बीच सांप्रदायिक हिंसा की शुरुआत हुई। पिछले साल हालात तब भयावह हो गए, जब म्यांमार में मौंगडो सीमा पर रोहिंग्या विद्रोहियों के हमले में नौ पुलिस अधिकारियों के मारे जाने के बाद फौज ने दमन शुरू किया। फौज के साथ बौद्धों ने भी हमला बोल दिया। हजारों रोहिंग्या हिंसा की भेंट चढ़े। जिसके चलते एक लाख से अधिक रोहिंग्या को म्यांमर छोड़कर बांग्लादेश जाना पड़ा। भले ही सदियों से रोहिंग्या म्यांमार में रह रहे हैं मगर उन्हें स्थानीय बौद्ध अवैध घुसपैठियां मानते हैं।