एक किंवदंती का जाना

मार्शल अर्जन सिंह का नाम ऐसे लोगों में शामिल हो चुका है, जो जीते जी किंवदंती बन जाते हैं। वे उस त्रयी में गिने जाते हैं, जिनमें जनरल करियप्पा और फील्ड मार्शल मानेकशॉ का नाम लिया जाता है। अट्ठानबे साल की उम्र में रविवार को उन्होंने अंतिम सांस ले ली। उन्नीस सौ पैंसठ के भारत-पाक युद्ध के महानायकों में शुमार किए जाने वाले मार्शल अर्जन सिंह का सोमवार को संपूर्ण राजकीय सम्मान के साथ दिल्ली में अंतिम संस्कार किया गया। उन्हें इक्कीस तोपों की सलामी दी गई, जो कि किसी वीर सेनानी का वास्तविक हक है। राजधानी में सरकारी इमारतों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहा। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री से लेकर देश के तमाम नेताओं ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि और अंतिम विदाई दी। ये वही मार्शल थे, जिन्होंने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। उनके निधन की सूचना मिलते ही समूचे देश ने उन्हें गर्व और गौरव से स्मरण किया। यह अपने महानायक को याद करने का क्षण तो था ही, साथ में एक कृतज्ञ राष्ट्र का अपने एक वीर-योद्धा के अतुलनीय योगदानों को याद करने का अवसर भी था।

वे ऐसे पहले मार्शल थे, जिन्होंने पहली बार देश के किसी युद्ध में वायु सेना की अगुआई की थी। 1965 में जब पाकिस्तान ने अचानक भारत के खिलाफ आॅपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया तो भारतीय रक्षा मंत्रालय ने मार्शल अर्जन सिंह से पूछा था कि वे दुश्मन सेना के टैंकों को रोकने के लिए कितना समय चाहते हैं? उन्होंने एक घंटे का वक्त मांगा और उससे कम वक्त में ही पाकिस्तानी टैंकों और सेना पर हवाई हमला बोल दिया। इसके बाद दुश्मन की सेना के पांव उखड़ गए और पाकिस्तान का पूरा मंसूबा ही नाकाम हो गया। यह हमला निर्णायक रहा। इस दिवंगत महानायक के योगदानों और सेवाओं की सूची बहुत लंबी है। वे पहले और एक मात्र वायु सेना प्रमुख बने, जिन्हें चीफ आर्मी स्टाफ का पांच सितारा रैंक मिला।

अपने वायु सेना के करिअ‍ॅर के दौरान उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौर के लड़ाकू विमानों के अलावा साठ अलग-अलग किस्म के विमान उड़ाए। बाद में उन्हें देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से भी नवाजा गया। दिसंबर 1989 से दिसंबर 1990 तक वे दिल्ली के उपराज्यपाल भी रहे। इससे पहले स्विटजरलैंड और वेटिकन में भारतीय राजदूत तथा केन्या में उच्चायुक्त के पद पर भी रहे। मार्शल अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल, 1919 को पराधीन भारत के पंजाब प्रांत के लायलपुर (जो कि अब पाकिस्तान के फैसलाबाद में है) में एक प्रतिष्ठित सैनिक परिवार में हुआ था। उन्हें अपने सैनिक जीवन में 1945 में एक बार कोर्ट मार्शल का सामना भी करना पड़ा था।

उन पर आरोप लगा था कि उन्होंने केरल के एक रिहाइशी इलाके में नीची उड़ान भरी थी। उन्होंने यह कहते हुए अपना बचाव किया कि ऐसा एक प्रशिक्षु विमान चालक का मनोबल बढ़ाने के लिए किया था। यह प्रशिक्षु दिलबाग सिंह थे, जो आगे चल कर एअर चीफ मार्शल बने। अनुशासन, कर्मठता और राष्ट्रप्रेम उनमें कूट-कूट भरा था। उन्हें लंबी उम्र मिली, फिर भी उनका जाना किसी बड़ी क्षति से कम नहीं है। वे न सिर्फ सैनिकों के लिए बल्कि आम आदमी के लिए भी आजीवन प्रेरणास्रोत की तरह थे और आगे भी रहेंगे।

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