एक देश-एक चुनाव: क्यों विधेयक पेश होते ही खिला विपक्ष का चेहरा, सरकार के लिए इसे पारित कराना कितना मुश्किल?
आखिर लोकसभा में किन विधेयकों के जरिए संविधान संशोधनों को पेश किया गया? सदन में ऐसा क्या हुआ कि सरकार इस विधेयक को सहर्ष ही संयुक्त समिति के पास भेजने के लिए तैयार हो गई? विपक्षी सांसद विधेयक के पेश होने के बाद इसे अपनी जीत क्यों बता रहे हैं? संयुक्त समिति इस विधेयक पर क्या कर सकती है? और संयुक्त समिति के प्रस्ताव आने के बाद भी सरकार की राह में क्या रोड़े आ सकते हैं? आइये जानते हैं…
सरकार ने देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले विधेयक को विपक्षी दलों के भारी विरोध के बीच मंगलवार को संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में पेश कर दिया। इस विधेयक को पेश करते हुए केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि सरकार इन विधेयकों पर व्यापक विचार-विमर्श के लिए इन्हें संसद की संयुक्त समितियों (ज्वाइंट कमेटी) के पास भेजने के लिए तैयार हैं।
लांकि, संसद में विधेयक पेश करने के दौरान जो घटनाक्रम हुआ, उसके बाद विपक्षी सांसदों के चेहरे खिले दिखे। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और संसदीय मामलों के मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी इस विधेयक पर कोई जल्दबाजी न करते हुए इसे संयुक्त समिति के पास भेजने पर तुरंत ही सहमति जता दी। गौरतलब है कि इस विधेयक को पेश होने से रोकने के लिए कई सांसदों ने लोकसभा में नियमों के तहत नोटिस भी दिए थे।
ऐसे में यह सवाल है कि आखिर लोकसभा में किन विधेयकों के जरिए संविधान संशोधनों को पेश किया गया? सदन में ऐसा क्या हुआ कि सरकार इस विधेयक को सहर्ष ही संयुक्त समिति के पास भेजने के लिए तैयार हो गई? विपक्षी सांसद विधेयक के पेश होने के बाद इसे अपनी जीत क्यों बता रहे हैं? संयुक्त समिति इस विधेयक पर क्या कर सकती है? और संयुक्त समिति के प्रस्ताव आने के बाद भी सरकार की राह में क्या रोड़े आ सकते हैं? आइये जानते हैं…
पहले जानें- संसद में किन संविधान संशोधनों को प्रस्तावित किया गया?
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के प्रावधान वाले संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 और उससे जुड़े संघ राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024 को निचले सदन में रखा। इनका विपक्षी दलों ने पुरजोर विरोध किया। हालांकि, सदन में मत विभाजन के बाद संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 को पेश कर दिया गया।
विधेयक को संसद की संयुक्त समिति के पास भेजने पर क्या बोली सरकार?
विधेयक पर विपक्षी दलों के विरोध के बीच, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जब मंत्रिमंडल में चर्चा के लिए विधेयक आया था, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं मंशा जताई थी कि इसे संसद की संयुक्त समिति के पास विचार के लिए भेजा जाना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की प्रमुख सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) और शिवसेना ने विधेयक का समर्थन किया। कानून मंत्री मेघवाल ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने से संबंधित प्रस्तावित विधेयक राज्यों की शक्तियों को छीनने वाला नहीं है, बल्कि यह विधेयक पूरी तरह संविधान सम्मत है। उन्होंने विधेयक को जेपीसी के पास भेजने की विपक्ष की मांग पर भी सहमति जताई।
विपक्ष ने विधेयक पर क्या सवाल उठाए? पेशी का भी विरोध किया
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने विधेयक पेश किए जाने का विरोध करते हुए आरोप लगाया कि यह संविधान के मूल ढांचे पर हमला है और देश को तानाशाही की तरफ ले जाने वाला कदम है। इन दलों की तरफ से यह भी कहा कि विधेयक को संयुक्त समिति के पास भेजा जाना चाहिए। द्रमुक नेता टीआर बालू ने तो लोकसभा अध्यक्ष से यहां तक सवाल कर दिया कि जब सरकार के पास दो- तिहाई बहुमत नहीं है तो फिर इस विधेयक को लाने की अनुमति आपने कैसे दी?
अब जानें- कैसे आया सरकार की राह में पहला रोड़ा?
सरकार की तरफ से विधेयक को पेश करने के लिए पहले मत विभाजन कराने का निर्णय हुआ। हालांकि, मत विभाजन में विधेयक को पेश किए जाने के पक्ष में 269 वोट, जबकि विरोध में 198 वोट पड़े। इसके बाद मेघवाल ने ध्वनिमत से मिली सदन की सहमति के बाद संघ-राज्य क्षेत्र विधि (संशोधन) विधेयक, 2024 को भी पेश किया।
यही मत विभाजन विपक्षी सांसदों की तरफ से संजीवनी की तरह देखा जा रहा है। दरअसल, संविधान में प्रस्तावित किसी भी संशोधन को पारित कराने के लिए संसद के दोनों सदनों में उसके पक्ष में दो-तिहाई बहुमत आवश्यक है। जबकि इस विधेयक को पेश करने के दौरान इसके पक्ष में सिर्फ 269 मत पड़े, जबकि 198 मत इसके खिलाफ रहे। यानी पेशी के चरण में ही इस विधेयक को पारित कराने लायक जरूरी समर्थन मिलता नहीं दिखा। विपक्षी सांसद इसे बड़ी जीत मान रहे हैं। उधर सरकार भी इस विधेयक को पेश करने के बाद इसे संसद की संयुक्त समिति के पास भेजने के लिए तैयार रही।
संविधान के जानकार और लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी ने अमर उजाला को बताया कि संविधान संशोधन विधेयक होने के बावजूद संसद के किसी सदन में इसे पेश करने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता नहीं होती। इसे साधारण बहुमत के जरिए भी पेश किया जा सकता है। यानी लोकसभा के कुल सदस्यों में से 50 फीसदी से ज्यादा का समर्थन भी इस विधेयक को पेश करने के लिए काफी है। इस तरह विपक्ष के विधेयक को पेश करने पर उठाए गए सवाल गलत हो जाते हैं।
संसद की संयुक्त समिति में क्या होगी विधेयक की आगे की राह?
पीडीटी आचारी बताते हैं कि इस संयुक्त समिति की खासियत यह है कि जिस भी मंत्री ने इस विधेयक को पेश किया है (इस मामले में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल), वह भी इस समिति का हिस्सा होंगे। वह इस विधेयक पर सदस्यों की तरफ से दिए जाने वाले सुझाव स्वीकार कर सकते हैं। आमतौर पर समिति की तरफ से पेश संशोधनों को स्वीकार किए जाने का रिवाज नहीं है। लेकिन चूंकि इस समिति में सरकार के मंत्री भी शामिल होंगे, इसलिए वह सदस्यों के सुझाव को मान सकते हैं और आगे सरकार को विधेयक में संशोधनों का प्रस्ताव दे सकते हैं। अगर वह सदस्यों के सुझावों को मानते हैं तो विधेयक के उस खंड को संशोधित खंड के तौर पर रिपोर्ट में शामिल किया जाता है। इसके बाद इसे सदन के सामने पेश किया जाता है। यानी इस समिति का काम काफी अलग तरह से होगा।
संयुक्त समिति के बाद क्या होगी विधेयक की राह?
संसद की संयुक्त समिति की तरफ से विधेयक में बदलावों का प्रस्ताव दिए जाने के बाद इसे जिस भी सदन में पेश किया जा रहा है, वहां उसे तीन चरणों को पार करना होता है। यह चरण हैं-
I). विधेयक पर विचार का चरण।
II). विधेयक के खंडों में संयुक्त समिति की तरफ से संशोधन के जो प्रस्ताव हैं, उन पर विचार होगा और जोड़ा जाएगा।
III). विधेयक को पारित कराने का अंतिम चरण।
चूंकि यह विधेयक संविधान संशोधन है। इसलिए इसे पारित कराने के लिए अंतिम चरण में वोटिंग के लिए मौजूद सांसदों की संख्या में से दो-तिहाई का समर्थन मिलना आवश्यक है। एक अहम बात यह भी है कि इस विधेयक के लिए मत विभाजन कराना आवश्यक है।