एक साथ चुनाव कराने पर बोले चुनाव आयुक्त रावत- सभी राजनीतिक दलों की सहमति जरूरी
लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की वकालत करते हुए चुनाव आयोग ने रविवार को कहा कि ऐसा कुछ करने से पहले तमाम राजनीतिक पार्टियों को इसके लिए सहमत करना जरूरी है। चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा, ‘चुनाव आयोग का हमेशा से मानना रहा है कि एक साथ चुनाव कराने से निवर्तमान सरकार को आदर्श आचार संहिता लागू होने से आने वाली रुकावट के बगैर नीतियांबाकीबनाने और लगातार कार्यक्रम लागू करने के लिए पर्याप्त समय मिलेगा।’ उन्होंने कहा कि संविधान और जनप्रतिनिधित्व कानून में जरूरी बदलाव करने के बाद ही एक साथ चुनाव कराना मुमकिन हो सकेगा। मौजूदा कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार किसी राज्य की विधानसभा या लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने से छह महीने पहले तक चुनाव कराए जा सकते हैं। रावत ने कहा कि संवैधानिक और कानूनी खाका बनाने के बाद ही तमाम तरह के समर्थन मांगना और एक साथ चुनाव कराना व्यवहार्य होगा। उन्होंने कहा, ‘आयोग (संवैधानिक और कानूनी बदलाव करने के बाद) ऐसे चुनाव छह महीने बाद करा सकता है।’
उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लिए तमाम राजनीतिक पार्टियों की सहमति जरूरी है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओड़ीशा विधानसभाओं के चुनाव 2019 के मध्य में अगले आम चुनाव के साथ होने है रावत ने कहा कि एक साथ चुनाव कराना तभी संभव हो पाएगा जब आयोग को पर्याप्त वक्त दिया जाए। इसके लिए 24 लाख इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ( वीवीएम) और उतनी ही संख्या में वोटर वेरीफाइबल पेपर आॅडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) मशीनों की जरूरत पड़ेगी। निर्वाचन आयुक्त रावत ने कहा, ‘हमें ईवीएम के दो सेट की जरूरत होगी – एक लोकसभा के लिए और दूसरा विधानसभा चुनावों के लिए।’ ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों के आॅर्डर पहले ही दिए जा चुके हैं और नई मशीनें और दूसरी चीजें आने वाले दिनों में आनी शुरू होंगी। रावत ने कहा, ‘आयोग आवश्यक संख्या में ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनों को 2019 के मध्य तक या जरूरी हुआ तो इससे पहले हासिल कर लेगा।’ निर्वाचन आयुक्त के बयान की अहमियत है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की पहले ही वकालत कर चुके हैं। सरकार के नीति आयोग ने राष्ट्रीय हित में 2024 से दो चरण में लोकसभा के चुनाव और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की थी।
सरकार ने सरकारी घर के किराए, बिजली के बिल जैसे बकाए का भुगतान नहीं करने वाले उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से रोकने के चुनाव आयोग के प्रस्ताव बाकी पेज 8 पर
को खारिज कर दिया है। चुनाव आयोग ने विधि मंत्रालय को पत्र लिखकर उन लोगों के लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की अपील की थी जो सार्वजनिक सुविधाओं के बकाए का पूरा भुगतान नहीं करते। चुनाव आयोग के अनुसार इस तरह के उम्मीदवारों पर रोक लगाने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के चैप्टर-3 में संशोधन करना होगा, जो चुनाव अपराधों से संबंधित हैं। सार्वजनिक सेवाओं के बकाए के भुगतान में चूक के आधार पर अयोग्यता के लिए एक नया खंड जोड़ना होगा। लेकिन मई में चुनाव आयोग को भेजे संक्षिप्त जवाब में मंत्रालय ने कहा कि प्रस्ताव की जरूरत नहीं है। दरअसल विधि मंत्रालय का मानना है कि रोक की जरूरत नहीं होगी क्योंकि किसी उम्मीदवार का नो-ड्यूज (कोई बकाया नहीं) सर्टिफिकेट या अनापत्ति प्रमाणपत्र देने वाला प्राधिकरण पक्षपातपूर्ण हो सकता है और ऐसा भी हो सकता है कि वे उसे जरूरी दस्तावेज न दें।
मंत्रालय के मुताबिक, बकाए के विवाद से संबंधित मामला अदालत ले जाया जा सकता है और उसके समाधान में समय लग सकता है। इस तरह के मामलों में नो-ड्यूज सर्टिफिकेट वाले उम्मीदवार को नामंजूर करने की जरूरत नहीं होगी। चुनाव आयोग के चुनाव कानून में बदलाव की मांग से संबंधित कदम जुलाई, 2015 में आए दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश का नतीजा है, जिसमें चुनाव आयोग से उस बकाए का जल्द भुगतान सुनिश्चित करने के लिए उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर किसी तरह का रोक लगाने की संभावना पर विचार करने को कहा गया था।