एनपीए ने तोड़ी मोदी सरकार में सरकारी बैंकों की कमर, 50 गुना बढ़ा घाटा

नरेंद्र मोदी सरकार में एनपीए से जूझते बैंकों के लिए अभी कोई उम्मीद की किरण नहीं दिखाई दे रही है। उल्टे निर्धारित अनुपात से कहीं ज्यादा एनपीए( नॉन परफार्मिंग एसेट) बढ़ने से बैंकों को रिकॉर्ड घाटा हो रहा है। 21 सार्वजनिक बैंकों को जबर्दस्त घाटा हुआ है। एक साल के भीतर पचास गुना नुकसान झेलना पड़ा है। पिछले साल जहां 307 करोड़ का घाटा हुआ था, अब यह आंकड़ा 16, 600 करोड़ हो गया है। इससे पता चलता है कि किस कदर एनपीए ने मोदी सरकार में बैंकों की कमर तोड़ कर रख दी है। इस घाटे ने बैंकिंग जगत के सामने नई चुनौतियां और समस्याएं पेश की हैं। इससे आर्थिक गतिविधियों के भी प्रभावित होने की आशंका है।

आइसीआरए के ग्रुप हेड कार्तिक श्रीनिवासन ने कहा-मेरा मानना है कि एनपीए उच्चतम स्तर पर पहुंचने के करीब है, हम इस साल के अंत तक इसके कम होने की उम्मीद करते हैं। उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने एनसीएलटी खातों की समस्या छह से नौ महीने में हल करने की अवधि निर्धारित की है। उधर बैंकिंग विश्लेषक सिद्धार्थ पुरोहित ने कहा-त्वरित सुधारक कार्रवाई के जरिए बैंकों ने प्रदर्शन में अपेक्षित सुधार नहीं किया है।

आंकड़ों के मुताबिक इस वक्त बैंकों का एनपीए 7.1 लाख करोड़ से बढ़कर 8.5 लाख करोड़ हो गया है।साल भर में करीब 19 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। जबकि अधिकतम 51,500 करोड़ के एनपीए का ही प्रावधान है। एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा कि सितंबर में हम निर्धारित एनपीए के तुलना में आनुपातिक सुधार का इरादा रखते हैं। ताकि दिसंबर तक स्थिति सुधर जाए। इस घाटे ने बैंकिंग जगत के सामने नई चुनौतियां और समस्याएं पेश की हैं। इससे आर्थिक गतिविधियों के भी प्रभावित होने की आशंका है।

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