एससी/एसटी एक्ट पर उपजे विवाद के चलते सीनियर पुलिस अधिकारी ने राष्ट्रपति को भेजा इस्तीफा
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने एससी/एसटी एक्ट पर उपजे विवाद के कारण अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। यूपी पुलिस के एडिशनल एसपी बीपी अशोक ने सोमवार को एससी-एसटी एक्ट के कमजोर पड़ने का हवाला देते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अपना इस्तीफा भेजा। बुद्धिज्म में पीएचडी करने वाले डॉ. बीपी अशोक ने अपने इस्तीफे को जीवन का सबसे कठोर निर्णय बताया है। अपर पुलिस अधीक्षक ने सरकार के सामने सात बिंदू रखते हुए कहा है कि उनकी बातें मान ली जाएं या फिर उनका त्यागपत्र स्वीाकार कर लिया जाए। उन्होंने लिखा, ”भारत में वर्तमान में ऐसी परिस्थितियां पैदा हो गई हैं, जिससे मुझे बहुत आघात पहुंचा है। कुछ बिंदुओं को आपके सामने रखते हुए मैं अपने जीवन का कठोर निर्णय ले रहा हूं।”
पुलिस अधिकारी ने सबसे पहला कारण एससी/एसटी एक्ट का कमजोर होना बताया है। उन्होंने इस्तीफा देने के पूरे सात बिंदुओं के बारे में राष्ट्रपति को बताया है। बीपी अशोक ने लिखा, ”पहला कारण, एससी/एसटी एक्ट को कमजोर किया जा रहा है। दूसरा बिंदू, संसदीय लोकतंत्र को बचाया जाए। रूल ऑफ जज, रूल ऑफ पुलिस के स्थान पर रूल ऑफ लॉ का सम्मान किया जाए। तीसरा बिंदू, महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व अभी तक नहीं दिया गया। चौथा बिंदू, महिलाओं, एससी/एसटी/ओबीसी माइनॉरिटी को उच्च न्यायालयों में अभी तक प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। पांचवां बिंदू, पदोन्नतियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। छठां कारण, श्रेणी चार से श्रेणी 1 तक साक्षात्कार युवाओं में आक्रोश पैदा करते हैं। सभी साक्षात्कार खत्म कर दिए जाएं। सांतवां बिंदू, ‘जाति’ के खिलाफ स्पष्ट कानून बनाया जाए।”
पुलिस अधिकारी का त्यागपत्र (फोटो सोर्स- ट्विटर/@SinghVijay578)
इसके साथ ही एडीशनल एसपी अशोक ने यह भी कहा कि या तो उनकी मांगों को मान लिया जाए या फिर उनका त्यागपत्र स्वीकार किया जाए। उन्होंने लिखा, ”इन संवैधानिक मांगों को माना जाए या मेरा त्यागपत्र/वीआरएस पत्र स्वीकार किया जाए। पूरे देश के आक्रोशित युवाओं से शांति की अपील के साथ यह पत्र प्रेषित किया जा रहा है। इस परिस्थिति में मुझे बार-बार यही विचार आ रहा है कि ‘अब नहीं तो कब, हम नहीं तो कौन।”’ बता दें कि एससी/एसटी एक्ट में बदलाव करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से ही दलित समुदाय इसका विरोध कर रहा है। 2 अप्रैल को इसके विरोध में भारत बंद किया गया था और उस दौरान देश के कई हिस्सों में जोरदार हिंसा हुई