कब्जे की मनमानी तारीख दिखाने वाले बिल्डरों पर कसेगा शिकंजा

जिन खरीदारों को 2016-17 तक फ्लैटों का कब्जा मिलना था, उन परियोजनाओं के बिल्डरों ने रेरा में अपनी सुविधानुसार बदलाव कर कब्जा दिए जाने की तारीख साल 2022-23 तक दिखाई है। गलत जानकारी देने वाले ऐसे बिल्डरों की जांच कराई जा रही है। इसके लिए लखनऊ में एक समिति का गठन किया गया है। दोषी बिल्डरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। मंगलवार को उप्र रेरा के प्रमुख मुकुल सिंह ने सेक्टर-6 स्थित इंदिरा गांधी कला केंद्र में हुई बैठक में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आम्रपाली समूह की वित्तीय जांच के लिए ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ देवाशीष पांडा को अधिकारी नियुक्त किया गया है। बैठक में बिल्डरों की संस्था क्रेडाई व प्राधिकरण अधिकारियों समेत फ्लैट खरीदार संगठनों ने भाग लिया। बैठक में आम्रपाली समूह की ओर से पदाधिकारियों की गैर-मौजूदगी पर खरीदारों ने नाराजगी भी जताई। बैठक में बिल्डर व खरीदारों समेत आम लोगों ने एग्रीमेंट टु सेल बनाने के लिए कई सुझाव भी दिए। नोएडा प्राधिकरण के सीईओ आलोक टंडन से इस पर अमल करने को कहा गया है। रेरा से जड़े मुद्दों के समाधान के लिए मुकुल सिंघल ने बताया कि रेरा में जल्द संशोधन किया जाएगा। संशोधन के लिए एक कमेटी काम कर रही है। रेरा पोर्टल पर अभी तक 900 शिकायतें आई हैं, जिसमें सबसे ज्यादा 600 अकेले गौतम बुद्ध नगर से हैं। इन शिकायतों का निस्तारण कराया जा रहा है। रेरा में सुनवाई के लिए स्टैंडर्ड आॅपरेशन प्रोसिजर (एसओपी) बना दिया गया है। उप्र में रेरा को कागजरहित (पेपरलेस) बनाने की कोशिश की जा रही है। उप्र रेरा की वेबसाइट को करीब 12.5 करोड़ लोगों ने देखा है। रेरा के तहत करीब 500 लोगों पर जुर्माना भी लगाया गया है।

खरीदारों के संगठन नोएडा एक्सटेंशन फ्लैट ओनर्स मेन एसोसिएशन (नेफोमा) के सदस्य भी बैठक में मौजूद रहे। नेफोमा अध्यक्ष अन्नू खान ने खरीदारों की समस्याओं से संबंधित एक ज्ञापन भी रेरा प्रमुख को सौंपा। उन्होंने कहा कि रेरा के तहत प्राधिकरण बिल्डरों को अतिरिक्त एफएआर देने पर विचार कर रहा है। इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। पहले से ही सड़कों पर जाम, पार्किंग और स्वच्छता संबंधी दिक्कतों से शहर जूझ रहा है। एफएआर बढ़ाने की अनुमति देने पर परेशानी और ज्यादा बढ़ जाएगी। इसके अलावा रेरा में शिकायत दर्ज होने पर सुनवाई लखनऊ के बजाय गौतम बुद्ध नगर में करने की भी मांग की। बताया गया है कि शिकायत के लिए 1000 रुपए के अलावा बस या ट्रेन से लखनऊ जाना खासी दिक्कत की वजह है। बिल्डरों ने रेरा की शर्तों को अपने मुताबिक बदल कर कब्जे की तारीख कई साल आगे की दिखाई है। इसके अलावा एक ही परियोजना को चरणों में दिखाकर उसे 10 परियोजनाओं के रूप में दिखाया गया है, जबकि खरीदार आठ साल से उन परियोजनाओं में फ्लैट का कब्जा लेने का इंतजार कर रहे हैं।

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