कर्नाटक चुनाव पर अमेरिकी अखबार की राय- व्हाट्सऐप से लड़ा गया इलेक्शन
चुनावी बहसों और रैलियों की बातें अब पुरानी हो चुकी हैं। भारत में चुनाव अब व्हाटस एप और फेसबुक पर लड़े और जीते जा रहे हैं। अभी तक इन एप्स का इस्तेमाल लाखों लोग कॉल करने, चैट करने और जानकारियों को साझा करने के लिए किया जाता था। सोशल एक्टिविस्ट और चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि अब इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल झूठी खबरें और धार्मिक उन्माद को फैलाने के लिए हो रहा है। इस महीने कर्नाटक में हाई प्रोफाइल चुनाव करवाया गया। इस चुनाव को लोकसभा चुनावों की पहली किश्त के तौर पर लड़ा गया था। देश की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने दावा किया था कि वे 20,000 से ज्यादा व्हाटसएप ग्रुप के जरिए 15 लाख समर्थकों तक सेकेंड भर में अपने संदेश पहुंच सकते हैं। लेकिन इनमें से कुछ संदेश झूठे और उन्माद भड़काने वाले, अपने राजनीतिक विरोधी के बयानों को तोड़-मरोड़कर पेश करने वाले थे। इनसे देश में रह रहे हिन्दू राष्ट्रवादियों और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बीच तनाव बढ़ाने का भी प्रयास किया गया। येे सारी बातें अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने अपनी ताजा खबर में लिखी हैं।
कथित तौर पर भारत के पहले व्हाट्स एप चुनाव में ऐसा भी वक्त आया, जब व्हाट्स एप का स्वामित्व रखने वाली कंपनी फेसबुक पर लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने के आरोप लग रहे हैं। फेसबुक पर आरोप है कि वह रशियन एजेंट पर नियंत्रण करने में नाकाम रहा। जिसके कारण गलत खबरें और नफरत फैलाने वाले बयान पूरी दुनिया में फैलाए गए। म्यांमार और श्रीलंका जैसे अल्पविकसित देशों में फेसबुक के कारण दंगे भड़के, हत्याएं और धार्मिक हिंसा भी हुई। अमेरिका में रशियन नागरिकों के द्वारा संचालित अकाउंट के जरिए 8 अरब लोगों तक झूठी सूचनाएं और नफरत फैलाने वाले संदेश फैलाए गए।
सोशल एक्टिविस्ट मानते हैं कि व्हाटस एप को पूरी दुनिया में करीब 9500 करोड़ लोग इस्तेमाल करते हैं। व्हाट्स एप के संदेश पूरी तरह से कोडेड होते हैं, इन्हें कंपनी के अधिकारी भी खोलकर नहीं पढ़ सकते हैं। ये लोकतंत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। अब इस माध्यम का इस्तेमाल अपने विरोधियों को गाली देने के लिए हो रहा है, क्योंकि व्हाट्स एप चलाने वाले ज्यादातर लोग इंटरनेट के लिए नए हैं और तकनीकी रूप से सक्षम नहीं हैं।
तकनीकी जानकार निखिल पाहवा मानते हैं कि, चूंकि व्हाट्सएप पर बातचीत निजी ग्रुप में होती है। इस कारण बड़ी संख्या में लोगों के सामने सही जानकारी ला पाना बहुत कठिन है और लोग झूठी सूचनाओं को सच मानने लगते हैं। अब ये हाथ से बाहर निकल गया है, खुद व्हाट्स एप को भी नहीं पता है कि इस समस्या से कैसे निपटा जाए। व्हाट्सएप के साथ मुश्किल ये भी है कि ये सूचना फैलाई कहां से गई है, ये जानना असंभव है। किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए झूठी सूचनाएं फैलाना बेहद आसान है और इसे कोई भी पता नहीं कर सकता है।