कश्मीरी शरणार्थियों की तकलीफ पर बोले माकपा नेता, 5 हजार लोगों के लिए नहीं बदला जएगा संविधान
असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) का ड्राफ्ट जारी होने के बाद से ही इस मामले में विपक्ष द्वारा सरकार का विरोध किया जा रहा है। जहां एक तरफ एनआरसी का विरोध हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ अब जम्मू कश्मीर में लगे आर्टिकल 35-ए पर भी बहस शुरू होती दिख रही है। इस आर्टिकल के तहत कश्मीर के लोगों को विशेष अधिकार मिलते हैं तो वहीं कश्मीर में भारत के अन्य हिस्सों से जाकर बसने वाले लोगों को शरणार्थी का दर्जा दिया जाता है और उन्हें बाकी कश्मीरियों की तरह अधिकार नहीं मिलते।
धारा 35-ए को लेकर अब आने वाले सोमवार यानी 6 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने जा रही है। इस सुनवाई के चलते अब धारा 35-ए पर भी बहस शुरू हो चुकी है। एनआरसी का जहां विपक्ष एक तरफ विरोध करते दिख रहा है तो वहीं धारा 35-ए का सपोर्ट कर रहा है। सीपीएम ने धारा 35-ए को कश्मीर की अस्मिता की पहचान बताते हुए इसे वहां बहाल रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। इसके बाद से ही टीवी से लेकर सोशल मीडिया पर धारा 35-ए पर जमकर बहस हो रही है। न्यूज़ 18 इंडिया में भी धारा 35-ए को लेकर एक बहस का आयोजन किया गया, जिसमें सीपीएम के नेता सुनीत चोपड़ा ने काफी हैरान करने वाली बात कही। उन्होंने कहा कि कश्मीर के 5 हजार लोगों की समस्या का 35-ए से कोई ताल्लुक नहीं।
उनसे जब सवाल किया गया कि कश्मीर में रहने वाले 35-ए के पीड़ित लोग, उनका दर्द दिखाई नहीं देता? जो बीते 64 सालों से कश्मीर की सेवा कर रहे हैं, उनकी समस्या दिखाई नहीं देती क्या? सीपीएम ने 35-ए को बहाल रखने की मांग क्यों की? इस पर सुनीत चोपड़ा ने कहा, ‘वो कश्मीर की सेवा कर रहे हैं और कश्मीर अपनी राय से आर्टिकल 370 के अनुसार हिंदुस्तान में आया था और आर्टिकल 370 कश्मीर का हिंदुस्तान से जुड़े हुए रहने का आधार है। आप पांच हजार लोगों की समस्या को लेकर 35-ए को खत्म करना चाहते हैं, बल्कि हमारा यह कहना है कि इनको स्पेशल इंटरेस्ट कहकर जॉब दे दी जाए। इनको अधिकार दे दीजिए, क्या समस्या है?’