कहानी- नोटा जान

पंकज सुबीर

डोर बेल की आवाज आई, तो उसने खिड़की के पल्ले को जरा-सा खोल कर बाहर देखा। बाहर कोई महिला दरवाजे पर खड़ी थी। दरवाजा खोला, तो शहर के किन्नरों की मुखिया बिंदिया थी।
‘नमस्ते साहब, मैडम जी को भेज दीजिए, कह दीजिए कि बिंदिया आई है दीवाली का इनाम लेने।’ बिंदिया ने अदब के साथ कहा।
‘बिंदिया, तुम्हारी मैडम जी तो बाजार गई हैं, दीवाली का सामान-वगैरह खरीदने।’ उसने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा।
‘ओ…! आज तो मेरी किस्मत ही खराब है…।’ बिंदिया ने चूड़ियों से भरे हाथ को माथे पर मारते हुए कहा।

अरे नहीं, इसमें किस्मत खराब होने की क्या बात है? तुम्हारा दीपावली का इनाम मैं दे देता हूं।’ उसने कहा।
‘अरे नहीं साहब, वो बात नहीं है। इनाम तो जब चाहे आते-जाते मैडम जी से ले लेंगे। किस्मत की बात तो इसलिए कही कि साल में तीन बार हम लोग इनाम मांगने निकलते हैं, होली, दीवाली और राखी पर। पूरा शहर घूमते हैं पैदल-पैदल, लेकिन चाय-पानी को बस यहां आपके घर आने पर मैडम जी ही पूछती हैं। प्यार से बिठाती हैं, चाय नाश्ता करवाती हैं और इनाम देती हैं। आज भी मैं घूम-घूम कर थक गई, तो सोचा अब मैडम जी के घर चलती हूं, दो घड़ी बैठ कर सुस्ता भी लूंगी और कुछ चाय-नाश्ता भी हो जाएगा। साथ वालियों से कहा कि तुम आगे की दुकानें और घर निबटा के आ जाओ, मैं मैडम जी के घर बैठी हूं, वहीं आ जाना। मैडम जी से बात करके अच्छा लगता है।’ बिंदिया ने पूरी भूमिका के साथ उत्तर दिया।
‘ओ…! ये बात है, मगर उसमें भी किस्मत खराब होने की क्या बात है, आ जाओ तुम अंदर। मैं बाई से कहता हूं तुम्हें चाय-नाश्ता करवा देगी। हो सकता है तब तक तुम्हारी मैडम जी भी आ जाएं।’ उसने कुछ मुस्कुराते हुए कहा।
‘नहीं-नहीं साहब आप क्यों परेशान होते हैं, मैं मैडम जी से इनाम लेने फिर आ जाऊंगी।’ बिंदिया ने कुछ विनम्रता से कहा।
‘इसमें परेशानी की क्या बात है, मुझे तो बनानी नहीं है चाय, बाई को बनानी है। और अभी तुमने कहा न कि थकी हो, तो आ जाओ अंदर बैठ जाओ, तुम्हारी साथ वाली आ जाएं तो चली जाना।’ उसने कुछ अधिकार पूर्वक कहा।

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