कांग्रेसः पंजाब जीता, गुजरात से बंधी आस

अजय पांडेय
वर्ष 2017 के फरवरी की गुलाबी सर्दियां थीं। जाड़े की ठिठुरन अभी बाकी थी लेकिन देश का सियासी माहौल गरमाया हुआ था। गोवा से लेकर मणिपुर तक और पंजाब से लेकर उत्तर प्रदेश तक चुनावी डंका बज रहा था। कांग्रेसी खेमे में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनाव परिणामों को लेकर भले ज्यादा उम्मीदें नहीं थीं लेकिन बाकी तीन राज्यों को लेकर पार्टी के नेता मुतमईन थे कि चाहे अपने खेतों में सोने-चांदी सरीखी फसलें पैदा करने वाला प्रदेश पंजाब हो अथवा अपने नयनाभिराम समुद्री किनारों के लिए दुनियाभर में मशहूर गोवा हो, सरकार कांग्रेस की ही बनने वाली है। लेकिन जब चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेसी सूरमाओं को थोड़ा झटका जरूर लगा। पार्टी को पंजाब में तो स्पष्ट बहुमत मिला लेकिन गोवा व मणिपुर में वह सत्ता से चंद कदम दूर रह गई।

पंजाब में कांग्रेस की सरकार पूरे जलसे के साथ बनी लेकिन कांग्रेसी रणनीतिकारों को यह बात बहुत गहरे कचोटती रही कि कुछ भाजपा की लठैती वाली सियासत और कुछ अपनी कमियों की वजह से गोवा व मणिपुर में पार्टी सरकार नहीं बना पाई। गोवा की सत्ता देखते-देखते उसके हाथों से ठीक वैसे ही फिसल गई मानों मुट्ठी में रखी रेत हो।
दिलचस्प यह कि इन तीनों राज्यों में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन की बात उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में उसकी करारी हार के सामने बिल्कुल दबकर रह गई। देश का हृदय माने जाने वाले उत्तर प्रदेश व उससे सटे उत्तराखंड विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस व उसके समर्थक दलों को भारी मात दे दी। इन पांच राज्यों में से कांग्रेस केवल पंजाब में ही अपनी सरकार पूरी ठसक के साथ बना पाई। इन पांच राज्यों का नफा नुकसान यह कि कांग्रेस को दो राज्य गंवाने पड़े और एक राज्य में उसे जीत मिली। इसी प्रकार गुजरात और हिमाचल प्रदेश के हालिया संपन्न चुनाव में भी कांग्रेस ने जहां हिमाचल की अपनी हुकूमत भाजपा के हाथों गंवा दी वहीं वह गुजरात में भाजपा के हाथों से सत्ता छीनने में कामयाब नहीं हो पाई। चुनावी सफलता की दृष्टि से वर्ष 2017 का यह साल कांग्रेस के लिए बहुत उत्साहजनक नहीं माना जाएगा। विभिन्न राज्यों में हुए चुनाव परिणामों में उसका प्रदर्शन इतना ठीक नहीं रहा कि पार्टी सत्ता हासिल कर पाए। उसे एक तगड़ा झटका बिहार में भी मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाली भाजपा के विजय रथ को महागठबंधन बनाकर बिहार में रोकने की जो कामयाबी उसे मिली थी, वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पाला बदल लेने से नाकामी में तब्दील हो गई। भाजपा नीतीश कुमार को लालू और कांग्रेस के पाले से निकालकर दोबारा अपने पाले में लाने में कामयाब हो गई।

महज तीन साल में कांग्रेस प्रचंड बहुमत से संसद की सीढ़ियों को चूमने वाले प्रधानमंत्री मोदी और उनकी अगुवाई वाली भाजपा के अश्वमेघ के घोड़े की लगाम थामने की स्थिति में आ गई है। गुजरात में वह सरकार भले नहीं बना पाई लेकिन चुनाव का ऐलान होने से लेकर आखिरी चुनाव परिणाम आ जाने तक खुद पीएम मोदी और उनकी पार्टी की सांसें अटकी रहीं। अपने गृह प्रदेश में प्रधानमंत्री को तीन दर्जन चुनावी सभाएं करनी पड़ीं। इसके बावजूद जीत का भरोसा सत्तारुढ़ दल में अंत तक नहीं था। हिमाचल प्रदेश के लोग हर पांच साल पर हुकूमत बदल देते हैं। लिहाजा, यह पहले दिन से तय था कि वहां की कांग्रेस सरकार की विदाई होगी लेकिन गुजरात में तगड़ा मुकाबला कर कांग्रेस ने पूरे देश में यह संदेश जरूर दे दिया हैं कि भाजपा से लड़ने के लायक दमखम अब भी उसके पास बाकी है। शायद यही वजह रही कि पार्टी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी गुजरात चुनाव के बाद कहा कि हम बेशक हार गए लेकिन हमने यह साबित किया कि हम भाजपा से लड़ सकते हैं।

नए युग की शुरुआत

कांग्रेस की बागडोर अब युवा राहुल गांधी के हाथों में है। पार्टी अध्यक्ष बनने से पहले ही उन्होंने गोवा में सरकार नहीं बना सकने के जिम्मेदार ठहराए गए दिग्गज ठाकुर नेता दिग्विजय सिंह से सूबे की कमान छीनकर और बीच चुनाव के वक्त मणिशंकर अय्यर को एक घंटे के भीतर पार्टी से निलंबित कर अपने इरादे साफ कर दिए। गुजरात में उन्होंने अपनी पार्टी के सूरमाओं से ज्यादा वहां के तीन युवाओं को आगे बढ़ाकर चुनाव लड़ा और पार्टी को उसका फायदा मिला। जाहिर है कि राहुल की अगुवाई में कांग्रेस में परिवर्तन की बयार बहने वाली है। राहुल लालू की रैली में पटना भले नहीं जाते हों लेकिन दिल्ली में तेजस्वी के साथ खाना जरूर खाते हैं। मुलायम सिंह से उनके रिश्ते भले बेहतर नहीं हों लेकिन अखिलेश यादव से उनकी दोस्ती पक्की है। उनके सामने पार्टी के संगठन को मजबूत बनाने की बड़ी चुनौती है और इस साल का अंत आते आते राहुल ने कांग्रेस में नई शुरुआत के संकेत जरूर दे दिए हैं। गुजरात के चुनाव परिणामों से मिशन 2019 को लेकर कांग्रेस को नई उम्मीदें बंधी हैं। कोई ताज्जुब नहीं कि आगे होने वाले राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक राज्यों के चुनाव में कांग्रेस ज्यादा ताकतवर बनकर उभरे।

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