कांग्रेस अब भी राष्ट्रीय स्वीकार्यता वाली पार्टी और उसके बिना विपक्षी एकता असंभव: शिवसेना
शिवसेना ने सोमवार को कहा कि संसद में कम सीट होने और कई राज्यों में सत्ता गंवाने के बावजूद कांग्रेस अब भी राष्ट्रीय स्वीकार्यता वाली पार्टी है और इसके बिना विपक्षी एकता संभव नहीं है। 2019 लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकता के प्रयासों पर टिप्पणी करते हुए शिवसेना ने कहा कि सभी विपक्षी दल कुल मिलाकर क्षेत्रीय ताकत ही हैं, जबकि कांग्रेस अभी भी ‘राष्ट्रीय ताकत’ बनी हुई है। शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ व ‘दोपहर का सामना’ के संपादकीय में कहा, “विपक्षी पार्टियों के सामने सबसे बड़ी समस्या राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार करने या न करने की है, क्योंकि विपक्षी नेताओं में प्रधानमंत्री पद के कई उम्मीदवार हैं।”
मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य के बारे में शिवसेना ने कहा कि भाजपा की सफलता का मंत्र है कि इसे संसद में बहुमत प्राप्त है, इसके पास बहुत सारा धन है, जिससे वह कुछ भी ‘खरीद’ सकती है और इस सबके साथ विपक्ष में बिख्रराव तो है ही। शिवसेना ने कहा, “इन सबके बावजूद, भाजपा की असफलता स्पष्ट है और लोगों में काफी गुस्सा है। गठबंधन के सभी साथियों ने इसे छोड़ दिया है और भाजपा को यह समझ में आया है कि केवल क्षेत्रीय पार्टियां ही 2019 लोकसभा चुनाव में उसकी नैया पार लगा सकती हैं।”
पार्टी ने कहा कि भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है और पार्टी विश्वास की कमी से जूझ रही है। शिवसेना ने कहा कि पार्टी को केवल विपक्षी दलों में बिखराव से फायदा हुआ। संपादकीय के अनुसार, “इस स्थिति में, अगर भाजपा 100 सीटों पर सिमट गई तो क्या पार्टी ब्लादिमीर पुतिन या डोनाल्ड ट्रंप या यूएई से अपने सांसद मंगाएगी?” शिवसेना ने आश्चर्य जताते हुए कहा, “पिछले चार वर्षो में भारत के लोग भाजपा के खिलाफ हुए हैं लेकिन इसने पुतिन और ट्रंप से दोस्ती सुनिश्चित की है..लेकिन इससे चुनाव में कैसे फायदा होगा।”
विपक्षी पार्टियों में, प्रधानमंत्री के पद के लिए ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव, एम.के. स्टालिन, एन. चंद्रबाबू नायडू, नवीन पटनायक, के. चन्द्रशेखर राव और यहां तक की 85 वर्ष के पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवगौड़ा भी उम्मीदवार हैं। भविष्य में अपने सभी चुनाव खुद के दम पर लड़ने का निर्णय करने वाली शिवसेना ने कहा, “रथ तैयार है, लेकिन चक्के लापता हैं, कई घोड़े पहले से ही दौड़ में हैं..यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि इसका नाम तीसरा मोर्चा होगा या चौथा मोर्चा।”
पार्टी ने कहा, “हालांकि, विपक्षी दल राहुल गांधी द्वारा गुजरात और कर्नाटक विधानसभा में भाजपा के अंदर पैदा किए गए डर को दरकिनार नहीं कर सकते। लेकिन सभी विपक्षी दल अभी भी असमंजस में हैं कि राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार करें या ना करें। शिवसेना ने चेतावनी देते हुए कहा, “शक्तिशाली लोकतंत्र के लिए एक मजबूत विपक्ष की जरूरत होती है..लोकतंत्र के हित में, विपक्षी पार्टियों को जल्द से जल्द राहुल गांधी को स्वीकार करना चाहिए जिन्होंने भाजपा को डराया था…और भाजपा को सत्ता प्राप्त करने के लिए विपक्षियों को तोड़ने वाले पार्टी के रूप में जाना जाता है।”