कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कई नेता कमल का हाथ थामने की जुगत में

दिल्ली के करीब आधा दर्जन सियासी सूरमा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की चौखट पर लगातार दस्तक दे रहे हैं। दिलचस्प यह है कि पाला बदलने को बेचैन इन नेताओं में कई ऐसे हैं जो बतौर मंत्री सूबे में अपनी सरकार चला चुके हैं। हालांकि, बवाना के चुनाव परिणाम ने कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से ताल्लुक रखने वाले इन नेताओं के इरादों पर पानी फेर दिया है। अब भाजपा का शीर्ष नेतृत्व भी गुजरे जमाने के इन दिग्गजों को पार्टी में शामिल करने में कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहता। आम आदमी पार्टी से पहली खेप में बाहर हुए योगेंद्र यादव व प्रशांत भूषण जैसे नेताओं ने तो अलग पार्टी बना ली, लेकिन बाद में अलग-अलग मौकों पर पार्टी के खिलाफ बगावत की आवाज बुलंद करने वाले नेताओं को लेकर दुविधा की स्थिति कायम है। न पार्टी उन्हें बाहर निकाल रही है और न ही वे खुद पार्टी छोड़ रहे हैं।

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाने वाले पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा इस बारे में कहते हैं कि अभी तो स्थिति यही है कि न तो पार्टी ने उन्हें बाहर निकाला है और न ही उन्होंने पार्टी छोड़ी है। भविष्य की सियासत को लेकर उनका कहना है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ राजनीति करने आए थे और आगे भी वही करेंगे। सनद रहे कि पिछले दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जब भाजपा से हाथ मिलाया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यही टिप्पणी की थी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम में आपका स्वागत है। हालांकि मिश्रा भाजपा में जाने को लेकर अपने पत्ते अभी नहीं खोलना चाहते। उनकी ही तरह पार्टी ने देवेंद्र सहरावत, असीम अहमद व संदीप कुमार को भी अलग-अलग कारणों से पार्टी से निलंबित कर रखा है। अगर पार्टी इनको बाहर कर दे तो इनके लिए दूसरी पार्टी चुनने का रास्ता खुल जाएगा, लेकिन आम आदमी पार्टी ऐसा नहीं करना चाहती। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि ये सारे लोग मुख्यमंत्री केजरीवाल के नाम पर चुनाव जीतकर आए थे। इससे पहले स्वतंत्र रूप से इनका कहीं कोई राजनीतिक अस्तित्व नहीं था। ऐसे में पार्टी विधायक की कुर्सी इन्हें सौगात में भला क्यों देगी। अगर ऐसा ही है तो ये विधायक खुद ही पार्टी छोड़ दें। वे बवाना की ओर इशारा करते हुए यह भी कहते हैं कि एक व्यक्ति ने पार्टी छोड़ी और उसका हश्र सबके सामने है।

भाजपा में जाने की बेचैनी आम आदमी पार्टी के नेताओं में तो है ही, कुछ कांग्रेसी नेता भी कमल का हाथ थामने के ख्वाहिशमंद हैं। पहली खेप में पूर्व मंत्री व प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली, पूर्व विधायक अमरीश सिंह गौतम, दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष बरखा शुक्ला सिंह सहित कई अन्य नेता भाजपा की नाव में सवार हो गए। बताया जा रहा है कि दूसरी खेप में कुछ और नेताओं को भाजपा में प्रवेश मिलना तय था लेकिन उनकी बात नहीं बन पाई। इनमें से कई नेता अब तक भाजपा में जुगाड़ लगाने की कोशिशों में जुटे हैं। सियासी जानकारों का यह मानना है कि असल में दिल्ली नगर निगम के चुनाव के वक्त भाजपा रणनीतिकारों ने लवली जैसे कांग्रेसी नेताओं को तोड़कर कांग्रेस की मजबूती को जबरदस्त धक्का पहुंचाया। निगम चुनाव के नतीजों से यह बात साबित भी हो गई। कांग्रेस के इन नेताओं के ऐन वक्त पर पाला बदलने से पार्टी को चुनावी नुकसान उठाना पड़ा। उसके बाद भाजपा के ही बड़े नेताओं ने अन्य दलों के नेताओं के लिए भाजपा में शामिल होने की प्रक्रिया बंद कर दी, नतीजा यह हुआ कि कई लोग लटक गए। बहरहाल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के कई नेता अब भी भाजपा की नाव में सवार होना चाहते हैं। यह और बात है कि कांग्रेस के कद्दावर नेता यह दावा कर रहे हैं कि आम आदमी पार्टी के कई नेता लगातार उनके संपर्क में हैं।

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