कांग्रेस के इन दिग्गज नेताओं ने कर्नाटक में पलट दी ‘हारी हुई बाजी’, पढ़ें- इनसाइड स्टोरी
कर्नाटक में बीजेपी की येदियुरप्पा सरकार ढाई दिन ही चल सकी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर शनिवार (19 मई) को कर्नाटक विधान सभा में बहुमत परीक्षण से पहले ही सीएम येदियुरप्पा ने हार मानते हुए इस्तीफे का एलान कर दिया। बीजेपी सदन में बहुमत का आंकड़ा जुटा पाने में नाकाम रही। अब माना जा रहा है कि राज्यपाल कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के नेता एचडी कुमारस्वामी को राज्य में सरकार बनाने का न्योता देंगे। इस गठबंधन ने 117 विधायकों के समर्थन का दावा किया है लेकिन इससे पहले राज्य में तीन दिनों तक जबर्दस्त सियासी ड्रामा हुआ। बेंगलुरु से लेकर दिल्ली तक अदालती प्रकियाओं के साथ-साथ विधायकों को हैदराबाद में छुपाना पड़ा। आखिरकार कांग्रेस ने हारी हुई बाजी पलट दी। कांग्रेस ने गोवा, मणिपुर, मेघालय से सबक लेते हुए कर्नाटक में काफी मुश्तैदी दिखाई। इसमें इन नेताओं की भूमिका अहम रही।
गुलाम नबी आजाद- गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के महासचिव हैं। पार्टी ने प्लान बी, सी के तहत चुनाव परिणाम से पहले ही इन्हें बेंगलुरु भेज दिया था। इन्होंने चुनाव परिणाम आने के बाद फौरन कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी से बात की और आगे की रणनीति पर चर्चा की। इनके सुझाव पर सोनिया गांधी ने फौरन जेडीएस सुप्रीमो और पूर्व पीएम एचडी देवगौड़ा से बात की और जेडीएस को समर्थन देने और सीएम का पोस्ट ऑफर किया। सोनिया गांधी ने देवगौड़ा पर दबाव बनाने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती, टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, केरल के सीएम पी विजयन, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव से भी बात की। इन नेताओं ने देवगौड़ा से बात की। इसके बाद देवगौड़ा ने कांग्रेस का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल भी आजाद के साथ टीडीपी और टीआरएस के नेताओं के संपर्क में थे।
अशोक गहलोत- राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत भी कांग्रेस महासचिव हैं। इन्होंने कर्नाटक के नेताओं के साथ मिलकर जेडीएस नेताओं और निर्दलीय विधायकों के समर्थन का जुगाड़ हासिल करने की रणनीति बनाई। साथ ही पार्टी के विधायकों को एकजुट रखने और बीजेपी के लालच से बचाने की रणनीति पर काम किया। गहलोत पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के संपर्क में थे और लगातार उन्हें अपडेट कर रहे थे। साथ ही उनसे दिशा-निर्देश ले रहे थे।
मल्लिकार्जुन खड़गे- लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने अशोक गहलोत के साथ बेंगलुरु में ही मोर्चा संभाल रखा था। कांग्रेस के प्लान सी पर लगातार काम कर रहे थे। पार्टी विधायकों को कैसे बचाया जाए और कहां सुरक्षित रखा जाय, इस पर वो पार्टी नेताओं के साथ लगातार रणनीति बनाते रहे और काम करते रहे।
सिद्धारमैया- कर्नाटक के पूर्व सीएम सिद्धारमैया ने भले ही कुर्सी गंवा दी हो लेकिन वो राजनीतिक रणनीति बनाने में माहिर माने जाते हैं। माना जाता है कि उन्होंने बीजेपी की हर योजना को नाकाम करने में बड़ी भूमिका निभाई। बीजेपी जिन-जिन विधायकों पर डोरे डाल रही थी, उन्हें अपने पाले में करने में सिद्धारमैया ने बड़ी भूमिका निभाई और पार्टी को एकजुट रखा। बीजेपी पर सियासी पलटवार करने और सियासी चक्रव्यूह बनाते रहे।
डी के शिवकुमार- डी के शिवकुमार सिद्धारमैया सरकार में मंत्री थे। ये राहुल गांधी के करीबी समझे जाते हैं। विधायकों को रिजॉर्ट्स में ठहराने या कोच्चि भेजने के लिए एयरक्राफ्ट का इंतजाम करने या फिर बस से हैदराबाद भेजने की जिम्मेदारी शिवकुमार के पास ही थी। इसके अलावा मतगणना के दिन ही शिवकुमार ने निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में कर लिया था। इन्होंने बहुमत परीक्षण के दिन गायब विधायकों को ढूंढने और उसे पार्टी के पाले में लाने में बड़ी भूमिका निभाई। ये कांग्रेस के सबसे धनी विधायक हैं।