कांग्रेस को संजीवनी
पंजाब के गुरदासपुर उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली शिकस्त से निश्चय ही कांग्रेस को बल मिला है। यह सीट अभिनेता से नेता बने विनोद खन्ना की मृत्यु के बाद खाली हुई थी। आमतौर पर ऐसी सीटों पर उसी पार्टी की जीत देखी जाती रही है, जिसका नेता पहले विजयी हुआ था। उस पार्टी के प्रति सहानुभूति लहर काम करती रही है। मगर इसके उलट गुरदासपुर में कांग्रेस के उम्मीदवार की भारी मतों से जीत हुई। हालांकि ऐसे उपचुनावों के नतीजों से पार्टी के जनाधार या फिर आने वाले चुनावों को लेकर कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, पर जिस तरह कांग्रेस लगातार अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है, उसमें यह जीत उसके लिए संजीवनी की तरह है। गुरदासपुर उपचुनाव में भाजपा की हार के पीछे कुछ वजहें साफ हैं। एक तो यह कि वहां विधानसभा चुनाव हुए करीब सात महीने हुए हैं और कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार को लेकर अभी तक लोगों का भरोसा कमजोर नहीं हुआ है। फिर भाजपा-अकाली गठबंधन की पिछली सरकार के कटु अनुभव लोग भुला नहीं पाए हैं। इसके अलावा कांग्रेस के उम्मीदवार सुनील जाखड़ की छवि भाजपा उम्मीदवार स्वर्ण सलारिया के मुकाबले ज्यादा अच्छी थी। स्वर्ण सलारिया पर बलात्कार का आरोप था, जबकि सुनील जाखड़ की छवि साफ-सुथरे नेता की है।
गुरदासपुर उपचुनाव नतीजों ने भाजपा-अकाली गठबंधन और आम आदमी पार्टी को सोचने पर विवश किया है कि उन्हें अपना जनाधार मजबूत करने के लिए अभी बहुत कुछ करना है। इस चुनाव में भाजपा-अकाली के बीच फांक नजर आई। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल एक बार भी चुनाव प्रचार के लिए नहीं गए। उधर कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह से लेकर नवजोत सिंह सिद्धू सहित कई बड़े नेता लगातार अपने उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार करते रहे। इससे भी कांग्रेस के प्रति लोगों में सकारात्मक संदेश गया। उधर, विधानसभा चुनाव में शिकस्त के बाद आम आदमी पार्टी दावा करती रही कि पंजाब में उसकी लहर थी और केंद्र सरकार की शह पर वोटिंग मशीनों में गड़बड़ी करके उसे हराया गया, उसे भी अब अपने जनाधार की हकीकत पता चल गई होगी।
इस उपचुनाव में भाजपा की हार के पीछे एक बड़ा कारण नोटबंदी और फिर जीएसटी लागू होने के बाद किसानों और कारोबारियों पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव और इसे लेकर उनकी नाराजगी को भी माना जा रहा है। इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। नोटबंदी और जीएसटी से लोगों में नाराजगी को लेकर भाजपा खुद चिंतित नजर आने लगी है।
केंद्र में साढ़े तीन साल का कार्यकाल पूरा कर चुकने के बाद भी मोदी सरकार ने एक भी वादा ठीक से पूरा नहीं किया है, जो उसने चुनाव प्रचार के दौरान किया था। हर साल एक करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया था, पर उस दिशा में कोई पहल करने के बजाय उलटा यह हुआ कि नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद लाखों लोगों के रोजगार छिन गए, कारोबार बंद हो गए। गुजरात और हिमाचल प्रदेश जैसे अहम राज्यों में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। इसलिए मोदी सरकार से असंतोष को लेकर पार्टी में चिंता स्वाभाविक है। गुजरात में जिस तरह राहुल गांधी की सभाओं में भीड़ जुट रही है, उससे भी भाजपा का जनाधार कमजोर होने का संकेत मिलने लगा है। ऐसे में गुरदासपुर उपचुनाव के नतीजे से भाजपा की चिंता बढ़ना और कांग्रेस को बल मिलना स्वाभाविक है।